"इंडिया अगेंस्ट करप्शन " के लिए सुझाव--> भावी प्रत्याशी की पात्रता

आधुनिक जन शाशन व्यवस्था में एक "राजनीतिज्ञ" का प्रारूप किस  तरह का होना चाहिए ? परंपरागत व्यवस्था में "राजनीतिज्ञ" एक शाशक के रूप में देखा जाता है जो की कहने को तोह जनता का सेवक है , सिर्फ नाम मात्र, क्योंकि उसको मिली सुविधाए उसे किसी राजा महाराजा से कम नहीं रखती / यह अचंभित , विरोधाभासी व्यक्तित्व किस तरह से उतपन्न हुआ इसे एतिहासिक स्थान से समझना बहोत आवश्यक है अगर किसी नए तरह की "राजनेतिक" व्यवस्था की नीव डालनी है /  शायद इसकी नीव हमे यहाँ से मिले की नयी "प्रजातंत्र' व्यवस्था पुरानी "सामंत वादी " ज़मीदारी व्यवस्था में से ही निकली है / प्रजातंत्र नें सामंवाद को विस्थापित किया मगर सामंत को मृत्युदंड नहीं दिया था / वह सामंत ही फिर "जन-मानस में एक आम व्यक्ति " का चोंगा पहन कर प्रजातांत्रिक व्यवस्था में "जनता का सेवक" बन कर वापस  शाशक  बन गया / कई **जुगाडात्मक कारणों** से इस तथ्य को भली भांति जानते हुए भी सभी ने इस व्यवस्था को लागू होने दिया क्योंकि इसमें भी सभी को 'जुगाड़' के माध्यम से मौका मिल रहा था/ और फिर प्रजातंत्र का भी तोह येही आह्व्हान था - सभी को बराबर का सुअवसर / भ्रम और भ्रान्ति के लिए इससे अच्छा और क्या चाहिए था - कह देना था अज्ञानी, बौद्धिकता से अनजान जनता से  , "यही होता है प्रजातंत्र " /
 वैसे इस तर्क की सामंतवादी मर्म(core) वाली प्रजातंत्री व्यवस्ता ने इस बात को प्रमाणित भी किया की "अवसर तो सभी को सामान रूप से मिला " , जिसने जहाँ चाह लूट लिया / जात-पात, धर्म-संप्रदाय और स्थान - भू-भाग से आगे निकलते हुए सभी को मौका मिला / मगर जैसा की जुगाड़ात्मक कार्य प्रडाली में होता है, तुरंत कार्य तोह सध जाता है , मगर जब प्रतिस्पर्धी भी यही  जुगाड़ात्मक कार्य प्रडाली अपना लेते है तो फिजा में सिर्फ ज़हर रह जाता है, सही और धरम सांगत कोई नहीं रह जाता /

साफ़ साफ़ और संक्षेप बोले तो दो-तीन बातें "जन सेवक " की पद संरचना से ताल मेल नहीं रखते / पहला यह की, "इन्हें कोई बड़े बड़े बंगले नहीं दिए जायेंगे / कोई लाल बत्ती की गाड़ी नहीं , कोई १ लाक रुपये की तनख्वाह नहीं" / यह तर्क में नहीं बैठता / आखिर "जन सेवक " का कर्त्तव्य क्या होगा ? सिर्फ एक पोस्ट मन , जनता की बात "आप" तक पहुंचाएगा / और निर्णय होगा ? कुछ काल्पनिक सा व्यक्तव्य हो गया / आम दिनों में जनता अपने जीवन संघर्ष में तल्लीन होती है / वह हर विषय पर अपनी राय बना ही नहीं पाती /  फिर जन सेवक ही 'विचारक' की भूमिका निभाता है / "निर्णय " लेने की क्रिया में एक महत्वपुर्ण क्रिया है विचारो का आदान-प्रदान / जन सेवक बाकि दूसरे जन-सेवक से भी उनके विचार का आदान प्रदान करता है / फिर एक तीसरी क्रिया होती है / भिन्न-भिन्न विचारों को आपस में एक दूसरे से अधिक से अधिक नज़दीक लाना / जैसे की एक गाँव में बिजली की कमी है,  और बगल के गाँव में बिजली और सड़क , दोनों की , तो सीमित बजट की स्थिति में बिजली या सड़क में से किस कार्य को परिपूर्ण करें , यह निर्णय होता है/ "निर्णय" और 'न्याय' में थोडा अंतर होता है / शैक्षिक , तकनीकी पहलुओं का ज्ञान तो दोनों ही जन सेवक में नहीं होगा ! इस लिए जन-सेवक इस पर एक तीसरे स्थाम्भ पर भी निर्भित होगा - कोई तकनीकी संसथान , इत्यादी /

संछेप में, इन सभी  बातों  का आभास यह है की  -- जन- सेवक को सुविधाएं तो मिलनी ही चाहिए / कर्म योगी को उसका फल तोह उसके कार्यों की श्रेणी की अनुसार दिया ही जाता है / यानि, "लाल बत्ती" न सही, एक अच्छी गौरवान्वित वाहन / एक कार्यालय / एक मकान / काम करने की तनख्वा / और तनख्वा उनके कर्तव्यों की सामाजिक मर्यदा के अनुसार, साथ ही जन सेवको में "भ्रस्टाचार " को मोह-भंग करने लायक / असल में लाल-बत्ती होना या न होना मुद्दा नहीं है / मुद्दा है "लाल बत्ती" की प्रतीकात्मकता -- "आत्म -पूजन " (feudal Narcissism ) (जिसे साधारण समझ में 'अहंकार' भी समझ लेते है /) आप इसे एक मनोरोग के रूप में देखें और मनोचिकित्सीय ज्ञान से अपने भावी "जन सेवकों" में निदान करें/ प्रत्याशी का ज्ञान को परखने का एक बिंदु 'आत्म पूजन व्यक्तित्व विकार ' (Narcissist Personality Disorder ) और सम्बंधित मनो-विकार नहीं होना चाहिए / 
 यहाँ पर, संविधान में पहले ही व्यवस्था है की चुनाव प्रत्याशी मानसिक तौर पर अस्वस्थ नहीं होना चाहिए / आप इस थोड़ा  कड़ा करते हुए  ऐसे  लोगो का चुनाव करें जो की मानसिक तौर पर आत्म-जागृत , और स्वस्थ होना चाहिए, ख़ास तौर पर सत्ता से सम्बंधित मिली ताकत से भ्रमित न होने वाला / इतिहास , जन प्रशाशन , वगेरह वगेरह विषयों के तकनिकी ज्ञान के परख लेने का एक मनोवैज्ञानिक कारन यह भी है की आप इस NPD मनो-विकार से अस्वस्थ व्यतित्व को प्रत्याशी बनाने से पहले पहचान ले / 

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