वाद विवाद और मानवीयता की सांझा समझ का योगदान
इतने दिनों से और इतना प्रचंड वाद-विवाद करने के उपरान्त अब शायद आवश्यकता है की हम एक खोज कर लें की विद्यालयों में साहित्य क्यों पढ़ाया जाना चाहिए | उच्च माध्यमिक स्तर पर एक नाटक , ड्रामा या कविता को पढ़ने का उद्देश्य क्या होता है ? क्या साहित्य की शिक्षा मात्र एक भाषा ज्ञान के उद्देश्य से ही होनी चाहिए ? साहित्य समूह को मानवीयता विषय वर्ग क्यों बुलाया जाता है ?
साहित्य की शिक्षा हमे शायद छोटे-छोटे अंतर और परख सिखाती हैं | जैसे --कब एक त्यागी एक भगोड़ा बन जाता है , और कब एक दान ही कहलाता है --यह आंकलन प्रत्येक व्यक्ति का अलग अलग होता रहेगा अगर दोनों का मानवीयता के प्रति नजरिया भिन्न हो |
भिन्न नजरिया एकमेव निर्णय नहीं दे सकते और एकमत न्याय नहीं कर सकते |
न्याय एक नहीं होगा तो समाज में बिखराव बना ही रहेगा |
शायद इसके ज़िम्मेदार हमारी शिक्षा नीति और हमारा सामाजिक साहित्य --सिनेमा , कला इत्यादि होंगे की इन्होने हमे एक समान मानवीय मूल्यों की परख नहीं सिखायी|
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