box बुद्धि, इंसान की बौड़मता
इंसान बौड़म क्यों होता है?
इंसान की बुद्धि जन्म से ही box में बंद हो कर सोचने के लिए निर्मित होती है। यह box उसका जीवन रक्षक अस्त्र होता है और संग में यही उसके बौड़म होने का कारण भी होता है।
Box को खोल देने से इंसान को स्व-मूर्खता से मुक्ति मिलने लगती है।
मगर box को खोला कैसे जाता है?
आज मित्रों के संग बैठे बैठे बात निकल पड़ी कि अच्छे, गुणवत्तापूर्ण दीर्घायु जीवन का क्या कारण है- राज क्या होता है? बात आरम्भ हुई थी अर्जेंटीना के फुटबाल सितारे डिएगो माराडोना के निधन से, जो कि कल के दिन मात्र 60 वर्ष की आयु में हृदय गति रुकने की वजह से चले गये। तो प्रथम बात यह निकली कि एक खेल प्रतियोगी होने के वास्ते जहां उनकी चुस्ती-फुर्ती बाकी इंसानों से कुछ बेहतर अपेक्षित करि जानी चाहिए थी, उसके बावजूद उनके संग ऐसा हो गया।
यहां से किसी मित्र ने बात की दिशा यों दे दी कि शहरी जीवन थोड़ा कमज़ोर हो ही गया है, जहां अब अल्पायु आम बात हो चली है। मुझे अपना आभास यूँ था कि अगर हम दीर्घायु गुणवत्तापूर्ण जीवन की बात जनमानस के निवास क्षेत्र - शहरी अथवा ग्रामीण - के आधार पर ही करनी है तब शायद ग्रामीण जीवन ख़राब होता है शहरी जीवन से एक दीर्घायु, गुणवत्तापूर्ण जीवन दे सकने में।
मित्र मंडली के बीच अपने अपने कटाक्ष निकलने लगे थे शहरी आवास बनाम ग्रामीण आवास के पक्ष-विपक्ष में।
तभी मुझे हमारे एक विश्लेषण आधार के आसपास में एक box बुद्धि के होने का एहसास हुआ। box बुद्धि यह कि हम ऐसे विषयों के चिंतन के दौरान बारबार विश्लेषण के आधार को आवास क्षेत्र ही क्यों चुनते हैं? क्या कुछ भी मापन पूर्ण, meaningful निष्कर्ष अध्ययन हुआ भी है, इस दिशा से ?
नही, न?
तो क्यों न हम box बुद्धि को तोड़ देने की चेष्टा करते हैं? क्यों नहीं हम दीर्घायु, गुणवत्तापूर्ण जीवन के भेद को समझने के प्रति विश्लेषण का आधार बदल देते हैं - उद्योग स्वामी बनाम उद्योगिक कर्मी - का आधार चुनाव कर लेते हैं ?
आखिर इस आधार पर तो हमारे मध्य कोई मतभेद नही ही रहने वाला है कि अधिक पैसे वाले लोग शायद ज्यादा सरलता से दीर्घायु प्राप्त कर रहे हैं आजकल, और संग में गुणवत्तापूर्ण जीवन भी, बनस्पत कार्मिक जीवन वाले व्यक्तियों के।
कहीं हालफिलहाल की किसी whatsapp पोस्ट में यह सुझाव भी दिया गया है की जहां जहां retirement आयु कम है, वहां दीर्घायु जीवन औसतन बेहतर है।
पता नहीं की यह whatsapp पोस्ट सही है या कोई नया षड्यंत्र है जनमानस के मंथन को नियंत्रित करने का।
मगर एक बात तो है, कि शुद्ध वायु और स्वच्छ जल के आसपास में गुणवत्तापूर्ण दीर्घायु जीवन प्राप्त करना अधिक सरल है, बजाये दूर दराज क्षेत्र में रहते हुए, यदि वह दूर दराज़ क्षेत्र प्रदूषण के स्रोतों से विमुक्त नही हो सके तो।
दीर्घायु जीवन की एक कुंजी होती है अच्छे भोजन, शुद्ध वायु वातावरण, और स्वच्छ जल की सहज़ उपलब्धता । इस बात पर सभी में आम सहमति है। मतभेद सिर्फ यह है कि क्या यह शहर में आसानी से उपलब्ध होता है, या फ़िर कि ग्रामीण क्षेत्र में? क्या यह अच्छे धनवान लोगों को सहजता से उपलब्ध होता है, या कार्मिक middle class के व्यक्ति को?
हम जब box बुद्धि से मंथन करते हैं, तब विचारों की गंगा का प्रवाह सिर्फ श्रेष्ठता सिद्ध करने में बहने लगता है - कि, शहरी जीवन अधिक श्रेष्ठ होता है, या की ग्रामीण जीवन। ऐसा करने में हमे एहसास नही रह पाता है कि हम box बुद्धि में फँस चुके हैं ।
क्योंकि हम यह भूल बैठते हैं कि वास्तविक मुद्दा यह है ही नही कि श्रेष्ठ जीवन कहां पर मिलता है! बल्कि तुलना करने का उद्देश्य है कि कम कुंजी या उन भेदों को चिन्हित करें जो कि दीर्घायु गुणवत्तापूर्ण जीवन देने में भूमिका निभाते हों।
Box बुद्धि अक़्सर यही करती है मंथन , चिंतन के दौरान। वास्तविक विषय से हल्का सा भटकाव आसानी से प्रवेश कर जाता है, क्योंकि लोग अभ्यस्त किये जा चुके होते हैं बारबार किसी एक विशेष दिशा से ही विषयवस्तु का दर्शन करते रहने के।
यह box बुद्धि ही इंसानो को बौड़म बनाती है।
Box बुद्धि में फँसा हुआ व्यक्ति बारबार एक ही आधार से तुलना करके बारबार उसी निष्कर्ष, उसी कुतर्क में धंसता रहता है। box बुद्धि से मुक्ति तब मिलती है जब हम कुछ नया आधार ले कर कुछ नया मत प्रस्तुत करना सीख जाते हैं, और फ़िर उस नये मत को सिद्ध करने के नये विद्धि भी हम ही प्रस्तावित करने लगते है, जो की सर्वसम्मति को प्राप्त कर सकें।
वास्तव में हमारे जीवन में ऐसे अवसर कम मिलते हैं जब हम box बुद्धि को तोड़ते हुए कुछ कर गुज़रे। हम सब box बुद्धि से ग्रस्त लोग है। box बुद्धि को तोड़ने वाला व्यक्ति अक्सर पहेलियों और रहस्यों को सुलझाने की अभिरुचि का व्यक्तित्व रखने वाला होता है। क्योंकि रहस्य और पहेली सुलझाने में भी ठीक यही मानसिक-बौद्धिक कौशल का प्रयोग किया जाता है -- सर्वप्रथम किसी प्रस्तावित प्रत्यय (hypothesis) को प्रस्तुत करना, फ़िर उसके परीक्षण या सिद्ध करने की विधि भी खुद से ही प्रस्तावित करना। और यदि परीक्षण विद्धि सर्वसमति प्राप्त कर ले, तब फ़िर प्रस्ताव को सिद्ध होने के लक्षण दे कर उसे प्रत्यय यानी theory में तब्दील कर देना। और फ़िर यदि theory वापस सर्वसिद्ध हो गयी, तब उसे एक नियम में तब्दील कर देना।
Box बुद्धि के टूट जाने वाली क्रिया हमारे इर्द गिर्द शायद ही कभी हमें घटते हुए देखी हो तो हो।
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