ये बात अतीत काल में कुछ सांस्कृतिक हालात का सत्य विवरण हैं 1993 के आसपास जब मनमोहन सिंह जी ने वित्त मंत्री रहते हुए आर्थिक उदारीकरण करके देश के दरवाजे विदेशी कंपनियों के लिए खोल थे, तब टीवी पर बहुत सारे सेवा प्रदाताओं और उनके चैनलों का सैलाब आया था। इसके पहले केवल एक ही चेनल और सेवा प्रदान हुआ करता था —दूरदर्शन । विदेशी मूल से आए इन टीवी के प्रदाताओं में सबसे प्रमुख नाम था स्टार टीवी का। लोगों को —आम जनता को — में इनके लोग घर घर जा कर cable tv लगवाने की मार्केटिंग कर रहे थे। इनके लोग बताते थे कि कैसे दूरदर्शन इतना "फीका" टीवी चैनल है, उसका समाचारों का बताने का रवैया कितना सूखा सा है। और, इन प्राइवेट चैनल वालों के अनुसार, दूरदर्शन के इस फीके रवैए के चलते लोगों में जागृति की कितनी कमी थी, क्योंकि आम जनता को समझ ही नहीं आता था कि बाबरी मस्जिद से उनको क्या नुकसान हो रहा है, आरक्षण नीति से क्या नुकसान है, पर्शिया की खाड़ी में हो रहे युद्ध से उन पर क्या असर पड़ेगा । प्राईवेट चैनल वालों ने ही दूरदर्शन के "रूखे–सूखे और फीके खाने" की बुराइयां शुरू करके अपने "मसालेदार...