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Showing posts from January, 2022

संसद भवन में कानून को पारित करने का उद्देश्य क्या होता है

कानून का लेखन (संसद में पारित करने की प्रक्रिया) का उद्देश्य ये कतई भी नहीं होता है कि कोई उद्योगिक/अर्थ चक्रिय/सामाजिक कार्य कर गुज़ारा जाये। कानून लेखन और फरमान निकालने में अंतर को समझिये।  कानून लेखन का उद्देश्य समाज का दमन करके या बाध्य करके प्रशासन चलाना भी नही है।  न ही स्मृति बढ़ाना मात्र है। कानून लेखन का उद्देश्य प्रशासनिक और न्यायायिक धूर्तता को समाज और प्रशासन में से समाप्त करना है।  कहने का अर्थ है कि जो कार्य जिस तर्क और सिद्धान्त से आज किया जा रहा है, उस तर्क, सिद्धांत को स्थापित करके समाज की स्मृति में बसा देना कानून-लेखन का विशिष्ट उद्देश्य होता है।  इसका अभिप्राय हुआ कि यदि दमनकारी या जबदस्ती तरीकों से किसी लेखन कर देने के बाद में, भविष्यकाल में यदि विपक्षी दल सत्ता में आने के उपरान्त "संसोधन" को आसानी से या सस्ते/कपट तरीकों से करके तर्क और सिद्धांतों को बदल कर कुछ और करने लग जाये, तब फ़िर कानून लेखन का विशिष्ट उद्देश्य मात खा जाता है। समाज में धूर्तता प्रवेश कर जायेगी और वो समाज, फिर,  आपसी द्वन्द से ही समाप्त हो जायेगा। बाहरी आक्रमणका...

क्यों गुप्त पड़ा हुआ है भारतीय समाज के भीतर में बसा हुआ ब्राह्मण विरोध? कहाँ से आया और क्यों ये अभी तक अगोचर है?

औसत ग्रामीण भारत वासी के जीवन में दुःख और कष्ट इतना अधिक होता है कि उसका सामना करने का आसान तरीका बस ये है कि दुःख की वास्तविकता से मुँह मोड़ कर उसे ही सुखः मानने लग जाएं। यानी reality को distort कर लें।ब्राह्मण reality /सत्य/ वास्तविकता के प्रति चेतना नही देता समाज में, जागृति नही देता, उनको सामना करना नही सिखाता है समाज को, बल्कि distortion का फ़ायदा उठाता है और अपना व्यक्तिगत लाभ लेने लगता है। यद्यपि भारत के समाज में ऐसे विद्वान और सिद्ध पुरुष आते रहे जो कि ब्राह्मणों के जैसे नही थे, और समाज को दुःखों का सामना करने तरीका बता कर सत्य के प्रति बौद्ध भी देते रहे हैं। भगवान बुद्ध, महावीर, गुरु नानक ऐसे ही नामो में से हैं। स्कूली पाठ्यक्रमो के रचियता इतिहासकारों ने यहाँ अच्छा कार्य नही किया मौज़ूदा पीढ़ी के प्रति , जब उन्होंने किताबों में राजनैतिक इतिहास को अधिक गौड़ बना कर प्रस्तावित कर दिया है। धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को दर्ज़ नही किया, खास तौर पर वो अंश जो की समाज में चले आ रहे ब्राह्मण बनाम अन्य समूहों के संघर्ष को दर्शाता है। मौर्य शासकों का अंत कैसे हुआ, भुमिहार कहाँ से आये...

क्या भेद है अमरीकी प्रजातंत्र और ब्रिटिश प्रजातंत्र में

गहराई में देखा जाये तो अमेरिकी डेमोक्रेसी उनकी संस्कृति में free gun running की बदौलत टिकी हुई है, जबकि ब्रिटिश democracy को उनके समाज में टिके रहने का स्तम्भ है: standards तथा checks and balance विधि। ब्रिटिश समाज में equality  और mutual respec t   शांतिप्रिय विधि से प्राप्त किया जा सकता है, मगर अमेरिकी समाज में हिंसा (या हिंसा के भय) की बदौलत ही ये प्राप्त होता है। मानक और संतुलन  को तय करने की भूमि यदि प्रिय है, तब वो निश्चय ही अंतरात्मा को बुलंद करने के लिए किये गए उपायों से प्राप्त होती है। अन्यथा उसको अशांत हो जाना तयशुदा है। तब ऐसे में दूसरी जिस विधि से शांति प्राप्त हो जाती है, वो है  free gun running ।   अमेरिकी और ब्रिटिश प्रजातंत्र के उपज का ये सूक्ष्म अंतर बहोत कम लोगों को समझ में आयेगा और दिखाई पड़ेगा। आम जनता को लगता है कि free gun running की व्यवस्था अमेरिकी समाज पर अभिशाप है। जब भी हमें किसी अमेरिकी college , विश्वविद्यालय में कोई बड़ी gun shooting की घटना की खबर सुनाई पड़ती है, तब हम भारतीय लोग उसपे दुःख व्य...

बौद्ध इंसान को instinctive व्यवहारों को तलाशने के लिए प्रेरित करता है

 छोटे बच्चों पर नज़र रखना ज़रूरी होता है की कहीं वो खुद ही अनजाने में आपस में "गन्दी बात" या "गन्दा काम" करना न शुरू कर दें! ऐसा क्यों?  क्योंकि वास्तव में ये सब instinctive भी सकता है , ज़रूरी नहीं कि कहीं, किसी ख़राब फ़िल्म या फोटो को देखने से ही आये।  इस नज़र से ये बात समझ आती है कि  माता-पिता को अपनी बच्चों को 'गन्दे काम' से बचाने के लिए न सिर्फ ज्ञान को रोकना होता है , बल्कि रोकते समय यह भी ध्यान रखना होता है कि कहीं उनकी मनाही का तरीका ही बच्चों में "बौद्ध" नहीं जगा दे , यानि उनके instinct को जागृत कर दे, और वो curious (जिज्ञासु ) हो जाये उसके प्रति ! और यदि ऐसा हो गया तब बच्चों को लग जायेगा कि कहीं कुछ तो है जो उनके मातापिता उनसे छिपा रहे हैं, और वो नहीं चाहते है की बच्चों को उसके बारे में पता चले ! ये जिज्ञासा बच्चों को वापस उस "अनजान' 'गन्दी' चीज़ की तलाश की तरफ खुद-ब-खुद ले जाएगी, वो भी माता पिता से छिप छिप कर।