समाज व उसके परोक्ष मनोवैज्ञानिक विक्रित्यों

समाज व उसके परोक्ष मनोवैज्ञानिक विक्रित्यों का इतिहास मुझे आज कल बहोत दिलचस्प विषय लगाने लग गया है / कहते है इतिहास इस लिए दोहरता है क्यों को मानव-स्वभाव कभी नहीं बदलता है / अगर मानव-मष्तिष्क की कुछ विक्रित्यां भी ज्यों-की-त्यों रह जाती है तो निश्चित है की इतिहास कभी भी नहीं बदलेगा और वह समाज कभी भी नहीं सुधरेगा / मष्तिष्क की विक्रित्यां , अथवा मनोवैज्ञानिक विकारों , पर एक सामाजिक जानकारी अति आवश्यक वस्तु बन गए है / भ्रष्टाचार का एक स्रोत , शासन के लिए बल (सत्ता) का दुरूपयोग (abuse of power ) कई जगह मनोवैज्ञानिक विकार से भी जुड़ा हुआ है / इंसान का व्यक्तित्व भी अंततः उसकी वैचारिक योग्यता का प्रतिबिंब माना जाता है / ऐसी समझ  है की अच्छे विचारों वाले व्यक्तिओं का शारीरिक व चहरे का ताप भी अधिक आकर्षित करने वाल होता है / Emotional Intelligence जैसे विषयों में यह चर्चाएँ आम होती है / अब अच्छी फेस-क्रीम के प्रयोग से उत्पन्न भ्रम इसमें शामिल नहीं है :-P

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