किसी तानाशाह का जन्म कैसे होता है?

तानाशाह की अक्ल कैसे काम करती है?

तानाशाह ये कतई नही सोचता है कि सही क्या है, और ग़लत क्या है। ज़ाहिर है, क्योंकि इतनी असीम, अपार शक्ति का स्वामी हो कर भी यदि ये सोचने लगेगा, तब फ़िर तो वो शक्ति बेकार हो कर स्वयं से नष्ट हो जायेगी। 

तानाशाह की शक्ति  आती है उसके आसपास में बैठे हुए उसके सहयोगियो और मित्रों से। वो जो की तानाशाही में भूमिका निभाते है बाकी आम जनता के मनोबल को कमज़ोर करके उन्हें बाध्य करते है हुए आदेशों का पालन करने हेतु। तानाशाही का निर्माण होता है जब सरकारी आदमी आदेशों के पालम करने लगते हैं अपने ज़मीर की आवाज़ को अनसुना करके।  

द्वितीया विश्व युद्ध के उपरान्त हुए, विश्व विख्यात न्यूरेम्बर्ग न्याययिक सुनावई के दौरान ये मंथन हुआ था कि आखिर हिटलर जैसा तानाशाह का जन्म कैसे हो जाता है किसी समाज में? कैसे अब भविष्य में हम किसी भी देश में किसी तानाशाह के जन्म को रोक सकेंगे? इस मंथन में बात ये सुझाई पड़ी थी कि तानाशाह तब पैदा होते हैं जब सरकारी आदमी बेसुध, बेअक्ल हो कर आदेशों का पालन करने लग जाते हैं। जन बड़ी संख्या में सरकारी आदमी (पुलिस, और सैनिक, जवान और अधिकारी) आदेशों से बंध जाते हैं --जाहिर है सभी अपनी अपनी नौकरी बचाने के ख़ातिर ही ऐसा करते है  -तब तानाशाही की प्रचंड शक्ति उतपन्न हो जाती है और किसी न किसी तानाशाह का जन्म हो जाता है।

न्यूरेम्बर्ग सुनवाई ने तभी से ये नियम यूरोप के समाज में अनिवार्य कर दिया कि यदि कोई सैनिक या अधिकारी अपने ज़मीर की आवाज़ के चलते कू आदेश का पालन नहीं करेगा, तब उसे दंड नहीं दिया जा सकेगा !

तानाशाह के पास जब प्रचंड शक्ति होती है तब उस पर बाध्यता होती है कि अपने समीप बैठे परामर्श देने वाले सहयोगियों को भी कुछ ईनाम दे उनकी ख़िदमत का। सभी परामर्श सहयोगी (counsellors) अपने अपने मुँहमाँगा ईनाम तराश कर बटोरने लगते हैं। किसी को धन चाहिये होता है, किसी को मस्ती और यौवन का ऐश्वर्य चखने का मज़ा, और किसी को ego kick चाहिए होती है अपने दुश्मनों पर हुकूमत कर सकने की। 

तानाशाह की मज़बूरी होती है कि वो ये सब लें लेने दे अपने परामर्श सहयोगियों को। और बदले में यही लोग फिर उस तंत्र को चलाते हैं जिसमे सरकारी आदमी आदेशों का अंधाधुंध पालन करता है, और तानाशाह की शक्ति को देशवासियों के ऊपर क़ायम रखता है।

तानाशाही शक्ति की एक परम ज़रूरत ये भी होती है कि वो रोज़ कुछ न कुछ करके अपने होने का सबूत जनता के सामने रखे! और इसके लिये उसे ज़रूरी हो जाता है कि थोड़ा बेकाबू होने का एहसास करवाती रहे आम जनता को। ये कैसे किया जा सकता है?  आसान है - मनमानी करके और अपेक्षाओं को झुठला करके। आम आदमी जो भी अपेक्षा करेगा प्रशासन से ,कि प्रशासन दयावान और न्यायप्रिय होने की अब्धयता में उसके संग सलूक कैसा करेगा, तो तानाशाही ताकत मात्र उस अपेक्षा को कुचल देने और झुठलाने की ख़ातिर ठीक उल्टा काम कर देगी। इससे लोगों को सदमा भी लगेगा कि अपनी-अपनी बचाओ, विद्रोह करने से दूर रहो। और इससे तंत्र के अंदर की तानाशाही शक्ति का परीक्षण भी समय-समय पर हो जायेगा कि कहीं कोई सैनिक, सिपाही या अधिकारी ऐसा तो नहीं बचा है जो तानाशाही आदेशों की अवहेलना करते हुए अपनी जमीर की आवाज के अनुसार कार्य करने को ललयनित हो अभी भी।

ये मनमर्ज़ी करना और महज़ आपकी अपेक्षाओं को झुठलाने की ख़ातिर उल्टा काम कर गुज़रना - ये तानाशाही की पहचान होती है।

और अपने परामर्श सहयोगियो को उस तानाशाही शक्ति का ईनाम देना उसकी बहोत बड़ी बाध्यता होती है । और जहां पर कि दुनिया भर की दरिंदगी और हैवानियत घटती है, आम आदमी के ऊपर।

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