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Showing posts from October, 2021

आध्यात्मिक अनाथ समाज, साधु बाबा गुरुचंद, और अकादमी शिक्षित गुरु का रिक्त

जिन व्यक्तियों ने छात्र जीवन में नीति (public policy), न्याय (process of justice) और नैतिकता (Conscience based reasoning) नही पढ़ी होती है, उनको इन विषयों पर बातें करने में cognitive dissonance disorder की पीड़ा होती है। ये व्यक्ति बचपन " आध्यात्मिक अनाथ "( spiritual orphan) की तरह जिये होते हैं। ऐसे व्यकितयों से यदि बातें या तर्क करते हुए ऊपरलिखित विषयों का प्रयोग करना पड़ जाये तब उनको लगता है कि सामने वाला high moral grounds ले रहा है, वो कुछ ज़्यादा ही अपने आप को clean, higher moral standards, का समझता है ("महान" बनने की कोशिश कर रहा है ) (और इस तर्क से) दूसरो को तुच्छ समझता है ! 'आध्यात्मिक अनाथ' करीब पूरी आबादी है अमेरिका मनोवैज्ञनिक इन शब्दावलियों का प्रयोग अक्सर करते हैं , जिसमे sense of coherence (बौद्धिक अनुकूलता का आभास ) भी है। उनके अनुसार,इंसानो में thought disorder मनोवैज्ञानिक रोग भी होता है,इंसान को अपनी सोच में संसार, समाज समझने में दिक्कत होने लगती है। इंसान अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं संसार को समझने में, इसकी राजनीति, इनकी कुटिलता, ...

हिन्दुओं का देश क्यों सहत्र युगों से रौंदा गया है ?

 दस सदियों से हिंदुओं को रौंदा गया और ग़ुलाम बनाया गया है। क्यों? क्या वज़ह है? A Hindu thugs but another Hindu. एक हिन्दू दूसरे हिन्दू से ही बेईमानी करता है, झूठ बोलता है, धोखाधड़ी करता। हिंदुओं के समाज में सामाजिक न्याय नही है। आपसी विश्वास नही है। और इसलिये इतिहास में कभी भी ,(सिवाय बौद्ध अनुयायी मौर्य वंश शासकों के) हिन्दू कभी भी शक्तिशाली राजनैतिक और सैन्य शक्ति नही बन सके।  मोदी काल में ही जीवंत उदहारण देखिये। EWS आरक्षण  कोटा तैयार करके सवर्णो को भी आरक्षण दे दिया है। और तो और गरीबी सर्वणों की गरीबी रेखा तय करि है 8 लाख रुपये सालाना ! EVM और उससे सम्बद्ध चुनावी प्रक्रिया पर अवैध, अनैतिक कब्ज़ा जमा लिया है। न्यायलय में दशकों से सवर्णो ने अनैतिक कब्ज़ा किया हुआ था, जिसका खुलासा अब जा कर हो पा रहा है , कि जजों की नियुक्ति में क्या जातिवाद घोटाले करते आये हैं दशकों से। मीडिया में जातिवाद का ज़हर भरा हुआ है। जनता को झूठ और गुमराह करने वाले समाचारिक ज्ञान प्रसारित हैं, विषेशतः तब जब ,जिस मामलों में  भाजपा और संघ के आदमी की गर्दन फँसी...

"Market पैदा करना" का क्या अभिप्राय होता है

Gym खोलने बनाम Library खोलने के तर्क वाद में आयी एक बात "मार्केट पैदा करो" का अर्थ ये कतई नही होता है कि पेट से पैदा करके लाएंगे ग्राहकों को library के सदस्य बनने के लिए। " Market पैदा करो " का अभिप्राय क्या हुआ, फ़िर? आज जब gym का business करना जो इतना आसान दिखाई पड़ रहा है, सत्य ज्ञान ये है कि आज से पच्चीस सालों पहले ये भी कोई इतना आसान नही था। क्यों? तब क्या था? और फ़िर ये सब बदल कैसे गया? आखिर में gym की सदस्यता के लिए "मार्केट कहां से पैदा" हो कर आ गया है? पच्चीस साल पहले लोग (और समाज) ये सोचता था कि ये सब gym और खेल कूद करके बच्चे बर्बाद ही बनते है। बॉडी बना कर बच्चा क्या करेगा? गुंडागर्दी? वसूली? सेना में जायेगा? या कुश्ती लड़ कर फिर क्या करेगा?  Gym में तो बस मोहल्ले के मवाली, आवारा लौंडे ही जाया करते थे, जिनसे सभ्य आदमियों को डर लगता था। gym के बाहर में ऐसे ही लौंडे bikes पर बैठे हुए जमघट लगाये रहते थे। तब दूर दूर तक के इलाको में जा कर एक आध ही gym मिलता था। फ़िर ये सब बदला कैसे ? यही बदलाव की कहानी ही है " market पैदा करने " की कहानी । ये ...