Image has become more important than reality.
बडा ही छलिया क़िस्म का युग है आज का । यहाँ वास्तविकता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है छवि ! Perception is more important than reality . मायानगरी बॉलीवुड में तो यह छवि के कारनामें एकदम ही गजब है । कई सरे चलचित्र , सिनेमा कैसे 'हिट ' हो गए है यह तार्किक समझ से परे है । आस पास में कहीं कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जो यह कहे की फलाना सिनेमा अच्छी है , मगर जब टीवी और अखबार में पढेंगे तो समाचार होगा की वही सिनेमा 'सुपरहिट' , सौ-करोड़ का कारोबार कर चुकी है ।
'आप क्या है' से कही अधिक महत्वपूर्ण है 'आपकी छवि क्या है' । बॉलीवुड की तो मुख्य संस्कृति ही यह है की सभी एक दूसरे की तारीफ़ ही कर रहे होते है जिसे की सभी मिल कर एक दूसरे का फायदा करा सकें । कही कुछ हल्का-फुल्का अपवाद वैध होता है , मगर इस सीमा में की आलोचित कलाकार का आर्थिक नुक्सान न हो या छवि को दीर्घकालीन चोट न हो ।
कोई क्रिकेट के आईपीएल मैच देख भी रहा है या फिर की टीवी और समाचार खुद्द ही उससे दिन भर दिखा दिखा कर "हिट " घोषित कर दे रहे है , यह पता लगा सकना मुश्किल हो चला है । प्रचार प्रसार के युग में इंसान की स्वेच्छा के अस्तित्व को ही तलाश कर सकना करीब करीब असंभव हो गया है । लोग फलाना वस्तु को स्वेच्छा से पसंद कर रहे हैं या फिर की मात्र मीडिया प्रचार के माध्यम से फलाना वस्तु को प्रचलित कर दिया जाता है इसके सत्य का स्थापन एकदम मुश्किल हो गया है ।
कुछ एक टीवी सेट्स में कभी कभी एक ख़ास तकनीक के माधयम से टीवी के प्रयोगकर्ताओ के पसंद को नापने का प्रयास होता है , मगर फिर यंत्र से इकत्रित सही 'डाटा ' खुद ही प्रचार प्रसार में कहीं विलीन कर दी जाती है ।
कुछ एक संघटनो को पुलिस यदि जन सुरक्षा के संगिग्ध घेरे में लेती है तब वह संघटन इस गोपनीय सूचना के लीक होने मात्र से ही पुलिस पर केस कर देते है चुकी आपने हमे संगिग्ध नज़रो से देखा इस लिया अब हम संगिग्धा हो चले है । मानो जैसे कर्मो से कही अधिक महत्वपूर्ण हो चला है छवि । उनके तर्क कुछ ऐसे गोल-मोल हैं की -- "आप संगीग्ध इस लिए नहीं थे की आपके कर्म ऐसे थे, बल्कि आपको ऐसा माना गया इस लिए आप संगिग्ध हो गए ।"
Image has become more important than reality.
'आप क्या है' से कही अधिक महत्वपूर्ण है 'आपकी छवि क्या है' । बॉलीवुड की तो मुख्य संस्कृति ही यह है की सभी एक दूसरे की तारीफ़ ही कर रहे होते है जिसे की सभी मिल कर एक दूसरे का फायदा करा सकें । कही कुछ हल्का-फुल्का अपवाद वैध होता है , मगर इस सीमा में की आलोचित कलाकार का आर्थिक नुक्सान न हो या छवि को दीर्घकालीन चोट न हो ।
कोई क्रिकेट के आईपीएल मैच देख भी रहा है या फिर की टीवी और समाचार खुद्द ही उससे दिन भर दिखा दिखा कर "हिट " घोषित कर दे रहे है , यह पता लगा सकना मुश्किल हो चला है । प्रचार प्रसार के युग में इंसान की स्वेच्छा के अस्तित्व को ही तलाश कर सकना करीब करीब असंभव हो गया है । लोग फलाना वस्तु को स्वेच्छा से पसंद कर रहे हैं या फिर की मात्र मीडिया प्रचार के माध्यम से फलाना वस्तु को प्रचलित कर दिया जाता है इसके सत्य का स्थापन एकदम मुश्किल हो गया है ।
कुछ एक टीवी सेट्स में कभी कभी एक ख़ास तकनीक के माधयम से टीवी के प्रयोगकर्ताओ के पसंद को नापने का प्रयास होता है , मगर फिर यंत्र से इकत्रित सही 'डाटा ' खुद ही प्रचार प्रसार में कहीं विलीन कर दी जाती है ।
कुछ एक संघटनो को पुलिस यदि जन सुरक्षा के संगिग्ध घेरे में लेती है तब वह संघटन इस गोपनीय सूचना के लीक होने मात्र से ही पुलिस पर केस कर देते है चुकी आपने हमे संगिग्ध नज़रो से देखा इस लिया अब हम संगिग्धा हो चले है । मानो जैसे कर्मो से कही अधिक महत्वपूर्ण हो चला है छवि । उनके तर्क कुछ ऐसे गोल-मोल हैं की -- "आप संगीग्ध इस लिए नहीं थे की आपके कर्म ऐसे थे, बल्कि आपको ऐसा माना गया इस लिए आप संगिग्ध हो गए ।"
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