जैसे कुत्तों को घी नहीं पचता, वैसे ही मूर्खो को स्वाधीनता नहीं भाती

नीच आदमी को जब न्याय मिलने लगता है, लोग equality, समानता और बराबरी का ओहदा उसे देने लगते हैं, तब उनकी नीच मानसिकता वश उसे लगता है कि ये सब तो उसने अपनी लड़ाई जीत कर कमाया है, ये तो उसका हक था, इसमें दुनिया वालों की दरियादिली, मानवीयता का कोई योगदान नहीं है।

आज दुनिया के कई सारे तथाकथित प्रजातंत्र देशों में मूर्खनगरी तंत्र ने चुनाव प्रक्रिया पर घात करके कब्जा जमा लिया है , और उनमें विराजमान लोग ऐसी वाली नीच मानसिकता से भरे हुए हैं।

वो लोग अपनी जनता को देश पर गर्वानवित होने के नाम पर विश्व सूचना तंत्र यानी internet पर अंटबंट लगाम लगाने की नित दिन नई कवायद कर रहे हैं।
ऐसा करते समय ' चूतिया' (माफ करिएगा, मगर आजकल बताया जा रहा है की ये शब्द शुद्ध संस्कृत शब्द है) लोग ये भूल जा रहे हैं कि कितना और क्या -क्या संघर्ष किया था इन्ही "फिरंगी" अमेरिकी कंपनियों के मालिक -engineers ने, इस विश्व व्यापक सूचना तंत्र की स्थापना करने के लिए  1990 के दशक में। दुनिया भर की किताबो में ये संघर्ष और इसका ब्यौरा दर्ज है। मगर फिर चूतिया लोग तो परिभाषा के अनुसार जन्म ही ऐसे लेते हैं की उनको लगता है अनाज supermarket  से आता है, किसान की खेती करने से मालूम नही क्या होता है!
तो चूतिया लोगो को जब पकी पकाई खीर मिलने लगती है तब वो धन्यवाद देने की बजाए उसमे नुस्खे निकालने लगते हैं।

क्यों और कैसे इस वैश्विक सूचना तंत्र को मुफ्त और अवरोध विहीन बनाया गया, क्यों संघर्ष किया गया ताकि इसका जन्म हो सके, ये सब गहराई और नीति , न्याय नैतिकता वाली बातें चूतिया लोगो को कहां समझ में आने वाली हैं। उनको तो बस नुस्खे निकाल देने है, जो की हो सकता है की वाकई में हो भी, मगर जिनका होना इस व्यापक सूचना तंत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक भी है

चूतिया कौन है? वो जिसको friction की शक्ति की कमियां दिखाई पड़ती है सिर्फ, उसकी संसार को चलाने के लिए आवश्यकता नहीं समझ आती है। या फिर की आवश्यकता तो समझ आती है, मगर कमियां नही दिखाई पड़ती।

कहने का अर्थ है की चूतिया वो होता है जो व्यापक हो कर दोनो विपरीत पहलुओं को एक संग नही देख पाता है

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अगर हमारे अंदर नमकहरामि नही हो, तब हमे ये साफ साफ दिखाई पड़ जाना चाहिए था कि इन्हीं फिरंगी , 'bloody capitalist ' अमेरिकियों की बदौलत वो सब अन्वेषण , अविष्कार हुए जिनसे कंप्यूटर जैसे यंत्र को जन्म हुआ। और फिर वापस इन्हीं "दौलतमंद" अमेरिकियों की बदौलत इस वैश्विक सूचना तंत्र यानी world wide web की रूपरेखा ऐसे ढली कि वो अधिकांश सेवाएं मुफ्त में देता है, और ऐसे ऐसी जानकारियां आज दुनिया के प्रत्येक नागरिक को आसानी से तथा निःशुल्क मिल जा रही है जो की कभी किसी जमाने में अमीर और गरीब के फासले को नाप दिया करती थी। गंदगी जरूरी नहीं की दौलतमंद अमेरिकियों में ही हो, कभी अपने गिरेबां में झांक कर देखिए शायद ऐहसान–फरमोशी हमारे ही भीतर में पड़ी हो।

तो इसी मुफ्त, निःशुल्क सूचना तंत्र सेवा से दुनिया के ना जाने कितने लोगो को शिक्षा मिली, प्रेरणा मिली,नौकरी मिली,व्यापार और व्यवसाय भी मिले , मगर अब मूर्खो ने दुनिया पर कब्जा जमा लिया है। मूर्ख वो होते हैं जो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को पहचाना नहीं पाते है और उसे ही हलाक करके दावत उड़ा लेते हैं।

ऐसे में अब twitter को स्वामित्व में थोड़ा और निजी हो जाना तो सही हो लक्षण और भविष्य सूचक माना जाना चाहिए। जैसे जैसे चूतिया लोग दुनिया के देशी पर काबिज हुए जा रहे हैं और अनापशनप तर्क देकर जनता को बेवकूफ बनाने, बरगलने में देश की धन शक्ति को खर्च कर रहे हैं, तब तो सही होगा कि एलान musk जैसे निजी स्वामी अब twitter पर से किसी सरकार की ’दरख्वास्त’ पर कोई सूचना अवरोध करने का भाड़ा लेने लगे और निजी जेब गरम करे, बजाए की मुख लोगो को सहयोग दे अपने ही देश को बर्बाद करके इल्जाम अमेरिका पर ठोक देने से !

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