मुद्रा सर्वश्रेष्ठता के प्रत्यय से आधुनिक शिक्षा प्रणाली का मुआयना

ब्रिटिश, अमेरिकी और पश्चिम देशों के वीसा वितरण/ नागरिकता प्रदान के तरीकों में एक विशेष चलन को महसूस किया जा सकता है। वह यह है की जिसके पास धन है उसे यह देश ज्यादा आसानी से वीसा या अपनी नागरिकता प्रदान करते हैं। चाहे वह धन जायज़ तरीके से कमाया गया हो, या नजायज़ । इसमें बुद्धिमता, शारीरिक क्षमता, सामाजिक पद, इत्यादि किसी को भी उन्होंने महत्वपूर्ण नहीं माना है। सिवाय धन, आर्थिक स्थिति के।
     इस नीति के पीछे का स्वीकृत सिद्धांत यह माना गया है की जिसके पास धन है, औसतन वह बेहतर पहुँच रखता है अच्छी और उच्च शिक्षा तक; अच्छी और बेहतरीन स्वास्थ सुविधाओं तक, और इन दोनों के नतीजे में -- अच्छे सामाजिक पद तक।
     फिर धन प्राप्त करने के तरीके में जायज़ होना या नाजायज होना एक अस्थाई हालात हैं, समय और सामाजिक पद से सामाजिक और वैधानिक मान्यताएं बदलती रहती है--जो आज नाजायज़ है, वह कल जायज़ बनाया जा सकता है।
  पैसा का इस कदर की प्रधानता आरम्भ में मुझे आश्चर्यचकित करता था, मगर अब धीरे धीरे मैंने भी कुछ हद तक, पूरा तो नहीं,स्वीकार कर लिया है की पश्चिमी देशों की यह नीति इतनी गलत नहीं है। गौर करने की बात यह है की उनकी यह नीति एक बार तो चुपके से , परोक्ष में, अवैधनिकता या आर्थिक अपराधों को प्रोत्साहित करती हुई भी नज़र आएगी। अब ललित मोदी विवाद को ही देखिये। यह समझा जा सकता है की समय के साथ, धीरे धीरे करके ललित मोदी वहीँ ब्रिटिश नागरिकता ही ले लेगा , और फिर यहाँ का आज का आर्थिक अपराध का भगोड़ा कल वहां का सम्मानित नागरिक बन जायेगा।
  
   यह सब वाकया में बाध्य करता है एक बार सोचने के लिए की आखिर में हमारी शिक्षा पद्धति है क्या ? क्या सामाजिक योगदान है शिक्षा का आधुनिक मानव के जीवन में ?
    जैसा की कई सारे विचारकों ने पहले भी यह लिखा है, और फिर उनके लेखों से प्राप्त ज्ञान से प्रभावित होकर मैंने खुद भी यह दृश्य लिए हैं,-- भारत जैसे गरीब देश में शिक्षा जीवन मुक्ति का सबसे सरल उपलब्ध साधन बन गया है। गरीबी , यानि आर्थिक क्षमता का आभाव, आधुनिक भोगवादी संस्कृति का सबसे उच्च 'अपराध' है। जिसके पास धन बल नहीं है, घुमा फिरा कर वही ही अपराध करता है- हत्या, कतल,  बलात्कार , तस्करी , वगैरह करता है। क्योंकि जिसके पास धन है उसके द्वारा किये गए यही कृत्यों की सामाजिक और वैधानिक पहचान दूसरी माने जाने लगी है -- बलात्कार के स्थान पर मौज-मस्ती और 'प्रेम प्रसंग' कहा जाता है, हत्या के स्थान पर "दुर्घटना", और तस्करी के स्थान पर "अज्ञानता के चलते हुआ व्यवसाय"।
   मुद्रा श्रेष्टता के सिद्धांत से समझे तो शिक्षा प्रणाली की समझ और गहरी तथा सटीक होती है। शायद हम जिस वस्तु को स्कूलों में भेज कर अपने बच्चों को दिलवाते हैं -- वह भोग की वस्तु को शिक्षा नहीं "कार्य-कौशलता" पुकारना अधिक सटीक होगा।
   शिक्षा तो वह वस्तु है जो हमारे सोचने के तरीके पर, हमारे व्यवहार पर, आचरण पर प्रभाव डाल कर उसे सभ्यता की और परिवर्तित करती है। मगर जब जब हम समाचार पत्रों में पढ़ते है की एक उच्च उपाधि प्राप्त डॉक्टर किसी आतंकवादी गतिविधि में लिप्त पाया गया, या कोई दूसरा उच्च उपाधि प्राप्त आदमी किसी गैर कानूनी कृत्य में शामिल था-- तब हमें एक प्रमाण मिलता है की हमारी शिक्षा प्रणाली के "असफल" होने का। शायद यह "असफलता" नहीं है, बल्कि उस सर्व शक्तिशाली सत्य ज्ञान का सन्देश होता है मानवता को शिक्षा प्रणाली की सीमाओं का स्मरण कराने का।
    वास्तव में गलती हमारी, हमारे सामाजिक ज्ञान की है की हम इन उच्च उपाधि प्राप्त लोगों को "शिक्षा प्राप्त" समझ रहे होते है। क्योंकि , जैसा की मुद्रा श्रेष्टता( money superiority) के सिद्धांत से हमने समझा, वह उपाधि 'शिक्षा' नहीं मात्र एक 'कार्य-कौशल' का प्रमाण होती है।
     सवाल उठता है की-- फिर, शिक्षा क्या है, और यह कहाँ से प्राप्त करी जाती है ?
  आधुनिक मानव के जीवन प्रयोगो में कौन सी संस्था हमें वह वास्तविक मायने वाली "शिक्षा" प्रदान करने में सलग्न है ?
    भारत में इस प्रश्न के उत्तर में, शायद, कोई ज्याद साहित्य उपलब्ध नहीं है। हमारे यहाँ प्रचुर साहित्य में शिक्षा प्रणाली की आलोचना, उसकी परोक्ष "असफलता" के किस्से अधिक प्रबलता से मिलते है, मगर यह नहीं उपलब्ध है की शिक्षा है क्या, और आधुनिक शिक्षा प्रणाली में वास्तविक शिक्षा कहाँ से प्राप्त करी जाती है।
     हमारे लेखको ने, सिनेमा निर्माताओं ने, विचारकों ने इस पर कोई ज्यादा प्रभावशाली विचार अभी तक सामाजिक संज्ञान में प्रेषित नहीं किये हैं।
     शिक्षा प्रणाली सांकेतिक प्रमाणों पर निर्माण करी गयी है। मस्तिष्क के अच्छे स्वास्थ से हमें अच्छा मानसिक योग्यता(mental ability) मिलती है। यह मानसिक योग्यता को हम और अधिक निखार करके बुद्धिमता, यानी "तीव्र बुद्धि" (Intelligent thinking) प्राप्त करते हैं। बुद्धिमता से हम बौद्धिकता (Intellectualism) प्राप्त करते हैं। बौद्धिकता से हमें परिमेय क्षमता (rationalisation) और फिर न्याय (justice) मिलता है।
    यह सभी योग्यताओं को ही सामूहिक रूप में हम मानव चेतना (human consciousness) बुलाते हैं।
   और जिन मानवों में सबसे ऊपर की दो योग्यताएं , परिमेयकरण(rational thinking) और न्याय (justice) विक्सित हो जाती है वह अंतरात्मा , या जमीर से जागृत व्यक्ति माने जाते हैं।

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