Public Services is not to be confused with doing philanthropy.

There is a difference between rendering public services and doing a religious philanthropy.

An able administrator is not the one who goes around helping persons from one poor man to another. (Although, he may be a good philanthropist, a devout religionist, a grand hearted donor, a zakat doer.)
An able administrator is one who creates the right policies which work to eradicate the problem of poverty.

The hard process involved in the challenges of creating a right and functional Policy is that person should be able to extract in a judicial viewpoint format the lessons learnt from what are truly known to be a bad policy. Creating a right policy is a Heuristic work. That is, we reach to it by Trial and Error method.
As always, the inherent limitations of the Trial-and-error method is that unless a student of public administration learns to observe the lacunae of past policies in a judicial extract, unless he draws the lessons learnt from his past mistakes in a judicial form, he can make an infinite number of "errors" and yet he may never reach the Right, balanced and a functional Policy.

The above is also an explanation on why students of public administration should have a natural inclination in observing and understanding various judicial processes.

एक कुशल प्रशासक वह नहीं होता है जो कि व्यक्ति से व्यक्ति जा कर गरीब आदमी की मदद करता है। (हालाँकि ऐसा व्यक्ति एक अच्छा दानकर्ता , एक नेकदिल धार्मिक इंसान, एक मेहरबां ज़कात करने वाला ज़रूर समझा जा सकता है।)
एक कुशल प्रशासक वह होता है जो की सही और संतुलित नीति निर्माण करता है जिनसे गरीबी की समस्या का उन्मूलन हो सके।
कुशल प्रशासक के लिए समस्या और चैलेंज गरीब व्यक्ति नहीं, गरीबी होती है।

किसी भी सही और संतुलित नीति निर्माण के लिए सबसे मुश्किल प्रक्रिया होती है कि अतीत में प्रयोग करी गयी नीतियों की गलतियों का सटीक न्यायायिक दृष्टिकोण विक्सित करके उनका सबक ले। वास्तव में एक सही और संतुलित नीति को प्रयास-संग-त्रुटि के माध्यम से ही विक्सित करा जाता है। यानि कोशिश करके है सही किसी सही-संतुलित नीति को बनाया जा सकता है। कोशिश करने में ही प्रयास-संग-त्रुटि पद्धति का पक्ष आरम्भ होता है।
    मगर, हमेशा की तरह, प्रयास-संग-त्रुटि पद्धति की सीमा रेखा यह होती है यदि इसके अभ्यर्थी अतीत में प्रयोग हुई त्रुटिपूर्ण नीतियों का न्यायायिक निषकर्ष नहीं निकाल पाते हैं, यदि वह न्यायायिक दृष्टिकोणों का समझने में असमर्थ हैं तब वह अनगिनत त्रुटियाँ करके भी एक सही, उचित और कारगर नीति को विक्सित नहीं कर पाएंगे।

प्रशासनिक शिक्षा का न्यायायिक क्रिया से एक अभेद जोड़ यह होता है जो समझता है की क्यों प्रशासन विषय के अभ्यर्थियों की न्यायायिक क्रियाओं में रूचि स्वतः होनी चाहिए।

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