राजनीति अस्त्र और कूटनीति अस्त्र अलग होते हैं

 राजनीति अस्त्र अलग होता है, और कूटनीति अस्त्र अलग। ये दोनो ही अलग किस्म के  अस्त्र होते हैं।

मगर शासन शक्ति तक पहुंचने के लिए दोनों अस्त्रों का प्रयोग करने में महारथ चाहिए होती है। 

 राजनीति अस्त्र का प्रयोग होता है जनता को लुभाने के लिए । कूटनीति का प्रयोग होता है विरोधियो को हराने के लिए। 

चुनाव प्रक्रिया आजकल कूटनीति अस्त्र का मैदान बन चुकी है। evm के प्रति लोगो की आशंका  कूटनीति का पायदा है। फिर,  वोट की गिनती की प्रक्रिया, vvpat की गणना, चुनाव अधिकारीयों के राजनैतिक झुकाव, ये सब कूटनीति अस्त्र का अंश बन चुके हैं। मीडिया से wave बनाना,court से अपने पक्ष के फैसले दिलवाना, यह भी अंश है कूटनीति अस्त्र के।

भूखी,गरीब, अल्प पढ़ी लिखी समर्थक भीड़ इन सब कूटनीति अस्त्र को कटाक्ष करने के लिए तैयार नहीं होती है। वो सिर्फ नारेबाजी करके, और या फ़िर मोटरसाइकिल पर पार्टी के झंडे लगा करके काफिले बना कर रैली करने के ही काम आ सकती है। 

जबकि भाजपा के समर्थकों में बुद्धि से ताकतवर sales और marketing रणनीति में महारथी भीड़ है। कभी LED टीवी बेच कर, और कभी मोटरसाइकिल बेच कर वोट कमाए जाते हैं।

विपक्ष कूटनीति अस्त्र में बारबार कमज़ोर पड़ रहा है।

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