यूक्रेन और क्रेमीया प्रकरण पर एक विचार

   पश्चिमी देशों ने हाल मे घटी कई सारी जन-क्रांतियों में सराहनीय धैैर्य प्रदर्शित करा है। जहाँ-जहाँ (मिस्र, लीबिया, सीरिया ) भी यह क्रांति घटी थी वहां के इतिहासिक पटल पर एक तथ्य एकरूपी (common) था। वह यह कि वहां का शासक वहां लम्बे अरसे से शासन कर रहा था । जनता का असंतुष्ट होना एक विश्व व्यापी सत्य है - मगर यदि बदलाव को स्थान नहीं मिले तब यह असंतुष्टि एक क्रांति बन जाती है। फिर भले ही वहां की सरकारें इसे एक विद्रोह या एक विदेशी खुफिया साज़िश करार देती रहे।
    यही हुआ। सीरिया में असाड के शासन ने उत्पन्न क्रांति को असाड ने पश्चिमी देशों की साज़िश ही करार दिया है। फिर इस विद्रोह को दबाने के लिए उसने देश की सैन्य क्षमता को देश की जनता के विर्रुध ही झोंक दिया है। दो तीन माह पहले एक अत्यंत मार्मिक, मानवाधिकारों का उलंघन करते हुए, एक बहोत निर्मम रासायनिक हतियारों का हमला अपनी ही जनता के विर्रुध कर दिया । और आरोप यह लगाया कि यह पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित विद्रोहियों ने किया था।
शायद यह बेहतर होता की एतिहासिक सत्य को देखते हुए असाड खुद त्यागपत्र दे देते। मगर उनका चुनाव था कि विद्रोहियों को दबा दें।
   इन सभी देशों में एक अन्य समान तथ्य यह भी है की यहाँ शासक पुश्तौनी होते जा रहे हैं, यानी परिवारवादी । असाड से पहले उनके पिता ही सीरिया के "निर्वाचित" शासक थे।
   पश्चिमी देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, इत्यादि) ने जब असाड विषय में सीरिया में हस्तक्षेप करना चाहा तब इस बार उनके सांसदों ने यह अनुमति नहीं दी। उधर संयुक्त राष्ट्र में भी एक सामूहिक कार्यवाही के प्रस्ताव को रूस ने अवरोधित कर दिया ।
   गौर करने की बात है की रूस खुद एक प्रकार के दीर्घकालीन शासक की कठपुतली बना हुआ है। व्लादामीर पुटिन वहां खुद बहोत लम्बे अरसे से "निर्वाचित" हैं।असल में निर्वाचन क्रिया इन देशों में राज्य के नियंत्रण में होती है और खुफिया तौर पर हस्ताक्षेपित रहती है।
   यूक्रेन के क्रेमीया इलाके में रूस के हस्तक्षेप को, जाहिराना तौर पर, रूस की संसद ने पारित कर दिया है। यहाँ युक्रेन में भी विवाद यही से शुरू हुआ था कि यूक्रेन को यूरोपीय संघ में शामिल होना चाहिए या नहीं। वहां की सरकार इसके विरूद्ध थी जबकि जनता का एक हिस्सा इसका पक्षधर है। जब जनता के इस हिस्से ने वहां तख्तापलट कर दिया तब रूस ने रातों-रात क्रिमीय पर अतिक्रमण कर लिया। रूस ने पश्चिमी देशों जैसा धैर्य प्रदर्शीत नहीं किया। रूस ने सीरिया प्रकरण में असाड का साथ पहले ही दिया हुआ है।
   यह अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम एक व्यापक निति को बनाने और समझने में आवश्यक होंगे।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs