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Showing posts from January, 2018

The process of how discrimination is carried out by teachers, professors and those pretending to be someone's mentor

There used to be student in my class who would indulge in theft activities right in full view of everyone's eyes ,but of course by a very clever way of shielding himself in case he would get caught. He would freely pick things from other's school bag and if caught, he would say that he was only giving the person a practise in keeping his stuff nicely secured, as if only being a good mentor in training him to keep his guard fast. And ofcourse, the other times if the person failed to notice, the object stealing mission would get successful. This method of theiving was not a sure shot, targeted mechanism, but it was surely a more successful, more guarded path to doing a wrong, that too in full view of everyone, and  thus this method worked on a statistically higher bet of success. Teachers, professors in college and the appraising officers in offices indulge in discrimination behaviour on the very similar lines. The easier method of indulging in discrimination is by pretending...

श्रीमान न्यायालय जी, एकान्तता का अधिकार तो राज्य की असीम शक्ति को ही सीमित करने के लिए होता है !

(fb post dated 25 Aug 2017)   एकान्तता यानी privacy के विषय में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी नागरिक की एकान्तता को भेद सकने के संसाधन और क्षमता सिर्फ और सिर्फ राज्य कर पास ही होते हैं; नागरिक अपने पड़ोसी नागरिक की एकान्तता को भेद सकने की क्षमता नही रखता है। कहने का अभिप्राय यह है कि एकान्तता का अधिकार को मौलिकता का स्थान देने का उद्देश्य ही यह है कि वास्तव में यह अधिकार राज्य बनाम नागरिक की ही आपसी खिंचा तनी का विषय है, और इस अधिकार का महत्व है राज्य और नागरिक के बीच मे शक्ति संतुलन को प्राप्त करने का। गलतियां तो प्रतिपल हर कोई कर रहा होता है, राज्य या न्यायालय भी कोई दैविक आतरात्मा से निर्मित संस्थान नही है जो कि कभी कोई गलती करे ही ना। ऐसे में राज्य को असीम शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए एकांकता का अधिकार का मौलिक बनाये जाना एक महत्वपूर्ण उद्देश्य पूर्ण करता है। और हम नागरिक वर्ग शायद इसी लिए ऐसा समझ सकते हैं कि एकान्तता का अधिकार भी उस श्रेणी में आता है जो कि किसी तथाकथित प्रजातंत्र को उसकी वह प्रकृति प्रदान करवाता हैं जिससे वह प्रजातंत्र कहलाने लायक...

Why Indian form of "Republican Democracy" is a flawed system

(from Facebook post dated 20Nov2017) भारत ने अपना प्रशासनिक तंत्र ब्रिटेन से हस्तांतरण में प्राप्त किया था। और ब्रिटेन ने यह तंत्र स्वयं अपने विशिष्ट सामाजिक -ऐतिहासिक घटनयेओं से trial and error से रचा बुना था। इसीलिये उनके तंत्र की खासियत आज भी यह है कि वह republican डेमोक्रेसी नही, बल्कि monarchical डेमोक्रेसी है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां डेमोक्रेसी तब आयी जब जनता के आक्रोश ने राजा को आंतरिक युद्ध के बाद हरा दिया था। मगर उनके विचारक चालक बुद्धिमान थे। उन्होंने यह मानवीय ज्ञान प्राप्त कर लिया की power corrupts, absolute power , absolutely corrupts। तो उन्हें पावर को नियंत्रित करने का तरीका ढूंढा power balance (या checks and balance) के सिद्धांत पर। इसके लिए राजशाही को खत्म नही किया बल्कि संसद बना कर राजशाही को लगाम में कर दिया। इससे क्या मिला , जो कि भारत मे नकल करके लिए republican democracy तंत्र में नही है ? भारतीय तंत्र में ब्रिटेन के मुकाबले Keeper of the conscience की भूमिका देने वाला पद कोई भी नही बचा। britain में चूंकि राजशाही dynasticism पर है, इसलिए वह आजीवन...

ग़ुलामी के लिये अभिशप्त है भारतीय संस्कृति

Via Mani S कभी कभी यूँ लगता है कि big bang से लेकर आज तक के सामाजिक इतिहास को अपने सामने संक्षिप्त रूप में घटते देख रहा हूँ। आआपा के अंदरूनी संघर्ष में वह सब मसालों के चुटकी भर मात्रा के अंश ...

केशवानंद भारती फैसला : समीक्षकों की राय : भारत में प्रजातंत्र को दफन करने का ताबूत

Judicial review की power सिर्फ supreme court के पास होती है और इसका प्रयोग तब हुआ था जब मोदी सरकार ने National Judicial Accountability Bill लाया था। कोर्ट ने यह कह कर इस कानून को खारिज़ कर दिया कि इस बिल के मध्यस्थ आवश्यक separation of power नष्ट हो जाएगा। मगर judicial review की power का सर्वोच्च न्यायालय ने प्रयोग तब नही किया है जब मोदी सरकार सभी लोगो को अपने आधार कार्ड अनिवार्य करने को कहती है। सर्वोच्च न्यायालय ने आज नागरिक एकांकता और सरकार के अनिच्छित surveillance से नागरिकों को बचाने के लिए कार्यवाही नही करि है। तो कुल मिला कर सर्वोच्च न्यायालय सिर्फ अपने स्वार्थी हक़ की खातिर अपनी एक विशिष्ट शक्ति का प्रयोग करता है, वरना प्रजातंत्र और जनता के हित और सरकार के भक्षण से बचाव जाए भाड़ में ! यह सब हुआ कैसे ? न्यायविदों के बीच इस सवाल के जवाब की खोज में सर्वोच्च न्यायलय में लिए गए इस सब निर्णयों का अध्ययन जारी है। कुछ न्यायविदों ने खोज निकाला है कि इन सब विषयों पर उठी तार्किक debate के पीछे में एक उल्टा पुल्टा न्यायपालिका का निर्णय पड़ा हुआ है जिसे की *केशवानंद भारती मुकद्दमा* न...