अंतर-व्यक्ति विवाद का एक कारण

अंतर-व्यक्ति विवाद का एक कारण यह भी है की मानव संवाद, ख़ास कर जो हिंदी भाषा में है , वह वस्तु-विशेष से सिद्धांत-विशेष होने की त्रज्य में होता है जिसमे वाद-विवाद में समल्लित व्यक्ति एक दूसरे को क्रोधित ही कर रहे होते हैं , सामने खड़ी समस्या को सामूहिक तौर पर सुलझा नहीं होते ।
 यह उदहारण देखिये -
रमेश :- राम, आज कर तुम सिगरेट बहोत पी रहे हो ।
सुरेश :- नहीं भाई, मैं बस तुम्हारे साथ ही पीता हूँ ।
रमेश (एक मजाकिया स्वर में):- तो क्या जो मेरे साथ सिगरेट पीता है वह कभी भी ज्यादा सिगरेट नहीं पीता?
     उपर्युक्त उधाहरण में रमेश तीसरी पंक्ति के संवाद में बहोत ही चपलता से एक वस्तु-विशेष संवाद से एक सिद्धांत-विशेष संवाद में जा कर एक प्रकार का व्यंग रचता है । हालाँकि इस अनुछेद में व्यंग को स्पष्ट भी कर दिया गया है "एक मजाकिया स्वर में" को लिख कर, मगर दिन-प्रतिदिन के संवाद में मनुष्य यह व्यंगात्मक त्रुटी हर बार सफलता से पकड़ नहीं पाता, और एक आपसी विवाद में पड़ जाता है जब हो सकता है की सुरेश कुछ यु उत्तर देता -
 सुरेश :- क्यों, जो तुम्हारे साथ में ही पी रहा हो , वो तुम्हारे से ज्यादा तो पी ही नहीं सकता, कम भले ही पी ले अगर तुम्हार साथ की एक भी सिगरेट का संग छोड़ दे तो ।
        रमेश और सुरेश यहाँ से एक विवाद की दिशा में अग्रसर हो जायेंगे,यह प्रमाणित करने में की क्या सुरेश ने ज्यादा सिगरेट पी है, या फिर की , क्या रमेश भी ज्यादा सिगरेट पीता है , या फिर की रमेश सुरेश पर यह इलज़ाम कैसे लगा सकता है जब की वह खुद भी इतनी ही पीता है, इत्यादि । रमेश और सुरेश के बीच के होने वाले विवाद में इस तरह के अनगिनत पहलू तैयार हो सकते है और सिद्धन्त में इनमे से किसी भी विवाद को कोई न्याय नहीं है, कोई हल नहीं है । सिद्धांत , यानी दर्शन शास्त्र में ऐसे विवादों का वस्तु-विशेष हल ही जाना जाता है , और यहाँ हम एक वस्तु-विशेष समस्या को सिद्धांत-विशेष बना कर उसका हल दूंढ रहे होते हैं ।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs