'राजनैतिक स्थिरता' से क्या अभिप्राय होता है ?
'राजनैतिक स्थिरता' से क्या अभिप्राय होता है ? व्यावासिक अनुबंधन में 'राजनैतिक स्थिरता' क्यों आवश्यक है? सेंसेक्स और शेयर बाज़ार विकास के लिए राजनैतिक स्थिरता की मांग करता है ?
प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जहाँ हर एक सर्कार एक निश्चित कार्यकाल के लिए ही नियम और निति-निर्माण के बहुमत में रहती है, या नयों कहें की सत्तारुड रहती है , और एक कार्यावधि के बाद आम चुनाव अनिवार्य होता है , जैसे भारत में 5 वर्ष के उपरान्त , एक सरकार का किया अनुबंध यदि अगली सरकार न माने तब किसी भी निवेशक का पैसा उसको निवेष का लाभ देने के पूर्व ही निति-परिवर्तन हो जाने से आर्थिक हानि दे देगा / इसलिए निवेशक यह भय को निवेष से पूर्व ही नापेगा की कही निति परिवर्तन का आसार तो नहीं है , और तब ही निवेश करेगा / विदेशी निवेषक तो ख़ास तौर पर यह जोखिम नहीं लेगा /
प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के निर्माण में इस कारको को आज से सदियों पूर्व ही समझ लिया गया था / इसी समस्या का समाधान बना था ब्यूरोक्रेसी, यानि लोक सेवा की नौकरी / भारत में लोक सेवा और अन्य सरकारी सेवा में आये, "चयनित ", व्यक्ति आजीवन (यानि 60 वर्ष की आयु) तक सेवा में रहते हैं, और उन्हें एक निश्चित तरीके के बाहर कोई भी सरकार निष्काषित नहीं कर सकती है / हाँ, यदि कोई सरकारी मंत्री किसी नौकरशाह की सेवाओं से संतुष्ट नहीं है तब वह नौकर शाह के प्रमुख , जिसे चीफ सेक्रेटरी (मुख्य सचिव ) से कह कर "निलंभित " करवा सकता है , जिसके उपरान्त उस निलंबित अधिकारी पर न्यायपालिका से न्याय की गुहार का हक होगा, और मुख्य सचिव उस पर एक जांच करवा कर रिपोर्ट उस अधिकारी को और न्यायपालिका को उपलब्ध करवाए गा /
इन सब लम्बी प्रक्रियाओं के पीछे की सोच यही राजनैतिक स्थिरता से जुडी है / राजनैतिक स्थिरता के अर्थ में यह कतई नहीं है की निर्वाचित राजनैतिक पार्टी बार बार न बदले , वरन पार्टी बदल भी जाए तो वह पिछली सरकार के किये अनुबंध को यका-यक न बदल दे , या कहे की तोड़ दे / निति परिवर्तन के दौरान भी न्याय का आभास रखना होगा और किसी भी निवेशक के निति परिवर्तन से हुए हानि से बचाना पड़ेगा /
अब ऐसा होता है की नहीं यह एक बात है , मगर सामाजिक न्याय की गुहार तो यही है /
प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जहाँ हर एक सर्कार एक निश्चित कार्यकाल के लिए ही नियम और निति-निर्माण के बहुमत में रहती है, या नयों कहें की सत्तारुड रहती है , और एक कार्यावधि के बाद आम चुनाव अनिवार्य होता है , जैसे भारत में 5 वर्ष के उपरान्त , एक सरकार का किया अनुबंध यदि अगली सरकार न माने तब किसी भी निवेशक का पैसा उसको निवेष का लाभ देने के पूर्व ही निति-परिवर्तन हो जाने से आर्थिक हानि दे देगा / इसलिए निवेशक यह भय को निवेष से पूर्व ही नापेगा की कही निति परिवर्तन का आसार तो नहीं है , और तब ही निवेश करेगा / विदेशी निवेषक तो ख़ास तौर पर यह जोखिम नहीं लेगा /
प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के निर्माण में इस कारको को आज से सदियों पूर्व ही समझ लिया गया था / इसी समस्या का समाधान बना था ब्यूरोक्रेसी, यानि लोक सेवा की नौकरी / भारत में लोक सेवा और अन्य सरकारी सेवा में आये, "चयनित ", व्यक्ति आजीवन (यानि 60 वर्ष की आयु) तक सेवा में रहते हैं, और उन्हें एक निश्चित तरीके के बाहर कोई भी सरकार निष्काषित नहीं कर सकती है / हाँ, यदि कोई सरकारी मंत्री किसी नौकरशाह की सेवाओं से संतुष्ट नहीं है तब वह नौकर शाह के प्रमुख , जिसे चीफ सेक्रेटरी (मुख्य सचिव ) से कह कर "निलंभित " करवा सकता है , जिसके उपरान्त उस निलंबित अधिकारी पर न्यायपालिका से न्याय की गुहार का हक होगा, और मुख्य सचिव उस पर एक जांच करवा कर रिपोर्ट उस अधिकारी को और न्यायपालिका को उपलब्ध करवाए गा /
इन सब लम्बी प्रक्रियाओं के पीछे की सोच यही राजनैतिक स्थिरता से जुडी है / राजनैतिक स्थिरता के अर्थ में यह कतई नहीं है की निर्वाचित राजनैतिक पार्टी बार बार न बदले , वरन पार्टी बदल भी जाए तो वह पिछली सरकार के किये अनुबंध को यका-यक न बदल दे , या कहे की तोड़ दे / निति परिवर्तन के दौरान भी न्याय का आभास रखना होगा और किसी भी निवेशक के निति परिवर्तन से हुए हानि से बचाना पड़ेगा /
अब ऐसा होता है की नहीं यह एक बात है , मगर सामाजिक न्याय की गुहार तो यही है /
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