commentary on today's power failure in Northern india
नौकरी-शुदा और पेशेवार लोगो की हमेशा से यह कमी जानी गयी है की रोज़-मर्रा के जीवन संघर्ष में लिप्त यह वर्ग कला , साहित्य जैसे अतरिक्त-समय वाले विषयों पर शोध पूर्ण ज्ञान नहीं प्राप्त कर पाते / प्राचीन रोमन काल में ऐसे वर्ग को प्लेबियन (Plebeian) (अर्थात "सर्व -साधारण ") नाम से पुकारा गया था, जो की दास व गुलाम बन्ने के लिए ही उचित माने जाते थे / उच्च पत्रिचियन (Patrician ) वर्ग (अर्थात कुल-वान ) ही सत्ता का भोग करते थे और Plebeian पर शाशन करते थे / राजनीती की कला में सिर्फ patrician ही माहिर होते थे / Plebeian, यानी निचले तपके के लोग , आज के professional और service class के सामान है / राजनीति से परे , अपना week-end मनाने में मशगूल / राष्ट्र के चिंतायों से परे/ विधि-विधान राजनेति कला-विज्ञानं, लोक-प्रशाशन के विषयों से अनजान / Plebeian को विधि-विधान अथवा क़ानून से सम्बंधित ज्ञान नहीं होता था और वह अक्सर कर के नियम अनजाने में तोड़ बैठते थे , मगर उनको उनको नियन उलंघन की सज़ा हमेश दी जाती थी / राष्ट्रीय व सामाजिक चिंताओं से उन्हें अलग रखने के लिए ही Gladiator का तमाशा प्रारंभ किया गया, और अधिक जटिल समस्यों में मुद्दे को कला-सांगत कर के पेश कर दिया जाता था, जिस से की तकनिकी बिंदु लिप्त हो जाये, Plebeian वर्ग में मत-विभाजन हो जाये और वह Patricians वर्ग पर एक साथ मिल कर दबाव न बना सकें /
माजूदा काल में इस के उद्दहरण है की आज के हुए विद्युत्-निश्प्रदीपर्ण (power black out ) उत्तर प्रदेश ज़िम्मेदार था की नहीं ? उत्तर प्रदेश ने हिस्से से अधिक विद्युत् लिया था की नहीं ? CERN ने तकनिकी प्रमाण दे कर इलज़ाम लगाये है, मगर उतर प्रदेश ने महज़ एक वैधानिक नकार (legal denial ) किया है, तकनीकी पहलू कोई मजबूत नहीं दिया है / मगर Plebeian जनता में मत-विभाजन के लिए यह काफी है / मुलायम सिंह, मायावती के पास आये से अधिक सम्पति है की नहीं, सीबीआई ने केस तोह दर्ज किया था, मगर इन्होने हमेशा यह कह कर इलज़ाम नकार दिया ही इलज़ाम राजनैतिक साज़िश से प्रेरित है / वैज्ञानिक सत्य का खुलासा तो हो ही नहीं सकता क्यों की सभी जांच संथाएं किस्सी न किस्से अन्य राजनैतिक पार्टी के अंतर्गत कार्य कर रही होंगी जो भी केंद्र में सर्कार चला रही होगी / बस, plebeian वर्ग में मत-विभाजन के लिए सत्य को स्थापित न होने देना काफी है -- एक plebeian-वर्ग कोर्ट में जब तक प्रमाणित नहीं हो जाता तब तक स्वीकार नहीं करेगा, और दूसरा plebeian-वर्ग लक्षणों के आधार पर भी अपने निर्णय देने को तैयार होगा, प्रमाणों की स्थापन के बगैर !
इल्जामों को अंधकारमय(unknown , or uncertain ) कर लेना, या फिर प्रशन-चक्र (loop) में डाल देना, या फिर विरोधी के कमी को इसी समय उजागर कर देना ("You too did this ") -- यह सभी तरीके काफी है plebeian वर्ग को भ्रमित कर उन पर शाशन करने के लिए / कला के ज्ञान में कमज़ोर plebeian वर्ग आत्मपरक विषयो (Subjective issues ) में सटीक प्रबंधिया-निर्णय (management science decisions) नहीं ले सकता / वैसे भी, कला विषयों में कभी भी कोई अथवा कुछ भी सम्पूर्ण-सही या सम्पूर्ण-गलत नहीं होता है / अर्थात, किसी को भ्रमित करने के लिए विषये-वस्तु के गुण अथवा अवगुण को सही टाइमिंग से दर्शा कर plebeian जनता के विचारों को बदला जा सकता है /
plebeian वर्ग अपने विचारों में बहोत भ्रमित होता है और अक्सर कर के विचारों में बहोत अधिक भ्रांतियां (fallacies) पाले हुए रहता है / इसलिए उनके निजी जीवन और समाज की दिक्कते कभी भी ख़तम नहीं हो पाती /
प्रजातंत्र का उदगम ऐसे ही दिक्कतों से उबरने के लिए हुवा था, व्यक्ति व नागरिक को अपने जीवन में ज्ञान के द्वारा भ्रान्ति-मुक्त व आत्म-ज्ञानी होने का अवसर देने के लिए / इसी मकसद से समाज को वैचारिक स्वतंत्र (freedom of expression) को प्रदान करवाया गया , जिस से की तमाम असत्य और भ्रान्ति-पूर्ण विचारों में सत्य-विचार स्वयं ही विचारों के आपसी-प्रतिस्पर्धा से सामने उबार आये / वाद-विवाद (debate) और द्वंद्ववाद (dialectics ) सत्य-विचार के स्थापन के दो तरीके माने जाते है / असली प्रजातंत्र की यही पहचान है की वह सत्य और अपनी दिक्कतों के सही समाधान को स्वयं से ढूढ़ ही लेता है /
Comments
Post a Comment