भारत का संविधान और Work Place fairness की कमी
भारत का संविधान और Work Place fairness की कमी
मेरा अपना मानना है कि इस देश में प्रजातंत्र अपने वास्तविक रूप में अस्तित्व ही नहीं करता है । जो है, वो छद्म प्रजातंत्र हैं। जैसे , छद्म secularism भी है। कांग्रेस पार्टी ने ७० सालों के शासन के दौरान सभी राजनैतिक आस्थाओं का छद्म रूप इस देश की संस्कृति में प्रवेश करा कर संविधान को भीतर से खोखला कर दिया है। संविधान के शब्द हैं, मगर उनमे आत्मा नहीं बची है।
मगर कांग्रेस सीधे जिम्मेदार नहीं है। ब्राह्मणवाद जिम्मेदार है। कांग्रेस जनक है ब्राह्मणवाद की। ब्राह्मण वर्ग की नीति और सोच अक्सर राष्ट्रवाद का चोंगा पहन कर कार्य करती है, ठीक वैसे जैसे मंदिरों में राम नाम की चोली पहन कर और जनेऊ का धागा बांध कर के नगरवधू के मज़े लेते थे, शूद्रों का दमन , शोषण किया करते थे। "अनुशासन" प्रथा ब्राह्मणी सोच की कमी और अवगुण है। वह लोगों को अपनी सोच और मानस्कित के "अनुशासन" से समाज को चलाना चाहते थे, और आज भी हैं।
अंग्रेज़ों ने 1857 के ग़दर के बाद वैसी सैनिक ग़दर की पुनरावृति से बचने के कई उपाए लगाए थे। यह जो अनुशासनिया व्यवस्था है, यह वही की देन है। लोग अपनी अन्तरात्मा से कार्य करने के लिए बचपन से ही मनोवैज्ञानिक अवरोधित है। क्योंकि अतीत के रेकॉर्डों पर दर्ज़ अनुशासन कार्यवाही के किस्सों ने उन्हें पैदाइशी सन्देश दे दे कर अवरोधित किया हुआ है। अँगरेज़ भारतीयों को सख्त "अनुशासन " अर्थात अपनी अंतरात्मा की धवनि को अनदेखा करते हुए आज्ञा पालन करने के लिए प्रशिक्षित करते थे। इसे वह "अनुशासन" बुलाते थे। ऐसा करने से सैनिक ग़दर के लिए दुबारा कदाचित संघठित नहीं सकते थे। !
1947 की आज़ादी के बाद यह अनुशासन का शब्द ब्राह्मणवाद की मानसिकता से मेल खा गये। ब्राह्मणों ने कोर्ट पर कब्ज़ा किया, उच्च पदों पर कब्ज़ा किया। और अनुशासन कार्यवाहियों के कारनामों से देश के जन प्रशासन में से political neutrality ही नष्ट कर दी। इसके बाद से लोगों को कार्यालयों में गुट बना कर ही लाभ मिल सकता था। यही workplace politics कहलाती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का आरम्भिक जन्म ऐसे ही हुआ। workplace politics । ये जो "समाजवादी" मानसिकता की पार्टियों का जन्म है, यह ऐसे ही प्रताड़ित लोगों से हुआ है, जो कार्यालयों में अनुशासन प्रक्रिया से त्रस्त थे, और इसका दोषी किस उच्च पद पर बैठे "ब्राह्मण " को मानते थे , जो की उनकी बात को सुनता नहीं था, और उनके संग न्याय नहीं करता था। promotion और posting , transfer और leaves के मामले में , disciplinary एक्शन की कार्यवाही में। ऐसे प्रताड़ित लोगों को जब लगाने लगा की नारायण दत्त तिवारी की सरकार को हटा करके ही अपने हितों की रक्षा करने के लिए मार्ग बन सकता है, तब इस देश में "बहुजन समाज" , और "समाजवादी " विचारधारा वाली पार्टियों को जन्म हो गया , इन्ही प्रदेशों में।
मगर तथाकथित "ब्राह्मणवाद" का निराकरण आज भी नहीं हो सका है. क्योंकि इन पार्टियों ने तो सिर्फ ब्राह्मणो को स्थानांतरित करके उनकी जगह अपने लोग बिठाने का कार्य किये था , procedural fairness को प्रसारित करने हेतु कुछ भी नहीं किया।
नतीजा क्या हुआ ? समाजवादी सत्ता में आये , उन्होंने खीर चट करि , और संघी भूखे पेट देखते रह गए। और फिर संघी आ गए , उन्होंने खीर चट करना शुरू किया , और समाजवादी भूखे पेट देख रहे हैं। यह चूहे -बिल्ली का खेल चालू है तब से।
और workplace fairness लाश बानी पड़ी है आज भी, -- वो जिसमे आज़ादी की आत्मा बसनी चाहिए थी आज़ादी के उपरांत। और जब आज़ादी की आत्मा का आगमन ही नहीं होगा प्रत्येक इंसान के भीतर में , तब फिर संविधान को लूट लेना, बर्बाद कर देना तो बाए हाथ का खेल बन ही जाएगा। और समाज एक सही खिलाडी के आने का इंतज़ार करेगा की कोई आये और उड़ा दे धजज्जिया !
नरेंद्र मोदी और संघी वही top खिलाडी है, संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वाले।
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