'स्यूडो' विचार संकृति वाला एक देश
"सेक्युलेरिज्म" (यानि राज्य विधान और धार्मिक विधानों को अलग-अलग रखने की परंपरा, जिसका मूल स्रोत है सामाजिक संवाद में ईश्वर और आस्थावानों का सीधा सम्बन्ध, बिना किसी ब्राह्मण , पंडित, पादरी या मुल्लाह के मध्यस्तथा के) -- एकमात्र ऐसा विचार नहीं है जिसे हम भारतियों ने गलत रूप में समझ रखा है। भारत में कई सारे विचारों का 'स्यूडो'('pseudo-') निर्मित हो चुका है। आप प्रजातंत्र के विचार को ही देखिये, या की समाजवाद (समाजवादी होने का दावा करने वाली राजनैतिक पार्टी के खुद के आचरण को समाजवाद की मूल समझ से परखिए), स्वतंत्र-अभिव्यक्ति , आपसी भाईचारा, विश्व बंधुत्व या की राष्ट्रीयता भाव,- इन सभी की जो समझ हम भारतियों में उपलब्ध है वह असल में "स्यूडो" ही हैं। स्यूडो-सेक्युलेरिज्म, स्यूडो-स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्यूडो-संसद, स्यूडो-प्रजातंत्र, स्यूडो-सोशलिस्म, स्यूडो-नेशनल इंटीग्रिटी, स्यूडो-राष्ट्र, स्यूडो-यूनिवर्सल ब्रदर-हुड, इत्यादि और तो और, अपने धर्म, अपने मजहब, की जो समझ हम में है वह भी "स्यूडो" ही है। स्यूडो-रिलिजन। "स्यूडो" से मेरा अर