मत-भेदी विचार

विचारों का मतभेद होना किसी भी जीवंत समाज का एक अभिन्न हिस्सा है ।
   दैनिक जीवन में हम सभी मत-भेदी विचारों से बचने की कोशिश करते हैं । मत-भेदी विचारों से मानसिक अशांति होती है । इससे सयुंक्त कार्य-पालन बंधित होता है । समाज बिखरता है । समाज अथवा समुदाय की एकता नष्ट होती है ।
    मगर गहन तर्कों में मत-भेदी विचारों का मूल्य इसके ठीक विपरीत है । सभी वर्गों के विचारों को लेकर आगे बढ़ने के लिए कई विरोधाभासी विचारों का निवारण करना ही एक मात्र तरीका है । मत-भेदी विचारों के निवारण में ही शोध , अध्ययन के बीज होते हैं , जो व्यक्ति को प्रेरित करते है कुछ नया करने के लिए , रचनात्मक होने के लिए, नयी खोज करने के लिए । मत-भेदी विचारों के निवारण में ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सही उपयोग होता है । इसमें ही हमें विनम्र , धैर्यवान ,सहनशील और विवेक-शील होने की आवश्यकता का पाठ मिलता है । यंही हमारे अन्दर विद्यमान इन सभी गुणों का परीक्षण होता है ।
    एक वास्तविक , हृदय-उत्सर्जित एकता और अखंडता को प्राप्त करने का सही तरीका मत-भेदी विचारों के निवारण की क्रिया से ही गुज़रता है । बाकी सब तरीके तो कूटनीतिक सत्ता-भोग का जरिया होते हैं । किसी दुश्मन को उपजाना , और फिर उस दुश्मन को हारने के लिए सभी सदस्यों को एकीकृत होने का आवाहन करना -- यह तो कूटनीतिक सत्ता-भोग का सब से सिद्ध तरीका है ।
    मत-भेदी विचारों के निवारण में सबसे मुश्किल अंश है -- लघु-बुद्धि, मानसिक तौर पर असक्षम समाज के सदस्यों के मत-भेदी विचारों का निवारण । यहाँ तथ्य , विश्वास , भ्रान्ति सभी को अलग करने के अनंत प्रयास के बाद भी निवारण नहीं प्राप्त होता । शायद यही वह क्रिया रही है जिसकी वजह है आज हम सब के बीच मत-भेदी विचारों की छवि अपने उचित , तर्कवान दृष्टय के ठीक विपरीत है।

Comments

Popular posts from this blog

the Dualism world

Semantics and the mental aptitude in the matters of law

It's not "anarchy" as they say, it is a new order of Hierarchy