स्वतन्त्र अभिव्यक्ति और perceptions की अभिव्यक्ति

 कुणाल कामरा के ट्वीट सब के सब mere perceptions ही कहेै जा सकते हैं। स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत हर व्यक्ति को किसी भी घटना, व्यक्ति इत्यादि पर अपना मत रखने का अधिकार है। ये perceptions वही मत होते है।

प्रशांत भूषण मामले में सोली सोराबजी के विचारों के अध्ययन से एक बात समझ मे आ जाती है - कि, प्रशांत भूषण की गलती बस यह थी कि किसी ताथयिक बात को गलत प्रस्तुतिकरण किया था। हालांकि वह भी ताथयिक गलती छोटी ही थी, और अर्धसत्य भी थी।

तो बात यह बनती है कि किसी तथ्य को यदि जानबूझकर गलत या मरोड़ करके प्रस्तुत किया जाता है किसी भी छवि को बनाने, बिगड़ने के उद्देश्य से, तब और केवल तब ही मानहानि का मुकदमा ठहरता है, अन्यथा मुकदमा विलय कर जाता है

कुणाल कामरा के tweets में तो कुछ भी ताथयिक है ही नही। केवल perceptions ही है ! उनकी खुद की मन की छवि कोर्ट के प्रति ! भले ही वह नकारात्मक ही क्यों न हो , मगर वह ताथयिक नही है, महज़ perception है।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs