क्यों गुप्त पड़ा हुआ है भारतीय समाज के भीतर में बसा हुआ ब्राह्मण विरोध? कहाँ से आया और क्यों ये अभी तक अगोचर है?

औसत ग्रामीण भारत वासी के जीवन में दुःख और कष्ट इतना अधिक होता है कि उसका सामना करने का आसान तरीका बस ये है कि दुःख की वास्तविकता से मुँह मोड़ कर उसे ही सुखः मानने लग जाएं। यानी reality को distort कर लें।ब्राह्मण reality /सत्य/वास्तविकता के प्रति चेतना नही देता समाज में, जागृति नही देता, उनको सामना करना नही सिखाता है समाज को, बल्कि distortion का फ़ायदा उठाता है और अपना व्यक्तिगत लाभ लेने लगता है। यद्यपि भारत के समाज में ऐसे विद्वान और सिद्ध पुरुष आते रहे जो कि ब्राह्मणों के जैसे नही थे, और समाज को दुःखों का सामना करने तरीका बता कर सत्य के प्रति बौद्ध भी देते रहे हैं। भगवान बुद्ध, महावीर, गुरु नानक ऐसे ही नामो में से हैं।

स्कूली पाठ्यक्रमो के रचियता इतिहासकारों ने यहाँ अच्छा कार्य नही किया मौज़ूदा पीढ़ी के प्रति, जब उन्होंने किताबों में राजनैतिक इतिहास को अधिक गौड़ बना कर प्रस्तावित कर दिया है। धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को दर्ज़ नही किया, खास तौर पर वो अंश जो की समाज में चले आ रहे ब्राह्मण बनाम अन्य समूहों के संघर्ष को दर्शाता है। मौर्य शासकों का अंत कैसे हुआ, भुमिहार कहाँ से आये, पुष्यमित्र शुंग कौन थे, उनका शासन कैसा था, भारत की अखंडता के संग क्या किया, बौद्धों के संग शुंग भूमिहारों ने क्या बर्ताव किया, जैन चार्वाक संस्कृति पर हमला क्यों किया ब्राह्मणों ने, क्यों चार्वाक के साहित्य को नष्ट कर दिया -- ये सब ज्ञान औसत भारत वासी को तनिक भी नही है। वहीं , अभी अगर सावरकर बनाम गाँधी , नेहरू, सुभाष , भगत सिंह पर debate करवा लो , तब संघ घराने से निकला भारतवासी ऐसे-ऐसे बिंदु और "तथ्य" का बयाना देने लगेगा मानो जैसे उसने अपनी आँखों से देखा और कानों से सुना है !

और मुग़लों को अपशब्द कहलवाने हो, तब तो पूछिये ही नही कहाँ तक जा कर ये कर सकते है हिंदुत्ववादी घराने का वर्तमान काल के भारतवासी।

पुष्यमित्र शुंग की करनी पर औसत भारतवासी , इतिहास का छात्र क्यों जागृत नही है, ये सवाल पूछने लायक है। कौन था शुंग वंश और क्या किया था उसने, ये बातें इतिहास पाठ्यक्रम के लेखकों ने क्या सोच कर गौढ़ नही मानी तथा गायब कर दी, इस सवाल को खोजने की जरूरत है। इसी तरह, आचार्य ओशो रजनीश (जैन) के lecture की audio record आज भी सुनाई पड़ती है जिसमे वो सवाल उठाते हुए व्याख्यान दे रहे हैं कि आखिर क्यों चार्वाक के साहित्य को नष्ट कर दिया (ब्राह्मणों ने)।

हिंदुओं के अपने धार्मिक इतिहास  की दृष्टि से ये सब गौढ़ तथ्य माने जाने चाहिए थे। मगर , अद्भुत की ये सब तो कहीं भी पुस्तकों में हैं भी नही, इनका जिक्र भी नही हैं।कौन है ये लेखक और क्या सोच ,या साज़िश है इनके दिमाग़ की, इस पर जाँच करवाई जानी चाहिए और पाठ्यक्रमो में बदलाव लाया जाना चाहिए । ऐसा पाठ्यक्रम जो कि छात्रों में जागृति दे सके की भारत की वर्तमान राजनीति में जो कोई भी बल देने वाले छोर है , वो कौन कौन से है और क्या उत्पत्ति मूल है उन छोर का। वर्तमान स्कूली पाठ्यक्रम सिर्फ स्तुतिगान करके गांधी/नेहरू परिवार का चेला-चपाटी बनाने के अनुसार रचा गया मालूम देता है। न कि समाज को समझने के अनुसार और उसकी मूल प्राकृतिक घुमावों का लाभ ले कर उसे नियंत्रित करने के अनुसार !

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