क्या फायदा होता है देश और समाज को किसी UPSC Topper से ?
एक सवाल तो उठना चाहिए अब तक --कि , UPSC के इतने मुश्किल-मुश्किल , तथाकथित "दिमागदार" सवालों का जवाब दे कर आखिर उम्मीदवार समाज में योगदान करता ही क्या है ? उसके जवाबों से और दिम्माग से आखिरकार समाज को क्या लाभ प्राप्त होता है ?
शायद कुछ नहीं । UPSC से आये बाबू अंत में काम तो वही Dakota Indians Dead Horse Theory पर ही कर रहे होते हैं । उनके पास समाज की तुरत ज़रूरतों को पूरा करने का कोई कौशल नहीं होता है । बल्कि वह समाज की किस्मत पर बैठे हुए, उसे अंधकार में धकेल रहे होते हैं। और सामाजिक अहित का कुकर्म के दंड पाने की बजाये अपना performance review भी खुद अपनी बिरादरी वालों से करवा कर तारीफ भी बटोर लेते हैं , जबकि सच्चाई ठीक उल्टा प्रकट हो जाती है । इनके खुद के असली ईमानदार मुलाज़िमों का हाल तो दुनिया से छिपा नहीं है ।
संविधान निर्माताओं ने बहोत सारी गलतियां करि हुए है । उन्होंने उस व्यवस्था को सुदृढ़ कर दिया है जो की वास्तव में किसी उप-निवेश देश को चलाने के लिए ही बनाई गयी थी,- जिसमे सामाजिक उपयोग वाले कौशलों को पनपने और विक्सित होने के अवसर नहीं देने का उद्देश्य भी छिपा हुआ था । निर्माताओं ने यह भी गलती करि है की जो मूल व्यवस्था समयकाल में राजशाही पर निर्मित होती आयी थी, उसके मूल प्रशासनिक gear में से राजशाही को हटा कर republic बनाने की कोशिश कर दी है । नतीजे में ठीक उल्टा , एक नए युग की भेदभाव वाली "जाति व्यवस्था" को बसा दिया है । यहाँ राजनैतिक वर्ग का एकाधिकार छत्रपति साम्राज्य स्थापित हो गया है । और राजनैतिक वर्ग के बाद संविधानिक उच्च ओहदे पर UPSC वालों का नंबर है । कौशल कामगार यानि professional tradesmen की इस समाज में कोई पूछ नहीं है , जबकि सामाजिक और आर्थिक इतिहास बताता है की दुनिया के बड़े बहुराष्ट्रीय कम्पनिया अस्तित्व में उन्ही देशो से आयी है जहाँ professional tradesmen को सम्मान मिला है ।
तो UPSC व्यवस्था ने एकाधिकार, monopoly rights, सिर्फ एक वर्ग की झोली में डाल दिए है , वो वर्ग जो सामाजिक हित के लिए उपलब्ध करवाई गयी अपनी प्रशासनिक शक्ति के भरोसे जनता के टैक्स से कमाए पैसे खाते हैं और मज़े करते हैं। इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है बाजार भाव , skill , समाज की ज़रूरतों को पहचान कर उस पूरा करने की ज़िम्मेदारोयों का । इनको तो टैक्स का कमाया मिल ही रहा है अपने मज़े करने को । किसी professional tradesman की भांति बाजार भाव से संघर्ष करके, अपने skill को विक्सित करने के संघर्षो से नहीं कमाना होता है इनको ।
वाजिफ सवाल हर जहन में उठाना चाहिए की आखिर UPSC topper बन कर देश का कौन सा भला कर लेता है कोई व्यक्ति ? कुछ नहीं । सिवाए की वह एक किस्म का- सरकार और संविधान द्वारा आयोजित - "कौन बनेगा करोड़पति" जीत जाता है । हमारी और आपकी,यानि समाज की भूमिका दर्शक वाली होती है- बैठ कर ताली बजाएं, इससे हमारे को कुछ नहीं मिलाने वाला है ।
For prospering, societies don't need knowledge, they need skills.
शायद कुछ नहीं । UPSC से आये बाबू अंत में काम तो वही Dakota Indians Dead Horse Theory पर ही कर रहे होते हैं । उनके पास समाज की तुरत ज़रूरतों को पूरा करने का कोई कौशल नहीं होता है । बल्कि वह समाज की किस्मत पर बैठे हुए, उसे अंधकार में धकेल रहे होते हैं। और सामाजिक अहित का कुकर्म के दंड पाने की बजाये अपना performance review भी खुद अपनी बिरादरी वालों से करवा कर तारीफ भी बटोर लेते हैं , जबकि सच्चाई ठीक उल्टा प्रकट हो जाती है । इनके खुद के असली ईमानदार मुलाज़िमों का हाल तो दुनिया से छिपा नहीं है ।
संविधान निर्माताओं ने बहोत सारी गलतियां करि हुए है । उन्होंने उस व्यवस्था को सुदृढ़ कर दिया है जो की वास्तव में किसी उप-निवेश देश को चलाने के लिए ही बनाई गयी थी,- जिसमे सामाजिक उपयोग वाले कौशलों को पनपने और विक्सित होने के अवसर नहीं देने का उद्देश्य भी छिपा हुआ था । निर्माताओं ने यह भी गलती करि है की जो मूल व्यवस्था समयकाल में राजशाही पर निर्मित होती आयी थी, उसके मूल प्रशासनिक gear में से राजशाही को हटा कर republic बनाने की कोशिश कर दी है । नतीजे में ठीक उल्टा , एक नए युग की भेदभाव वाली "जाति व्यवस्था" को बसा दिया है । यहाँ राजनैतिक वर्ग का एकाधिकार छत्रपति साम्राज्य स्थापित हो गया है । और राजनैतिक वर्ग के बाद संविधानिक उच्च ओहदे पर UPSC वालों का नंबर है । कौशल कामगार यानि professional tradesmen की इस समाज में कोई पूछ नहीं है , जबकि सामाजिक और आर्थिक इतिहास बताता है की दुनिया के बड़े बहुराष्ट्रीय कम्पनिया अस्तित्व में उन्ही देशो से आयी है जहाँ professional tradesmen को सम्मान मिला है ।
तो UPSC व्यवस्था ने एकाधिकार, monopoly rights, सिर्फ एक वर्ग की झोली में डाल दिए है , वो वर्ग जो सामाजिक हित के लिए उपलब्ध करवाई गयी अपनी प्रशासनिक शक्ति के भरोसे जनता के टैक्स से कमाए पैसे खाते हैं और मज़े करते हैं। इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है बाजार भाव , skill , समाज की ज़रूरतों को पहचान कर उस पूरा करने की ज़िम्मेदारोयों का । इनको तो टैक्स का कमाया मिल ही रहा है अपने मज़े करने को । किसी professional tradesman की भांति बाजार भाव से संघर्ष करके, अपने skill को विक्सित करने के संघर्षो से नहीं कमाना होता है इनको ।
वाजिफ सवाल हर जहन में उठाना चाहिए की आखिर UPSC topper बन कर देश का कौन सा भला कर लेता है कोई व्यक्ति ? कुछ नहीं । सिवाए की वह एक किस्म का- सरकार और संविधान द्वारा आयोजित - "कौन बनेगा करोड़पति" जीत जाता है । हमारी और आपकी,यानि समाज की भूमिका दर्शक वाली होती है- बैठ कर ताली बजाएं, इससे हमारे को कुछ नहीं मिलाने वाला है ।
For prospering, societies don't need knowledge, they need skills.
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