ब्राह्मण और बुद्ध विपरीत है एक दूसरे के
तुम डरते हो राम से! ब्राह्मण नही डरता हैं! अगर डरता तो 2 करोड़ की जमीन 18.5 करोड़ में खरीदकर जनता को राम के नाम की चपत नही लगाता! ब्राम्हण तो बस राम का ब्यापार करता है! ब्राह्मण समाज को आध्यात्मिक तौर पर निर्मित करता है - शोषण किये जाने के लिये, सहन कर जाने के लिए, भ्रष्टाचार को सांस्कृतिक आदत बना देने के लिए। ब्राह्मण समाज में से पाप और पुण्य की दूरियां समाप्त कर देता है, दोहरे मापदंड स्थापित कर देता , vvip संस्कृति को जन्म देता है , भेदभाव ऊंच नीच , आम आदमी-विशेष आदमी की संस्कृति चालू करता है। राम के नाम पर "विशेष आदमी"(vvip संस्कृति/चलन) इन्हीं की हरकतों से चालू होता है। ब्राह्मण अपनी "wisdom' से perverse और reasonable के बीच का फैसले नष्ट कर देता है। महाभारत में सब उच्च ब्राह्मण -- कृपाचार्य, द्रोणाचार्य बैठे हुए द्रौपदी का चीर हरण देख रहे थे, और भीष्म पितामह को भी दिखावा रहे थे। ये सब दुर्योधन के साथी थे। एकलव्य का अँगूठा कटवाया था, और आज तक उसे न्यायोचित बताते हैं, -- गुरु दक्षिणा ली थी । हिंदुओं के प्रधान ईष्ट - राम , कृष्ण - कोई भी ब्राह्मण नही है, ...