न्यायलयों में बौद्धिक असक्षमता से जुड़ा एक प्रसंग
Stupidity(बौद्धिक असक्षमता) हम भारतियों का सबसे बड़ा गुनाह है। सदियों की गुलामी और एक खिचड़ी सभ्यता ने हम लोगों को भ्रांतियों, कुतर्कों , अनैतिक तर्कों, अंतर-विरोध विचारों, और द्वि-मापियाँ न्याय( पाखण्ड) से भर दिया है।अपनी इस खिचड़ी मानसिकता का निवारण करने के स्थान पर हम भारतीय उसपे गर्व करना सीखते है,जिसे हम गंगा-जमुनिवी तहज़ीब,syncretic beliefs, हिंदुस्तानी परंपरा ,मिली-जुली सभ्यता, संगम विचारधारा, इत्यादि गर्वान्वित नामों से पुकारते हैं।
वरिष्ट अभिवक्ता राम जेठमलानी ने एक बार न्यायलय में किसी मुकद्दमे के दौरान न्यायलय और न्यायधीश को केस का कोई पेंचीदा पहलू समझाने के दौरान परेशान हो कर न्यायलय को क्रोधवश Intellectually Bankrupt (बौधिक रूप से कंगाल) होने का इलज़ाम लगाया था।
अपने इस इलज़ाम के लिए जेठमलानी को चौतरफ़ा आलोचना का सामना करना पड़ा था, जिसमे से कुछ दिलचस्प आलोचनाएं अगले दिन के समाचारपत्र ,Times of India, में प्रकाशित हुई थी।
सबसे पहले तो जेठमलानी को न्यायलय की अवमानना का सामना करना पड़ा था।
फिर , जेठमलानी के साथी अधिवक्ताओं ने इतनी देर से इतने बड़े सत्य का खुलासा करने के लिए आलोचना करी थी। कई छोटे अधिवक्ताओं ने इस सत्य को पहले भी महसूस किया था मगर वह न्यायलय की अवमानना के भय से कभी इसे कह नहीं पाए थे। आज इतनी देर बाद एक वरिष्ट अधिवक्ता के मुख से इस सत्य की घोषणा सुन कर वह क्रोधित थे की इतनी देर क्यों लगा दी।
जेठमलानी के साथी अधिवक्ताओं ने उन की यह भी आलोचना करी की वह अपने पेशेवर कार्यकाल में अभी तक इसी सत्य के भरोसे ही तो केस जीतते आये हैं। जेठमलानी ने ज्यादातर मुकद्दमे उस पक्ष के लिए लड़े हैं जिनकी जनता में छवि अनैतिक और दोषी होने वाली रही है। मगर न्यायपालिका से जेठमलानी ने अपने इन क्लाइंट्स को दोषमुक्त करार दिलवाया था। आज जब जेठमलानी केस की पेचीदगी को न्यायपालिका को समझा नहीं पा रहे है तब वह अपने फायदे के लिए यह आरोप लगा रहे हैं। अतीत में उनके विरोधी अधिवक्ताओं को जब न्यायलय इस प्रकार की बौधिक असक्षमता का सामना करना पड़ता था तब यही जेठमलानी शायद न्यायलयों को अपना केस जीतने के वास्ते और अधिक भ्रमित करते थे, और विरोधी को अवमानना के भय से निरउत्साहित करते थे। यानी जेठमलानी सिर्फ अपने फायदे के लिए ही यह आरोप लगा रहे थे।
इस घटना के तीसरे दिन के समाचारपत्रों में जिसमे की Times of India, ने भी भारतीय न्यायालयों के फैसलों का एक ब्यौरा प्रकाशित किया था जिससे यह स्पष्ट होता था की न्यायालयों में Intellectual Bankruptcy वाकई में थी।
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