उत्तराधिकारी चुनने के नियम -- भारत के सर्व-प्राचीन चुनौती


अभी कुछ दिनों से यह विचार आ रहा है की गहरायी में समझे तो इस समय 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' में भी जो मत-भेद और विभाजन हुआ है, उसका भी वही कारण है जो की कितने ही हजारो सालो से भारतीय सामाजिक तंत्र के लिए एक चुनौती रहा है - उत्तराधिकारी का चुनाव (law of succession)/ जब अभी आप ने 'अंतरी जन लोकपाल व्यवस्था' का एलान किया तब मन में यह बात आई की यह लोकपाल कार्य क्या करेगा और इसका मकसद(objective ) क्या होगा / सोच घूमते हुए अमरीका के democrat और republican की बीच होने वाली चुनावी-दौड़ पर गयी / वहां मुख्य चुनाव से पहले दोनों पार्टी में अंदरूनी "शास्त्रार्थ" (debate  contest )  होता है / यह "शास्त्रार्थ" हज़ारों लोगो के द्वारा देखा जाता है / और उसमे प्रचलित या विजयी हुए उमीदवार को आगे बड़ने का अवसर मिलता है /  उस दौड़ में दिए जाने वाले त्वरित वाक्-पटुता  (quick wits ) भी अक्सर अखबारों की सुर्खियाँ बने रहते है /
सोचता हूँ की क्या किसी प्रजातंत्र में "market competition " ही सही और विधिवत माध्यम है गुणवत्ता लाने का / और उत्तर मिलता है -- "हाँ" /
सरकरी "सक्षमता प्रमाण पत्र " (license ) तो सिर्फ न्यूनतम योगता  दर्शाता है , गुणवत्ता तो आपसी-प्रतिस्पर्धा से ही प्रसारित होती है /
   आपके 'अंतरी लोकपाल' का कार्य येही होना चाहिए / आपके उम्मेद्वारो के बीच एक स्वस्थ अंतरी प्रतिस्पर्धा को moderate करवाना / तो जहाँ उमीदवार की लोकप्रियता जनता ही तय करेगी, जनता तो लोकप्रियता नापने के लिए संसाधन बनगे उमीदवारों के बीच का शास्त्रार्थ / और लोकपाल का कार्य होगा लिखित रूप में इन्टरनेट , या अन्य मीडिया के माध्यम से इस शास्त्रार्थ को जनता तक पहुचाने का / शास्त्रथ का माध्यम से उमीदवारो को शैक्षिक जानकारी की गहराई भी नाप लेंगे , असल में यह जनता ही नाप कर आपको बताएगी / अंदरूनी लोकपाल को यह सुनिश्चित करना होगा की सभी उमीदवारो के कार्यो और तर्कों को स्पष्टता और पारदर्शिता के साथ जनता तक पहुचाये / और यह  भी सुनिश्चित करे की सभी उमीदवार जायज़ , विधि सांगत तरीके से एक *स्वस्थ* प्रतिस्पर्धा करें / कोई भी "गला काट " प्रतिस्पर्धा नकारात्क्मक प्रतिस्पर्धा का प्रतीक है जिसमे गुणवत्ता बड़ने की बजाये ख़तम होने लगती है / जुगाड़-बुद्धि की यह कमजोरी होती है की वह अक्सर अपने ही बुने जान में फस जाते है/ सही को गलत और गलत को सही दिखाते दिखाते धर्म-अधर्म में भ्रमित हो जाते है/ सही तर्क की समझ को ख़त्म कर लेते है / और फिर धीरे-धीरे अज्ञानता वश में बेशर्मी के साथ खुल्लम-खुल्ला अनैतिक कार्य-विधि अपना लेते है / 

