कलयुग, अंधेर नगरी, इडियोक्रेसी और मोदी सरकार
कलयुग, अंधेर नगरी, इडियोक्रेसी और मोदी सरकार
दूसरे धर्मपंथ जो की भविष्य में क़यामत और "जजमेंट डे" जैसे धरती के अन्त की भविष्यवाणी करते हैं, उनकी ही तरह हिन्दू पंथ में भी प्रलय की बात होती है जब यह सारी सृष्टि नष्ट हो जायेगी। मगर हिन्दू पंथ की मानयताओं में प्रलय के पहले एक काल, कलयुग नाम के समाजिक दौर की भी चर्चा होती है जिसमे इंसान की बुद्धि विक्सित और समृद्ध होने के बजाये विघटित होने लगेगी।
इतिहासकारों की नज़र में जैसे15वी शताब्दी के आस पास के युग को उसकी सामाजिक मान्यताओं के लिए 'अंधकार युग' पुकारा गया है, 17वी शताब्दी को उद्योग और कारखाना युग माना गया है, ठीक इसी प्रकार प्रसिद्द इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार मोदी सरकार आजादी के उपरान्त आज तक की सबसे "बौद्धिकता-विरोधी और विद्यालय गत औपचारिक शिक्षा से अप्रशिक्षित"( "the most anti-intellectual and philistine") सरकार पुकारी गयी है।
शायद मोदी जी की सरकार भारत को कलयुग के मुर्ख देश, अंधेर नगरी,का दर्ज़ा दिलवा कर ही मानेगी।
कलयुग से सम्बंधित बहोत सारी सामाजिक मान्यताये है कि कलयुग में जीवन आचरण कैसे हुआ करेंगे। 1970 के दौर में आई एक फ़िल्म, गोपी, के गीत "राम चंद्र कह गए सिया से...", में इन मान्यताओं को दर्शाया गया है।
जैसे, हंस चुगेगा दाना दुनका, कौआ मोती खायेगा , के प्रसंग से दो संभावित अर्थ निकलते है, जो की दोनों ही कलयुग के आचरण पर उचित माने जा सकते है। पहला अर्थ कि, 'कल' यानी मशीनों से निर्मित यंत्रपुतलियों (या रोबोट) के माध्यम से कुछ भी कार्य प्राकृतिक रूप के विपरीत हो कर भी करवाई जा सकेंगी। और दूसरा अर्थ कि, साफ़ निर्मल निश्छल भाव के मनुष्य बुरे समय को भुगतेंगे ('हंस चुगेगा दाना दुनका'), जबकि कपट और धूर्तता बरतने वाले मनुष्य अच्छे दिन बिताएंगे ("कौआ मोती खायेगा")।
हॉलीवुड में निर्मित एक फ़िल्म "इडियोक्रेसी"" (Idiocracy) में भी हिन्दू मान्यता वाले 'कलयुग' की भांति मनुष्य के IQ के व्यापक विघटन की बात उठी है। इस फ़िल्म में प्रस्तुत विचारों के अनुसार कंप्यूटर , कैलकुलेटर जैसी उच्च, स्वचालित मशीनों के आने से भविष्य की मानव पीढ़ी अकल से बुद्धू हो जायेगी क्योंकि वह साधारण से साधारण कार्यों के लिए भी स्वचालित मशीनों पर निर्भर करेगी, बजाये कि अपनी बुद्धि को कोई समस्या समाधान का अभ्यास दिलाये। इसके नतीजे में एक मानसिक विराम कोशिकाओं और dna स्तर पर मानव बुद्धि का विघटन होगा। चिकित्सा की वैज्ञानिक भाषा में इस कोशकीय विघटन को dysgencis (डिसजेनिक्स) बुलाया गया है। फ़िल्म में कहानी के माध्यम से विचार प्रस्तुत किया गया है की कैसे वर्तमान काल की शासन व्यवस्था, डेमोक्रेसी यानि प्रजातंत्र, धीरे धीरे मुर्ख और औपचारिक विद्यायल गत शिक्षा से अनअभ्यस्त(philistine) लोगों के हाथों में जाकर शासन संचालित होने लगेगी और फिर धरती पर 'अंधेर नगरी' बसा देगी। मूर्खों की धरती पर कुतर्क और असहनशीलता मनुष्य के न्याय में बस जायेंगे, कामुकता , अभद्रता, यौन आचरण व्यापक हो कर सरल हो जायेंगे और उस दौर की भाषा, संस्कृति, राजनीति, चिकित्सा, सब जगह दिखाई देंगे।
इधर "गोपी" फ़िल्म के गीत , "राम चंद्र कह गए सिया से..", में भी इडिओक्रिसी जैसी उदगोषणा है जब पंक्ति आती है "राजा और प्रजा में होगी निष दिन खींचा तानी "। कामुकता और अभद्रता के संस्कृति आचरण बन जाने के विषय में भी एक पंक्ति है कि "घर की बाला" पिता और परिवार वालों के समक्ष ही नाचेंगी । "धर्म भी होगा, कर्म होगा , परंतु शर्म नहीं होगी" के बोल गीत के आरम्भ में ही अभद्र आचरण के कलयुग में व्यापक हो जाने की घोषणा कर देते हैं।
वर्तमान वास्तविकता में सनी लेओनी के जोक्स मानो की स्वाभाविक प्रसंग हो चुके हैं, जो की छोटे अबोध बालको को भी ज्ञात है। अगर कोई महसूस कर सके तो फिर सनी लेओनी ने अपनी वयस्क फिल्मों से शायद समाज में इतनी कामुकता और अभद्रता नहीं फैलाई है जितनी की हम सब ने आपस में सनी लेओनी के jokes को share करके कर दी है। jokes के नाम पर कामुकता का प्रसंग एक परोक्ष सरलता से अबोध बालकों तक को उपलब्ध हो रहा है जो की उनकी भाषा और आचरण में कामुकता को प्रवेश करवा रहा है। तो वास्तविक प्रभाव में हम इन "निर्मल, क्षतिहीन"(innocent, innocuous) jokes(लघुहास्य) के माध्यम से प्रतिदिन कलयुग अभिशाप को भुगतते हुए कामुकता और अभद्रता को संस्कृति बनाते जा रहे हैं। भगवान रामचंद्र के सीता माता को दिए कथन सच हो रहे हैं।
मोदी जी और स्मृति ईरानी की औपचारिक शिक्षा के philistine सत्य भी अब प्रकट हो चुके हैं। टीवी मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता और प्रशासन के बीच रोज़ाना खींचा तानी होता रहती है।
गोपी फ़िल्म के गीत की करीब करीब सभी पंक्तियाँ वर्तमान काल में कलयुग के अभिशाप को सत्य होती सुनाई देती है। जैसे कि, "जो होगा लोभी और भोगी, वो जोगी कहलायेगा"। वर्तमान में जिस गति से पाखंडी और ढोंगी साधू , बाबा, और बापू किस्म के लोग पकड़ में आये हैं, और उनकी संपत्ति के विषय में बाते प्रकट हुयी है, इन पक्तियों के सत्य होने का आभास स्वतः हो जाता है।
एक अन्य पंक्ति , "चोर उच्चके नगर सेठ प्रभुभक्त निर्धन होंगे" के सत्य होने का आभास वर्तमान के उद्योगपति और crony capitalism के विषय को समाचारपत्रों में पढ़ने से मिलने लगता है।
अब तो यह अपने मन में सोचने की बात है कि भगवन रामचंद्र के उस उदघोषित कलयुग और अंधेरनगरी से और कितना दूर है वर्तमान का भारतवर्ष।
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