भाषा और सहज संज्ञान की मानसिक क्षमता

यह सभ्यता और भाषा ज्ञान से कहीं अधिक मानसिक क्षमताओं का विषय है की यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार की अभिव्यक्ति रखता है तब समस्या क्या है । कई सारी बौद्धिक विषमताएं भाषा और उसके अनुचित प्रयोग से ही प्रत्यक्ष होती हैं । साधारण तौर पर कुछ अस्पष्ट अभिव्यति , सामाजिक तौर पर अस्वीकार्य अभिव्यक्ति इत्यादि को अनदेखा कर दिया जाता है । मगर राजनीति और राजपालिका के कार्य में यह एक विकट असक्षमता हो सकती है । निति निर्माण, अथवा जन संचालन के कार्य में यह बहोत बाधा , अथवा विपरीत कार्य भी करवा सकती है । अभी हाल के दिनों में दिए गए कुछ बयानों में 'भाषा और सहज संज्ञान' (language and cognitive inability) की विषमताओं के कुछ उधाहरण मिले ।
 "गरीबी मात्र एक मानसिक स्तिथि है । "
 "सैनिक तो सेना में जान देने ही जाता है । "
"मुझे अफ़सोस है की मैंने उसके पति के कहने पर उसका तबादला किया । "

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