ग्रीक और जापानी संस्कृति ,बनाम हिंदुओं की संस्कृति
कबीर दास जी ने कहा हुआ है
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत ही छिप जायेगा, ज्यों तारा परभात।।
---
एक औसत बनारसी (और भारत वासी) का दिमाग केवल इस हद तक ही चलता है।
जापानी और ग्रीक(यूनानी ) हमसे श्रेष्ठ सभ्यताओं के दो नाम हैं, जो की अपनी सोच जीवन की अनिश्चितताओं के आगे ले जाने की काबिलियत रखती हैं। वो केवल ये नही सोचती है कि कैसे इंसान का जीवन भाग्य की डोर पर लटकता रहता है, कुछ भी तय शुदा नही है। अपितु वो ये भी सोचती है कि कही, कुछ तो फिर भी, निश्चित होता है,पूर्व तयशुदा होता है, जिसके बारे में पूर्व घोषणा,भविष्यवाणी सटीकता से करी जा सकती है। वो क्या क्या है, और कैसे उसके दम पर हम इंसान के जीवन को सुरक्षित बना सकते है, भाग्य की लटकाने वाली डोर से छुड़ा सकते है।
No comments:
Post a Comment