संसद भवन में कानून को पारित करने का उद्देश्य क्या होता है
कानून का लेखन (संसद में पारित करने की प्रक्रिया) का उद्देश्य ये कतई भी नहीं होता है कि कोई उद्योगिक/अर्थ चक्रिय/सामाजिक कार्य कर गुज़ारा जाये।
कानून लेखन और फरमान निकालने में अंतर को समझिये।
कानून लेखन का उद्देश्य समाज का दमन करके या बाध्य करके प्रशासन चलाना भी नही है। न ही स्मृति बढ़ाना मात्र है।
कानून लेखन का उद्देश्य प्रशासनिक और न्यायायिक धूर्तता को समाज और प्रशासन में से समाप्त करना है। कहने का अर्थ है कि जो कार्य जिस तर्क और सिद्धान्त से आज किया जा रहा है, उस तर्क, सिद्धांत को स्थापित करके समाज की स्मृति में बसा देना कानून-लेखन का विशिष्ट उद्देश्य होता है।
इसका अभिप्राय हुआ कि यदि दमनकारी या जबदस्ती तरीकों से किसी लेखन कर देने के बाद में, भविष्यकाल में यदि विपक्षी दल सत्ता में आने के उपरान्त "संसोधन" को आसानी से या सस्ते/कपट तरीकों से करके तर्क और सिद्धांतों को बदल कर कुछ और करने लग जाये, तब फ़िर कानून लेखन का विशिष्ट उद्देश्य मात खा जाता है। समाज में धूर्तता प्रवेश कर जायेगी और वो समाज, फिर, आपसी द्वन्द से ही समाप्त हो जायेगा। बाहरी आक्रमणकारी का आना तो बस एक बहाना होगा, क्योंकि आन्तरिक गलन से समाज तो पहले ही खोखला हुआ , तैयार होगा रौंदे जाने के लिए।
केहने का अर्थ है कि कानून का सर्वसम्मत होना उसके उद्देश्य प्राप्ति की उच्च कसौटी है, समाज को बचाने के लिए। कानून को पारित होने से पूर्व ये आश्वस्त हो जाना चाहिए कि विपक्षी दल भी उसे वैसे ही चलायेगा, जब यदि सत्ता परिवर्तन होगा।
संसद में कानून को पारित करवाने के विशिष्ठ उद्देश्य को समझना ज़रूरी है। धूर्तता को रोक सकना समाज में आपसी विश्वास को बढ़ाने का महायज्ञ होता है।
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