कश्मीर अलगाववाद का राष्ट्रद्रोह-- भाषा जनित कूटनीति का पहलू

शब्दों की हेरा फेरी का मसाला है यह तो...कुछ कहते हैं की कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानना असंवैधानिक है, जबकि कुछ कहते है की संविधान में ही कश्मीर को इस प्रकार की विशिष्टता प्रदान करी गयी है की मानो वह भारत का हिस्सा है ही नहीं।
   और सवाल यह बनाया जा रहा है कि संविधान का सम्मान कौन सा गुट नहीं करता है।
बरहाल, कुछ तथ्यों का ज्ञान नागरिकों को होना आवश्यक है
1) संविधान में कश्मीर को विशेष दर्ज़ बहोत उच्चे हद तक प्राप्त है। याद रहे की संविधान के आधीन ही कश्मीर को स्वतंत्र क्षेत्रीय संविधान रखने की स्वतंत्रता है। उनका अपना ध्वज भी है। उनकी विधान सभा 6 साल की कार्यकारणी वाली होती है।
2) समस्त भारत में लागू होने वाले बहोत सारे कानून के लिए जम्मू कश्मीर विशेष भूमि है जहाँ वह लागू नहीं होते है। उत्तराधिकारी कानून, भूमि अधिनियम,....सूची बहोत ही लंबी है।

    तथ्यों की विकृति(distortion) से ही कभी कभी शब्दों और विचारों में भी विकृति आ जाती है। प्रसिद्ध नाटककार शकेस्पीयर के नाटक twelfth night के एक चरित्र क्लाउन (हँसोड़ जोकर) का कथन तथ्यों और शब्दों की आपसी विकृति में से एक हास्य को संबोधित करता है, और सोचने पर विवश करता है कि कभी कभी हमारे शब्द जमीनी पर साफ़ दिखती हमारे विरुद्ध की सच्चाई को बिना जुठलाये अस्वीकार कर देने की क्षमता रखते है। शब्दों का मकड़ जाल ऐसा भी रचा जा सकता है।
   गुलामी की बेड़ियों से जकड़ा clown, जिसको कर्तव्य दिया गया है कि duke को प्रतिदिन मनोरंजन करे, एक दिन इसी मनोरंजन के दौरान duke के सामने अपनी गुलामी को अस्वीकार करने वाले कथन मकड़जाल को रच कर के मानो की अपने को आज़ाद भी घोषित करता है, पर संभवतः वह duke का मनोरंजन भी कर रहा होता है, जो की बदस्तूर एक गुलाम clown के रूप में उसका कर्तव्य ही था। पाठकों को उसके शब्दों में छिपे द्विअर्थ में सत्य को समझने में अन्य बहोत ही बातो को सोचने के लिए विवश होना पड़ता है।
   गुलाम clown बोलता है कि " मैं तो हमेशा से आज़ाद हूँ जी। यही मेरी आज़ादी है की में खुद से तय करता हूँ की मुझे कब तक यह गुलामी करनी है। वरना जिस दिन में चाहू तो उस दिन में गुलामी की जंज़ीरों से अपनी साँसों को रोक करके उन्हें आज़ादी दिला सकता हूँ। मेरी साँसों को रोक कर आज़ाद करने की क्षमता भगवान् ने मुझे दी है।"

अब बताईये कि क्या ऐसी आज़ादी को भी आज़ादी माना जा सकता है जिसे निभाने के लिए अपनी साँसों को गवाना पड़े। मगर clown तो फिर भी अपनी आज़ादी की उदघोषणा कर देता है। clown की अपनी आज़ादी की घोषणा duke के प्रति उसका विद्रोह मानी जानी चाहिए, मगर उसका बताया तरीका बेहद मूर्खता पूर्ण है, जो की संभवतः clown का हास्य माना जा सकता है duke के मनोरंजन के लिए।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs