content based pricing के मुद्दे पर एक विचार
चीज़ों के दाम उनके निर्माण की लागत के हिसाब से तय किये जाते थे। कम से कम नागरिक मूलभूत सुविधाओं के दाम ऐसे ही तय किये जाते थे, यही आधार मान की सार्वजानिक आवश्यकताओं को धन लाभ के उद्देश्य से संचालित नहीं किया जायेगा। यानि सार्वजनिक आवश्यकताओं के दाम ऐसे नियंत्रित रहेंगे की सभी जन उसको प्राप्त कर सकें। उधाहरण के लिए सड़क जो की यातायात की बुनियादी आवश्यकता है। और परिवहन प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता है। ऐसे ही, शिक्षा को सामाजिक बदलाव और विकास का आधार माना गया। शिक्षा को मूलभूत अधिकार बनाया गया। जल, भोजन, भवन इत्यादि मौलिक आवश्यकता हैं।
मगर व्यापारिक उद्यम का उद्देश्य तो हमेशा से धन लाभ को ही माना गया। ऐसे में वह वस्तुओं का दाम उसके निर्माण लागत के स्थान पर उनकी बाजार में मांग और पूर्ती के अनुसार रखना पसंद करते है। व्यापारिक तर्कों के अनुसार 'टके सेर भाजी और टके सेर खाजा" एक "अंधेर नगरी" का चिन्ह है। तो वह वस्तुओं का दाम content based करने की मांग रखते है।
प्रजातंत्र व्यवस्था की त्रासदी यह रही है की इस व्यवस्था को हमेशा व्यापारियों ने गबन कर लिया है, पॉलिटिशियन्स से मिली-भगत करके। वह पॉलिटिशियन के माध्यम से ऐसी नीतियों का निर्माण करवाता है जिसमे आवश्यक वस्तुओं के दाम में हेर फेर करके वह अपना लाभ कमा सके।
अब उधाहरण के लिए जल को लीजिये। जल प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता है। ऐसे में व्यापारिक हित यह है की जितना अधिक जल प्रदूषण होगा उतना ही जल की सार्वजनिक पुर्ति कम पड़ने लगेगी। फिर लोग बाध्य हो कर mineral water खरीदेंगे। बस, व्यापारिक समझ के अनुसार कैसे भी करके मिनिरल वाटर की बोतल के दाम सही संख्या पर "नियंत्रित" करवा ले ताकि लाभ बराबर आता है।
व्यापारिक लाभ की दृष्टि से प्रत्येक किस्म का प्रदूषण तो एक लाभ कमाने के मार्ग का प्रथम द्वार होता है।
शिक्षा को देखिये। शिक्षा कौशल सम्बद्ध पेशों को देखिये। चिकित्सीय सुविधा भी बुनियादी आवश्यकता है। कुशल चिकित्सक बनने की शिक्षा दाम से बंधित कर दी गयी है। नतीज़ों में, कुशल चिकित्सकों की संख्या कम हो गयी है। और फिर जो महंगी चिकित्सीय शिक्षा ले कर चिकित्सक बनते है, वह दाम भी उसी अनुसार लेते है।
कुल मिला कर यह समझा जा सकता है की आर्थिक भेद-भाव, यानि की अमीरी और गरीबी, एक सह-उत्पाद होता है धन लाभ के व्यापारिक उद्देश्य के। पॉलिटिशियन की नीतियों पर नज़र न रखें तो वह नातियों को समाज के उत्थान के जगह अपने व्यापारिक और उद्योगपति मित्रों के धन लाभ के लिए रचने लग जायेंगे।
इंटरनेट पर content-based pricing आज कल एक नया एजेंडा बन कर उभरा है व्यापारिक लाभ के द्वार खोलने का। content based pricing यानि वस्तु के दाम उसके निर्माण की वास्तविक लागत के हिसाब से तय करने की बजाये उसकी बाजार मांग/ पूर्ती के अनुसार तय किया जाना।
Comments
Post a Comment