भक्त बनाम लिबेर्टर्डस

भक्त और लिबेर्टार्डों के बीच मोटे मोटे तौर पर दो मुख्य बिन्दूओं पर अंतर है : आरक्षण-विरोधी आचरण (anti-reservationism) और इस्लाम पंथ विरोधी आचरण (anti-Islamism) ।

          इस्लाम-विरोधी आचरण का प्रतिसूचक है कश्मीर में धारा 370 का विरोध । भक्तों का कट्टर राष्ट्रवादी-पना भी असल में कश्मीर-प्रेम में लिबेर्टार्डों से अपने को अधिक श्रेष्ट दिखाने का नतीजा है। भक्त कश्मीर-प्रेम के चक्कर में राष्ट्रवाद की उन सीमाओं को भी पार कर रहे हैं जिसको की राष्ट्रवाद के सिद्धांत देने वाले बुद्धिजीवियों ने चेतावनी दी थी , नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रवाद कोई प्राकृतिक भावना नहीं है, इंसानों की बनाई हुई है। इसको बनाने वाले बुद्धिजीवियों ने चेतावनी के साथ राष्ट्रवाद बनाया था की आवश्यकता से अधिक होने पर यह भावना फासिज़्म को जन्म दे सकती है, जब राष्ट्रवाद समुदायों का भला करने के स्थान पर माफियाओं के कब्जे में जा कर भोग-भूमि का इलाका सरक्षित करने के लिए प्रयोग होने लगेगा। इतिहास के पन्नों में देखें तो दिख भी जायेगा की फासिज़्म मुख्यतः इटली में जन्मा था, जहाँ की माफिया का भी जन्म हुआ है। माफिया का अभिप्राय है उद्योगपति और राजनेताओं के बीच भीतरी सांठ-गाँठ करके भ्रष्टाचार द्वारा जनता का आर्थिक उन्मूलन --- अत्यधिक महंगाई, टैक्स, वगैरह वगैरह।
      भक्तों के छोटे मसीह, श्री काली दाड़ी शाह जी ने वह वचन बोल दिया है जो की फासिज़्म को दर्शाते हैं -- कि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए देश के टुकड़े होते नहीं देख सकते है। अच्छे, उन्नत प्रजातान्त्रिक देशों में इंसान, इंसानी भावनाओं को राष्ट्रवाद से आगे रखा जाता है, क्योंकि वह मानते है की राष्ट्र का निर्माण इन्ही मूल भावनाओं से होता है। इसलिए राष्ट्रवाद से आगे है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। ब्रिटेन ने अभी हाल में यह करके भी दिखलाया है जब उसने स्कॉटलैंड का रेफेरेंडम करवाया और जब "ब्रेक्ज़िट" करवाया था। तो ब्रिटिश राष्ट्रवाद और इटालियन राष्ट्रवाद का अंतर ही राष्ट्रवाद और फासिज़्म का भी अंतर है। याद रहे की माफिया वाद की जन्म भूमि भी इटली ही है।
   यहाँ भारत में यह फासिज़्म भक्त फैला रहे है, हालाँकि ऊपरी तौर पर सोनिया गांधी इटली से सम्बंधित है ,इसलिए कुछ लोग भ्रम खा सकते है की फासिज़्म दूसरे पक्ष से हो रहा है। भक्तो के एक शिरोमणि भारत को माफियाओं की भोग-भूमि में तब्दील किये जाने का आरोप विपक्ष पर लगा रहे है, जबकि राष्ट्रवाद को अभीव्यक्ति-स्वतंत्रता से आगे खुद ही करते है।
      यह सारा अकल और बौद्धिकता का चक्कर कश्मीर समस्या से जन्म ले रहा है, जो की खुद भक्तो के इस्लाम-विरोधी आचरण और मानसिकता में से आ रहा है।
    मेरे खुद के नज़रिये में भारत के पश्चिमी राज़्यों में इस्लाम-विरोध की इतिहासिक -सांस्कृतिक मानसिकता है। इसके बनस्पत , उत्तरप्रदेश और बिहार- बंगाल के इलाको में गंगा-जमुनावि तहज़ीब है। आप चुनावी नतीजों में खुद देख सकते है - यहाँ मुस्लिम गठबंधन की राजनीती अधिक चमकती है। और भक्तों का मुख्य इलाका अभी आसाम के नतीजों को छोड़ दे तो फिर पश्चिम राज्य ही है। पश्चिम इलाके anti-islamism पर चमक रहे है, जबकि पूर्वी क्षेत्र pro-islamism पर। सांस्कृतिक धरोहारों में भी कुछ यूँ ही झलकता भी है। पश्चिम भागों में घूमने निकले तो किले और दुर्ग के दर्शन होंगे जो की मुग़लों से लड़ाई के समय निर्मित हुए थे। पूर्वी इलाकों में खुद मुग़लों के बनाये दुर्ग और दूसरी धरोहर मिलेंगी।
      शायद कश्मीर समस्या एक मनोचिकित्सिक मानसिक बीमारी बन कर पूरे देश को पकड़ने लग गयी है। जो की ठीक नहीं है।
     
