भाजपा और उनके दोमुंहे तर्क
भाजपाइयों ने एक साथ दोस्ती और दुश्मनी का ऐसा ताना बाना बुन है की आम आदमी अगर इनके तर्कों को बिना अपनी अंतरात्मा के प्रयोग से सुलझाये पकड़ेगा तब वह व्यक्तिगत जीवन में एक बुद्धिहीन मनुष्य बन कर विकसित होगा।
अधिकांश भारतीयों को भी यही समस्या है। हमारी वर्तमान संस्कृति में तर्कों का एक विचित्र ताना बाना बंधा हुआ है जिसमे जन्म ले रहे नवजात बड़े होते होते अपने अन्दर की सृजन क्षमता को खो देते हैं, अंतर्मन को नष्ट कर देते हैं, माया और भ्रम के जाल में पल-बड़ कर उनके बौद्धिक गुण ख़त्म हो चुके होते हैं।
इस विरोधाभासी ताने बाने के अस्तित्व को हम सभी पहचानते भी हैं। इस ताने बाने को कभी तो हम लोग अपनी गंगा जमुनी सभ्यता बुलाते हैं, कभी करोड़ों देवी दवताओं वाला प्राचीन धर्म, कभी हमारी धार्मिक, संस्कृति और राष्ट्रिय विविधता , और कभी हमारा विश्व का सबसे विशाल संविधान।
जहाँ यह विरोधाभासी ताना बाना हमारी अस्तित्व बनाये रखने का सबसे बड़ा गुण हैं, वही यही ताना-बाना हमारी बुद्धि पर पड़ा सबसे बड़ा पर्दा है जो हमे दार्शनिक रूप में विकास करने में बाँधा बन रहा है।
भाजपा के कुछ एक विरोधाभासी हथकंडों पर धयान दें।
रामदेव के पितांजलि पीठ के उत्पादों को प्रसारित करने के लिए कितनों ही विदेशी सामानों को यह लोग विरोध करते हैं। जैसे चीप्स, टमाटर "सौस", बर्गर, 'चिकन', कोल्ड ड्रिंक्स ,वगैरह।
मगर सत्ता में आ कर यह लोग बाकायदा U Turn मार कर 100% FDI तक जाने में नहीं चूकते हैं।
सत्ता के बाहर रह कर इन्होने परमाणु संधि का विरोध किया , जो की संसद भवन के अन्दर इसलिए था की कुछ तकनीकी विचार अस्पष्ट थे, मगर संसद भवन के बाहर इसलिए था की राष्ट्रिय सुरक्षा अमेरिका के हाथों भेंट चढ़ जाएगी !!!! यानि नियम "अ" और नियम "नहीं-अ" का खेल एक साथ खेला था। अमेरिका से अन्दर अन्दर दुश्मनी नहीं करने की मंशा थी, मगर बाहर से देश की जनता को अमेरिका को दुश्मन क्रिस्चियन और पश्चिमी देश दिखाना था जो की हमारी राष्ट्रिय सुरक्षा और संस्कृति का शत्रु है !!!
यह नियम"अ" -संग- नियम "नहीं-अ" वाली कार्य व्यवस्था ने हमारे देश का बेडा गर्क किया है, मगर हम इसके इलाज के लिए अभी तक तैयार नहीं है, क्योंकि भावनात्मक तौर पर हमे अपनी इस बिमारी पर फक्र करना सिखाया गया है। तमाम विविधातों के मध्य में हमने अपने न्यायायिक मापदंड भी विविध बना दिए है, जो की नहीं होना चाहिए था।
भाजपा के दूसरे कर्मकांडों को देखें। यह मुस्लिम विरोधी गुण रखती है। मगर साथ ही इसके शीर्ष नेताओं का मुस्लिम नताओं से वैवाहिक सम्बन्ध भी है। अब कर लीजिये इनसे तर्क-वितर्क। जनाब अब चित भी इनकी है, पट्ट भी इनकी है। आप तो सिर्फ पराजित ही होने वाले है की आखिर में भाजपाइयों की मंशा है क्या ?
भाजपाई गोडसे को भी पूजते हैं और यदा-कदा अंतर्राष्ट्रीय सभ्य समाज के संस्कारों के दबाव में गाँधी पर भी फूल चढ़ा आते है। इस तरह वह कह लेते है की भई वह गाँधी जी को भी मानते हैं।
भाजपाई मानते हैं की पैथोगोरस थ्योरम, वायुयान, शल्य चिकत्सा ,अंतरिक्ष अनुसन्धान,और नाभिकीय ऊर्जा का अन्वेषण प्राचीन भारतियों ने किया था। मगर वह यह स्वीकारते हैं की आधुनिक काल में यह सब ज्ञान पश्चिमी अन्वेषणकर्ताओं से ही प्राप्त हुआ है। तो इस तरह यहाँ भी भाजपाई दोमुंह हैं।
आवश्यकता के अनुसार यह भाजपाई स्त्री को दुर्गा और शक्ति बुला देते है,और फिर रामदेव जी अपने आश्रम से पुत्रजीवक दुग्ध भी बेच लेते हैं।
गौर करें तो आधुनिककाल के भारत की समस्या भी यही है। जब चाहा तब हाथी गणेश भगवान् बन जाता है, और अन्य समय वह एक निहत्था,बेदम जानवर है जो बंधुआ जीवन जीता है और भोजन भी नहीं खा पाता है। शेर सिंह की भी यही व्यथा है। भारत पाखण्ड का देश इन्ही दो मुंहे विचारों के चलते बना है। यही वह विचार धारा है जिसने गंगा को सब के पापों से मुक्ति दिलाने वाली धारा से तब्दील करके एक नाला में बना दिया है। विडम्बना यह है की यही भाजपा गंगा की सफाई के नाम पर हमारे वोट बटोर रही है जो शायद वास्तव में गंगा विचारधारा के मैली होने का सूत्रधार है।
भाजपा पाकिस्तान और चीन से दुश्मनी की बातें अपने अंधभक्तों के बीच में प्रसारित करते हैं, मगर सत्ता में आने पर वही पुराना तरीका- बात-चीत और दोस्ती में ही समस्याओं का समाधान तलाशते हैं।
इसलिए भाजपाइयों के पास तर्क नहीं, कुतर्क(sophistry) होते हैं। कुछ लोग इसे ambiguity बुलाते है, जबकि वास्तविकता में इस तर्क विद्या को sophistry बुलाया जाता है। यह कैसे भी, किसी भी वाद विवाद में आपसे तो विजयी होने ही वाले है, क्योंकि यह दोनों ही नियम, नियम "अ" और नियम "नहीं-अ" का एक साथ पालन करते हैं। मौखिक तर्क वाद में यह कब तर्क रेखा को बदल देंगे ,आपको पता भी नहीं चलेगा और आप स्वयं ही पराजित हो जायेंगे। इनके तर्कों की रेखा सीधी नहीं है। हाँ लिखित या फिर ऑडियो-विडियो रिकॉर्ड हुए रूप में जब इनकी तर्क रेखा पृष्ट पर इन्ही के हाथों दर्ज रहती है तब इनके u-turn पकड़ना आसन हो जाता है।
भाजपाइयों की जो कमी है, वही वर्तमान काल के भारतीयों के चिंतन की कमी है। हम लोग स्पष्ट और सीधे रेखा के तर्क चिंतन वाले लोग नहीं हैं। इसलिए मौकापरस्ती के आचरण यहाँ बार बार दिखने को मिलते है।
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