खेती संबंधित विधेयक और समाजवादी मानसिकता
खेती संबंधित विधेयक में मोदी सरकार के विचार इतने ख़राब नही है, हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर इस विधेयक के मूल विचार किसी भी समाजवादी मानसिकता के समाज मे आसानी से उतरने वाले नही है।
समाजवादी मानसिकता मौजूदा युग मे विकास के पथ की सबसे बड़ी अवरोधक है। समाजवादी लोग वो होते हैं जो व्यापार, उद्योग और विज्ञान को अपने आचरण में उतारने में पिछड़े होते हैं। वह अपने बच्चों को विज्ञान पढ़ाना पसंद तो करते हैं, मगर यदि वही विज्ञान जीवन मे उतारना पड़ जाए, तब वह विरोध करने लगते हैं।
खेती और मौजूदा समाज का विषय देखिये ।बढ़ती हुई आबादी का पोषण कैसे किया जाएगा, ताज़ा, cancer रोग तत्वों से मुक्त organic अन्न कैसे उपज किया जाएगा बड़ी मात्रा में ताकि बड़ी आबादी का पोषण किया जा सके, पशुओ से meat आहार , दुग्ध कैसे प्राप्त होगा ताकि बाजार को मिलावटी दूध और मिठाइयों से मुक्ति मिल सके, यह सब के सब प्रश्न समाजवादी "पिछड़ी" बुद्धि के परे चले गए हैं।
तो समाजवादी सोच में खेती को उद्योग बनाने की अक्ल थोड़ा सा मुश्किल हो गयी है। कैसे और क्यों निजी कंपनियों या की सहकारी समितियों को आमंत्रण देना आज की आवश्यकता हो गयी है, भविष्य को संरक्षित करने के लिए,इसकी विधि को समझ लेना समाजवादी सोच के लिए मुश्किल पड़ने लगी है।
निजी कंपनियां असल मे किसान की partner के रूप में बाजार में उतारने की तैयारी है, न कि उद्योग स्वामी के रूप में। क्यों? क्योंकि खेती उद्योग के लिए आवश्यक संसाधन - भूमि और श्रम- वह तो दोनों ही किसान के ही पास में हैं ! कंपनि तो मात्र बाजार संबंधित marketting कौशल लाएगी, या कि खेती में उच्च वैज्ञानिक तकनीक , मशीन संसाधन इत्यादि को एकत्रित करेगी !
अब यही बात एक समाजवादी मानसिकता के दृष्टिकोण से देखिए और अपने अंदर में क्रोध , आक्रोश को पलते हुए खुद को महसूस करिये। :--
- "किसान को minimum price सुनिश्चित नही रह जायेगी"।
-- " किसान कंपनी के विरुद्ध कोर्ट में नही जा सकेगा।"
--- " किसान अपनी ही जमीन पर मज़दूर बना दिया जाएगा।"
---- " किसान की ज़मीन हड़पने की तैयारी है।"
--- "किसान की जमीन बड़े बड़े धन्नासेठों को सौंपने की साज़िश हो रही है।"
सच मायने में सोचें तो मोदी सरकार की नीति खराब नही है। नियत भले ही ख़राब हो, कि उत्तर भारत के "समाजवादी" और "सरकारीकरण" मानसिकता के लोग इससे पहले की उद्योग और व्यापार को समझ सकें, इसकी आवश्यकता को बूझ सकें, मोदी जी के गुजरात के उद्यमी मित्र पहले ही बाजार पर कब्ज़ा करके monopoly बना चुके होंगे !
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