      भक्त और लिबेर्टर्ड का दूसरा अंतर है आरक्षण-विरोध। लिबेर्टर्स सभी तो आरक्षण -समर्थक नहीं है, पर फिर भी आरक्षण-वादियों का समर्थन लिबेर्टर्डस को ही जाता है। और दूसरे लैबर्टर्डस भक्तों की तरह आरक्षण के कारणों पर डीनायलिस्ट नहीं है।। वह इसके प्रतिशत को कम किये जाने पर, या फिर आर्थिक हालात आधार पर दिए जाने की मांग रख कर संतुष्ट हैं।
     भारतीय संविधान में दोनों ही बिन्दूओं के कुछ विशेष अधिकार बना कर अस्थाई तौर पर स्वीकृत किया गया है। आरक्षण के विशेष प्रबंध और कश्मीर को विशेष अधिकार। संविधान निर्माता इन दोनों के विशेष पने से उपजते समाजिक और राजनैतिक असमानता को शायद पहचानते थे। इसलिए इनको अस्थायी ही स्वीकृत करके इनके निपटारण के प्रबंध भी किये।  भक्त और लिबेर्टर्ड में अंतर है कि इन अस्थायी बिन्दुओ का निपटारण कैसे हो। भक्त डीनायलिस्ट है, और वह इसे सीधे-सीधे राजनैतिक मेजोरिटी (बहुमत) के बल पर बंद कर देना चाहते हैं, कि संविधान में ही संशोधन मचा कर ख़त्म कर दो यह विशेष प्रबंध। लिबेर्टर्ड को मंज़ूर है की या तो संविधान में इन विशेष प्रबंध को समाप्त करने की कार्यवाही संतुष्ट करके इन्हें निपटाओ , या फिर कुछ छोटे फेर बदल करके आज की जरूरतो के मुताबिक विशेष प्रबंध को अपनाओं ।
    भक्तो का गुट मोटे तौर पर उच्च जाती, हिन्दू वर्ग है।यानी,  मुख्यतः व्यापारी वर्ग और फिर जातिय भेदभाव का लाभर्ती वर्ग।
    लिबेर्टर्स को मोटे तौर पर आरक्षण वादियों और मुस्लिमों का समर्थन मिलता है।आरक्षण समर्थक लिबेर्टर्ड और मुस्लिम लिबेर्टर्डस मानते है की भ्रष्टाचार ही मुख्य राष्ट्रिय समस्या है। वह कहते है की भ्रष्टाचार न हो तब यह दोनों अस्थायी विशेष प्रबन्ध समाप्त किये जाने की कार्यवाही पूर्ण संतुष्टि से प्राप्त करी जा सकती है।
       भक्तों का गौ मांस भक्षण विरोध उनका इस्लाम-विरोधी और आरक्षण-विरोधी मानसिकता का सयुंक्त नतीजा है। भक्त जिस वर्ग विशेष से हैं वहां rule of law , justice जैसे विषयों की ज्यादा समझ नहीं बसती है। इसलिए वह भ्रष्टाचार-विरोध या सेक्युलर, प्रजातान्त्रिक 'गुड-गवर्नेंस' में ज्यादा गंभीर चैतन्य नहीं रखते हैं। उनके लिए इतना काफी है की कैसे भी यह साबित होता रहे कि उनके मसीहा ने ऐसा कुछ भ्रष्टाचार नहीं किया है। rule of law से भ्रष्टाचार उन्मूलन हुआ कि नहीं, यह फिलहाल तो उनकी बुद्धि के परे जाता है। भक्त किस्मत से आज सत्ता में है, क्योंकि लिबेर्टार्डों की बड़ी जनसँख्या ने इन्हें कोंग्रेस के भ्रष्टाचार के विकल्प में एक मौका दिया है। अन्यथा यह प्रकट तौर पर छोटा समूह है।
और अपने राजपाठ को जमाये रखने के लिये सच -झूठ,  गाली गलौज , लड़ाई -युद्ध सभी तिकड़म लगाने को तैयार हैं।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

What is the difference between Caste and Community