केशवानंद भारती फैसला : समीक्षकों की राय : भारत में प्रजातंत्र को दफन करने का ताबूत
Judicial review की power सिर्फ supreme court के पास होती है और इसका प्रयोग तब हुआ था जब मोदी सरकार ने National Judicial Accountability Bill लाया था। कोर्ट ने यह कह कर इस कानून को खारिज़ कर दिया कि इस बिल के मध्यस्थ आवश्यक separation of power नष्ट हो जाएगा।
मगर judicial review की power का सर्वोच्च न्यायालय ने प्रयोग तब नही किया है जब मोदी सरकार सभी लोगो को अपने आधार कार्ड अनिवार्य करने को कहती है। सर्वोच्च न्यायालय ने आज नागरिक एकांकता और सरकार के अनिच्छित surveillance से नागरिकों को बचाने के लिए कार्यवाही नही करि है।
तो कुल मिला कर सर्वोच्च न्यायालय सिर्फ अपने स्वार्थी हक़ की खातिर अपनी एक विशिष्ट शक्ति का प्रयोग करता है, वरना प्रजातंत्र और जनता के हित और सरकार के भक्षण से बचाव जाए भाड़ में !
यह सब हुआ कैसे ?
न्यायविदों के बीच इस सवाल के जवाब की खोज में सर्वोच्च न्यायलय में लिए गए इस सब निर्णयों का अध्ययन जारी है।
कुछ न्यायविदों ने खोज निकाला है कि इन सब विषयों पर उठी तार्किक debate के पीछे में एक उल्टा पुल्टा न्यायपालिका का निर्णय पड़ा हुआ है जिसे की *केशवानंद भारती मुकद्दमा* नाम से जाना जाता है।
कुछ न्यायविदों ने खोज निकाला है कि इन सब विषयों पर उठी तार्किक debate के पीछे में एक उल्टा पुल्टा न्यायपालिका का निर्णय पड़ा हुआ है जिसे की *केशवानंद भारती मुकद्दमा* नाम से जाना जाता है।
न्यायशास्त्र विषय के छात्र , यानी LLB उपाधि के छात्रों को इस मुकद्दमे के बारे में बखूभी पता होगा। LLB के कोर्स में *केशवानंद भारती मुकद्दमा* की वही अहमियत है जो कि गणित विषय मे pythogoras theorem की, या रसायन शास्त्र में gas law की। यानी यह एक मुकदमा इतना महत्वपूर्ण बिंदु है। इसका इतना उच्च दर्जे के पद देते हुए llb के छात्रों को पढ़ाया जाता रहा है।
मगर आज कल घट रहे न्याययिक फैसलों के उल्टे पुल्टे सामाजिक प्रभावों को देखते हुए जब समीक्षकों ने फैसलों के आधारभूत तर्क को छानबीन करना शुरू किया तो उन्होंने पाया है कि यही केशवानंद भारती मुकद्दमा ही मूल जड़ है उल्टा पुल्टा होने का जिसने की प्रजातंत्र और जनता की मर्ज़ी के स्थान पर न्यायपालिका की मर्ज़ी ने ले लिया है और जनता को हमेशा के लिए पीड़ित और सरकारी आदेशो के विरोध का परिणाम भुगतने के लिए छोड़ दिया गया है।
इसी *केशवानंद भारती मुकद्दमे* के फैसले से निकले तर्कों के प्रवाह में आज भारत मे प्रजातंत्र नष्ट हो चुका है और जो कुछ चल रहा है वह असल मे न्यायपालिका और संसद के बीच एक अवैध सांठगांठ है कि तुम हमे मत सत्ताओं और हम तुम्हे नही सतायेंगे, बाकी प्रजातन्त्र, जनता की मर्ज़ी, उनके मौलिक अधिकारों तक को नष्ट कर दो, हड़प लो, या जो कुछ करते रहो। !!
मगर आज कल घट रहे न्याययिक फैसलों के उल्टे पुल्टे सामाजिक प्रभावों को देखते हुए जब समीक्षकों ने फैसलों के आधारभूत तर्क को छानबीन करना शुरू किया तो उन्होंने पाया है कि यही केशवानंद भारती मुकद्दमा ही मूल जड़ है उल्टा पुल्टा होने का जिसने की प्रजातंत्र और जनता की मर्ज़ी के स्थान पर न्यायपालिका की मर्ज़ी ने ले लिया है और जनता को हमेशा के लिए पीड़ित और सरकारी आदेशो के विरोध का परिणाम भुगतने के लिए छोड़ दिया गया है।
इसी *केशवानंद भारती मुकद्दमे* के फैसले से निकले तर्कों के प्रवाह में आज भारत मे प्रजातंत्र नष्ट हो चुका है और जो कुछ चल रहा है वह असल मे न्यायपालिका और संसद के बीच एक अवैध सांठगांठ है कि तुम हमे मत सत्ताओं और हम तुम्हे नही सतायेंगे, बाकी प्रजातन्त्र, जनता की मर्ज़ी, उनके मौलिक अधिकारों तक को नष्ट कर दो, हड़प लो, या जो कुछ करते रहो। !!
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