सही उत्तराधिकारी के चुनाव के यह तरीका आज से कहीं पहले ही दूंड लिया गया था / मगर हमेशा से जो मुश्किल रही है वह यह की जनता को तो कई बार यह भी नहीं पता होता की उनके क्षेत्र से उमीदवार कौन -कौन थे और जीता कौन /  ये आकास्मक नहीं है की आपका ये आन्दोलन आज इस सूचना-युग में 'सोसिअल नेट्वोर्किंग वेबसाइट' के माध्यम से ही सबसे अधिक प्रचलित हुआ / शायद सूचना-युग की सबसे बड़ी उपलब्धि येही है की  कई प्रशाशनिक क्रियाओं का सही तर्क अब जा कर जनता तक पंहुचा है / बलकी अभी भी जब में 'भारत निर्माण " के कुछ विज्ञापन टीवी पर देखता हूँ तो लगता है की शायद "rights" (हक) की सही समझ तो हम भारतीय अभी तक नहीं बना पाए है / ऐसा आभास होता है की 'हक ' का कार्य आपसी झगड़े करवाने का है , आपसी झगड़े सुलझाने के सही अंदरूनी रास्ता नहीं ! विज्ञापन में ऐसा लगता है की "हक की लड़ाई " में हक मिल जाने पर अब जम कर और ज्यादा झगडा होगा / और यह की हमारी  सरकार  कितनी दयावान बन गयी है जिसने हमे यह हक मुहैया करवा दिए है/ ऐसे जैसे की ये हक एक नागरिक का दूसरे नागरिक से प्रतिबद्धता और करार नहीं है , सरकार और संविधान की भीख मिली है सभी नागरिको को !
    और मौजूदा राजनीतिज़ भी येही सूचाते है की 'हक' कभी भी निंकुश और असीम नहीं होते / सब पुरानी ज़मीदारी व्यवस्था के पुलिंदे , या तो डंडा चलते है या डंडा खाते आये है / इसलिए परस्परता के इस समझ को कहीं भी सही संतुलन से नहीं समझ पाते है / हमारी सामाजिक प्रथाओं में जहाँ "साम, दाम, दंड, भेद " भी एक बहोत प्रचलित कार्य विधि बन गयी है , अब संतुलित समझ का जागरण और भी असंभव हो गया है / इसलिए उम्मीदवार के चुनाव का तरीक अज्ञानता के शुन्य में भटका कर "साम, दाम, दंड, भेद" की राह पकड़ता रहा है /
आपके अंदरूनी जन्लोक्पाल का कार्य बस इतना ही होगा की सुनिश्चित करे की जो कार्यविधि तय हुयी है, उसका पालन हो / और इसके लिए वह रोज़ की कार्यो को " लॉग बुक" के सामान वेबसाइट पर अपडेट करे / और कार्य विधि का बदलाव (change ) भी एक विधि के सामान पालन किया जाये / अभी तक की सभी पार्टिया येही पर अज्ञानता का फायेदा उठाती रही है / वेबसाइट का प्रयोग सिर्फ "पार्टी प्रचार" के लिए ही हुआ है, अंदरूनी पारदर्शिता और कार्य विधि में सुधार के लिए नहीं / सिर्फ आप की वेबसाइट ही अपने दैनिक कार्यो (कृत्य, उपलब्धि , विचार और तर्क)  को अपडेट कर वेबसाइट के माध्यम से पारदर्शिता देने की कोशिश कर रही है /  आपके भावी जन्लोक्पल को यह सुनिश्चित करना होगा की यह कार्य बंधित न हो और ऐसे ही चलता रहे / और की यह उसकी पोल खोल कर करंक न बने इसलिए कहीं कोई 'पोल' (गुप्त भेद) को बनाने ही न दे / अंदरूनी रण-नीतियों की  गोनियता को भी इसी प्रकार का न बनायीं की अगर वह खुल गयी तोह "पोल खोल" हो जाये /
  कभी कभी में यह सोचता हूँ की क्यों किसी भी corporate को अपने Hatchet Man को सभी कर्मचारयों में से सबसे इम्मंदार कर्मचारी को ही चुन्ना चाहिए / जो पारदर्शिता और इमानदारी की राह से होते हुए कठिन मंजिल का रास्ता डूंडा निकले वही असली गुणवान है/ वरना राह चलती, देहाती "जुगाड़ बंदी" तो सभी कर लेते है , और ये भूल-भुला कर की कल को उनकी ही कार्य प्रणाली दूसरा भी अपनाएगा तो नैतिकता का पतन हो जायेगा, राष्ट्र की मृत्यु , और असामाजिकता का उत्थान / फिर उस जुगाड़  बुद्धि  का लोहा रह ही क्या जायेगा , क्या उसकी शिक्षिक योग्यता और तीव्र-बुद्धि जब वह सभी सामाजिक मान्यता का तिरस्कार ही कर रहा है !?  और अगर शैक्षिक तौर पर सक्षम है और तीव्र बुद्धि है, तो उसका प्रयोग ऐसे हो की ये स्थिति न बने की अनैतिक कार्य करना पड़े /


For Indians, the greatest of unfulfilled managerial challenge since pre-history has been regarding the Laws of succession. Earlier, in vedic Era, when the four Varna were created by lord Manu in Manu smriti, the Varns were about the profession-based classification of people of different Jaati. Indians erred on the Laws of Succession by converting it into by-birth system. Brahmin , a designation fo
r any arbitrary man who may know the Brahm (the supreme cosmic knowledge), was solidified into by-birth transmission (succesion of 0 Knowledge from father to child. RESULT- A 'caste system' de-humanisation of human
being, worst ever on this planet.
Then, so many fights and killing on who will be the next king, and India was captured away by foreign power.
The Battle of mahabhrat is all about the battle of Succession, who will rule Indraprasth and who will rule Hastinapur. Ramayan revolves around succession, who will be the king of Ayodhya-- Ram or Bharat?
India continues to struggle to find the good merit based solution to its first prehistorical managerial challenge. In 20th century , we have the rule of Dynasty Politics. And last but not the least, in 21st century, if Final War Against Corruption and India Against Corruption have to succeed in defeating corruption they will eventually have to solve this biggest crisis for India - good , democratic Law of Succession.

Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता