Post Truth राजनैतिक संस्कृति और समाज में व्यापक मनोविकृति

 Post Truth वाली राजनैतिक संस्कृति अपने संग में व्यापक मनोविकृति भी ले कर आयी है। 


लोग और अधिक अमानवीय, क्रूर, शुष्क, कठोर और आक्रांत व्यवहार करने लगे है एक दूसरे से।


ऐसा क्यों? क्या संबंध होता है राजनैतिक व्यवस्था का समाज की व्यापक मनोअवस्था से? क्या अत्यधिक छल वाली राजनीति अपने संग व्यापक मनोविकृति ले कर आती है?


Post truth की मौजूदा राजनैतिक संस्कृति ने सत्य और न्याय के परखच्चे उड़ा कर रख दिये हैं। कभी भी, कुछ भी सत्य अथवा असत्य साबित किया जा सकता है, चाहे वह कितनों ही भीषण विपरीत बोधक क्यों न हो।  

ऐसा हो जाने से लोगों की व्यापक मानसिकता पर क्या असर आता है?

लोगों को आशंका और भय सताने लगता है! लोगों को यह "जागृति" आती है कि सत्य से ज़्यादा आवश्यक होती है नेता के प्रति निष्ठा । सत्य अब विस्थापित हो जाता है निष्ठा और चापलूसी से। लोगों का समझ आने लगता है कि यदि वह चापलूसी नही करना चाहते हैं तब उनको जीवन जीने का एकमात्र तरीका है कि "अपने को बचा कर चलो। वरना पता नही कब कहां तुन्हें फँसा दिया जाये और तुम कितने ही सही क्यों न हो, प्रशासन यदि तुमसे खुस नही है (क्योंकि तुमने उनकी खुशामद यही करि थी) तब तुम्हे वह आसानी से ग़लत साबित कर देंगे। यह post truth प्रशासन है, जहां सत्य वह है जो प्रशासन को पसंद है। और ऐसे में आपका सही होना तो कोई ममतलब ही नही रखता है"।


यह जो ऊपर वाली विचार शैली है, अंग्रेज़ी भाषा में इसे cynicism बुलाते है। संक्षेप में बोल तो, लोग cynicism पर उतर आते है।।cynicism ही उनके हर निर्णय और कर्म को प्रोत्साहित/हतोत्साहित करता है। कल को किसी सड़क दुर्घटना में किसी की मदद करेंगे तो क्या भरोसा कहां किस पचड़े में फंस जाएं।

पता नही कब कहां आपको फसाया जाये किस ग़लती के लिए, किस अमुक घटना में।


कोरोना महामारी के आरम्भ के महीनों में यही सोच लोगों को और अधिक अमानवीय बनाती रही थी। मानव शव बहोत बुरी तरह से उठाये गये थे, उनका सम्मान नही हुआ है। मृतकों के परिजनों को कठोरता से वियोग में रोका गया और प्रतिबंधित किया गया। 


नतीज़ा क्या हुआ है?

एक व्यापक भय और cynicism मनोविकृति का प्रसार। की कब कहां हमारा भी नम्बर न लग जाये? 

तब लोगों ने अपनी जान के बचाव के लिए क्या कदम उठाये? और कठोरता और अमानवीयता से , निष्ठुरता से अपने पड़ोसी से पेश आना शुरू कर दिया। उनके मन की आशंका थी कल को वह फंस गये तो क्या भरोसा कोई उनकी मदद को आयेगा भी की नही? यही आशंका उनके आचरण को तय करने लग गयी।


प्रशासन भी कोई मददगार नही रह गया था। वह तो उल्टा आपके ही पीछे हाथ धो कर पड़ जा रहा था , और आज भी है। कहीं गलती से भी कोई उल्टा angle निकल आया, तब तो गोदी मीडिया और फ़िर प्रशासन, आपके हालात को उल्टा कर सकता है। यही सोच लोगों के दिमाग में हावी हो गयी है।


Post truth की राजनैतिक संस्कृति ने इस तरह से समाज को बर्बाद करना आरम्भ कर दिया है, व्यापक स्तर पर।

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