रूस की हिन्दू धर्म ग्रंथों की समझ

 पुतिन बाबू और रावण के चरित्र में बहोत समानताएं दिखाई पड़ रही है। दोनों ही आत्ममुग्धता से पीड़ित हैं, और इसके चलते अपने देश और अपने परिवार को खुद ही बर्बादी के मंज़र पर ले गए हैं।  जिस तरह से रूस आज दुसरे अन्य देशों को डरा-धमका रहा है कि अमेरिका से मैत्री न करो, रूस के सैन्य कार्यवाही की आलोचना न करो, रूस को यूक्रैन से सेना हटाने की चुनौती मत दो , ये सब पुतिन के अंदर जमे 'अभिमान' की निशानदेही है। गर्व चाहे राष्ट्र की श्रेष्ठता का हो, चाहे धर्म का -- ये इंसान में आत्ममुग्धता का रोग प्रवेश करा देता है। 

मॉस्को में ISKCON के मंदिरों को खुलने की अनुमति को लेकर रूसी सरकार ने अभी चंद वर्षो पहले आपत्ति उठाई थी। रूसी सरकार का कहना था की हिन्दुओं का धर्मग्रन्थ भगवद गीता और महाभारत , दोनों का वितरण और शिक्षण रूसी समाज और रूसियों के परिवार में आपसी-कलह करवाएंगे। दरअसल इन दोनों ग्रंथो के प्रति ये वाली आलोचना अक्सर छाया बन कर साथ चलती है। और रूसी सरकार ने उसी आलोचना के अनुसार आपत्ति रखी थी।  बरहाल भारतीय दूतावास के समझाने बुझाने पर अनुमति मिल गयी थी।

रामायण का मर्म भी अक्सर ऐसी आलोचना छवि का शिकार होता रहा है।  -- परमज्ञानी, श्रेष्ठा प्रजापालक, शिवभक्त रावण का अभिमान कैसे उसे, उसके परिवार और उसके देश लंका को बर्बादी में ले गया -- मर्यादाओं (moral self restraining force) को मानने वाले श्रीराम के आगे, आलोचनक ये वाले सबक नहीं देख कर राम के चरित्र की भावुक कमज़ोरी देखने लग जाते हैं - कि, कैसे मर्यादाओं का पालन इंसान के जीवन में से सुख और ऐश्वर्य हो समाप्त कर देते है; इंसान को श्रीराम के जैसे ही दुखों ,आत्म-पीड़ा, और self-defeat  से भरे जीवन में ले जाते है , उससे 'बेवकूफी' वाले decisions करवाते है। 

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