विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध 
(हिंदी भाषा में सीधा अनुवाद  http://rebirthofreason.com/Articles/Perigo/Law_vs_Custom.shtml)

अपने एक उत्कृष्ट निबंध , " अभी पूर्ण न्याय नहीं हुआ है " ( " Not Enough Justice ") में लेखक जो राओलैंड निष्-भाव दार्शानियों को अक्सर दी जाती विधि और कानून सम्बन्धी उस चुनौती पर प्रकाश डालते है जिसमे की कुछ इस तरह की विवाद आते है जिसमे कोई कानून का उलंघन तो नहीं हुआ होता है मगर अन्याय ज़रूर हुआ होता है, जिसमे की उदहारण आता है : किसी पशु पर की जाने वाला अमानवीय व्यवहार; या , किसी माता-पिता द्वारा अपनी संतान को शिक्षित न करने का निर्णय; या एक बॉयफ्रेंड जो की अपनी प्रेमिका को भावनात्क्मक तौर पर पीड़ित करता है ; या , एक पत्नी जो सिर्फ घास-पात का पका भोजन ही परोसती है /
                इन सभी क्रियाओं में किसी विधि का उलंघन नहीं है, मगर एक किस्म का अन्याय होता है / किसी फुरसत के विचारों जब इस उदाहरण पर गौर करे जिसमे एक पत्नी सिर्फ घास-पात वाला भोजन ही परोसती है , तो यह खास ध्याने देने का विचार है की किसी को घास पात का भोजन देने की क्रिया ही अपने-आप में एक बल और विवशता को प्रारंभ करने वाला पहला कृत्य है / और यही वह कृत्य है जिसका की विधि-विधान में निवारण नहीं मिलता ( हालाँकि किसी को घास-पात को भोजन बतला कर परोसने का धोखा भी एक छोटे किस्म की धोखा-धड़ी मानी जा सकती है, और धोका-धड़ी का विधि में निवारण है, जैसे दफा ४२० के तहत / ) सोचिये उन माता-पिता के बारे में जो अपनी संतानों को स्कूल न भेजने में उनका और सामाजिक हित मानते है (परन्तु शिक्षा गृहीत करने से उनका कोई विरोध नहीं है /) सभी बातो में इस पल वह मुख्य बिंदु जो विचारणीय है वह यह है की किसी भी स्वतंत्र-विचारक समाज (Libertarian Society ) में असल में प्रत्येक व्यक्ति को अशिष्ट, बे-अदब , क्रूर, असभ्य , गाली-गलोज, छिछला या तुच्छ विचारों वाला , षडयंत्र कारी , और छेड़खानी और जुगाड़-बुद्धि --- कुल मिला कर एक सम्पूर्ण मुर्खानंद-- होने की भी स्वतंत्रत होती है जिसे की सिर्फ विधि और क़ानून के प्रयोग से काबू में नहीं रखा जा सकता/

         स्वतंत्र-विचारक समाज को विधि के बाहर भी कुछ न कुछ अन्य व्यवस्था भी रखनी ही पड़ेगी मनुष्य में पायी जा सकने वाली इन सभी विक्रित्यों पर कोई बल और शक्ति का प्रयोग कर इन्हें काबू में रखने के लिए / और ठीक ऐसे ही पलो में स्वतंत्र-विचार--विरोधियों (Anti -Libertarians ) को भी मौका मिलता है यह बात स्थापित करने का की "सरकार क्या कर रही है लोगो को ऐसे कृत्यों को काबू में लेने के लिए ", "नहीं चाहिए हमे ऐसी स्वतंत्रता और ऐसी स्वतंत्र-विचारक व्यवस्था "/ ऐसे ही किसी पल में स्वतंत्र-विचार--विरोधियों को यह अवसर मिलता है की, "एक दमदार नेतृत्व और सरकार क्यों होनी ही चाहिए "/ स्वतंत्र-विचार--विरोधियों को यह  'समझाने'  का मौका मिल जाता है की क्यों किसी भी सरकार को नागरिक की " अभिव्यक्ति  की स्वतंत्र" पर भी नियंत्रण रखने की आवश्यकता है वरना लोगो कैसे एक-दूसरे की भावनाओं को चोटिल करते फिरेंगे /

        निबंध की पूरी चर्चा यह दर्शाती है की कैसे स्वतंत्र-विचारक समाज में जहाँ विधि और क़ानून का कार्य की सीमा-क्षेत्र समाप्त होती है वहां से सामाजिक प्रथाओं, आस्थाओं और कर्मकांडो के कार्य का दायरा आरम्भ होता है /

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