मंदिर किन हालात में टूटा
चार सौ वर्षों पूर्व मंदिर किन हालात में टूटा था, इसे समझने के लिए भूतकाल में जाना जरूरी नहीं है। आप वर्तमान काल के हालातों का निरक्षण करके भी आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि क्या हालात घटे हुए होंगे।
हार्दिक पटेल ने तेरह हजार से ज्यादा tweet मिटा कर भाजपा का दामन पकड़ लिया है। और अब मोदी जी के गुणगान गाते घूम रहे हैं।
क्या विश्लेषण निकाला?
हिंदू उच्च जाति कोई स्थाई मूल्य, विचार या मर्यादा नहीं रखते हैं। हिंदू स्वभाव से polytheist होते हैं, जिस वजह से नित नए तर्क पकड़ कर आसानी से पलटी मार जाते हैं।
थूक कर चाट जाना संस्कृति में मान्य है।
कोई अडिग रहने वाला मूल्य नहीं है भारतवासियों में। इसलिए आसानी से पलट कर खिचड़ी संस्कृति होते रहे हैं हम लोग। जब मुस्लिम काबिज थे सत्ता पर, तब मुसलमान बन गए। और जब अंग्रेज आए, तब अंग्रेज बन गए।
मुसलमान भी अरब से मुट्ठी भर ही आए थे। मगर आज भारत की भूमि पर -भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश – तीनों को मिला कर गणना करने पर हिंदुओं से कहीं ज्यादा हैं।
ये कैसे हुआ?
असल में यहां के हिंदू ही तो मुसलमान बन गए थे! ये कश्मीरी मुसलमान कौन थे? जी हां — ये कश्मीरी पंडित ही परिवर्तन करके मुसलमान बने थे ! आमला मोहमद इकबाल, जिन्होंने ' सारे जहां से अच्छा , हिंदुस्तान हमारा', गीत लिखा था, और जो कि बटवारे के बाद पाकिस्तान में जा बसे, उनको पाकिस्तान में उपाधि ही दी गई थी — पाकिस्तान का ब्राह्मण !
ये उपाधि उनके पुराने धर्म की पहचान से मिली थी!
इसी तरह से अब्दुल्लाह खानदान (शेख़ मोहम्मद, फारूक और ओमर) ये भी कश्मीरी पंडित ही थे ! राजा कर्ण के पूर्वज के दरबार में राज पुरोहित हुआ करते थे !
अधिकांश कश्मीरी मुसलमान वास्तव में हिंदू पंडित —ब्राह्मण —पूर्वजों में से धर्म परिवर्तन से निकले हैं।
विषय का निष्कर्ष वही है। सब उच्च जाति अपनी सोच में चलांक लोग थे —है— और रहेंगे। वो मौका देख कर पलट जाने वाले लोग है, चाहे उनकी ऐसी असामाजिक सोच से उनका देश , समाज और नस्लें बर्बाद हो जाएं।
मगर फिर सच तो सच है।
जोधा और अकबर का किस्सा अगर सच है, तो ये इसलिए घटा था की राजपूत खुद अपनी बेटियां ला कर व्याह करवा देते थे मुस्लिम राजाओं से। ताकि नई रिशेतदारी से उनकी शक्ति और पहुंच बनी रहे , उनका अपने लोगो पर रसूक बना रहे !!
बात कड़वी है, मगर सच यही है।
उच्च जातियों का तो रिकॉर्ड रहा है आसानी से पलटी मार जाने का !
मोदी इस देश में चाहे कितनों ही मस्जिदें तोड़ कर वापस मंदिर बनवा लें, मगर कुल मिला कर वो भारत की इस संस्कृति को और अधिक सुदृढ़ करते चले जायेंगे कि मौका देख कर चौका मार देना चाहिए ,और पलटी करके सत्ता संपन्न बाहुल्य गुट के संग ही खड़े होना चाहिए !
मोदी भारत की संस्कृति नहीं सुधार कर पाएंगे कि लोगो को अकेला ही सही, मगर खड़े होना चाहिए, और अपने मूल्यों के लिए कुर्बान होने को तैयार होना चाहिए।
और शायद ब्रह्मण और पंडितों ने अभी तक हिंदू मूल्यों की पहचान करके सांस्कृतिक पहचान दी भी नहीं है , जो मोदी जैसे लोग जान सके कि आखिर हिंदू से क्या समझना चाहिए हमें और संसार को।
और इसलिए शायद भविष्य के लिए अंदाजा अभी सकते हैं कि शायद आज से चार सौ वर्षों बाद वापस हम लोग यही मंदिर मस्जिद का खेल खेल रहे होंगे।
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