Professional Skillsmen are not valued properly in Indian system


रामविलास पासवान ने आज अनजाने में एक कड़क बात बोली है -- कि , सफाई कर्मचारियों की तनख्वा आईएएस  के बराबर होनी चाहिए

शायद अनजाने में कही हो, मगर इतिहास और सामाजिक सिद्धांत से बात एकदम सटीक कही है , भले ही concept  को समझने में आम भारतीय जनता को समय लग जाये बहोत छोटे शब्दों में अगर समझाने का प्रयास करें तो यूँ है की समाज की जिस चीज़ की आवश्यकता अधिक होती है , जाहिर है की उसका मार्किट भाव अधिक होता हैं, क्योंकि वह होना भी चाहिए और यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समझ लीजिये की आप अंधेर नगरी में जी कर उलटी खोपड़ी पैदा किये जा चुके है - वह इंसान जो सही को गलत, और गलत को सही समझ कर ही पला-बड़ा हुआ है
अब आप सामाजिक शास्त्र में आर्थिक इतिहास को पलट कर देख लीजिये मगर भारत का आर्थिक इतिहास नहीं , उन दशो का जो अधिक श्रेष्ठ और विक्सित है वह सब के सब अपने नागरिकों के कौशल यानि skill  और talent  के भरोसे आज multinational  कंपनियां खोले हुए हैं, की अपनी bureaucracy  के भरोसे

अब सीधे शब्दों में तो मांग करना गलत होगा की सफाई कर्मचारी को सरकारी खजाने में से तनख्वाह बढ़ा कर आईएएस के बराबर कर दो, मगर concept  में बात यही है  कि यदि समाज को सफाई की ज़रुरत है , साफ-सफाई की बाजार में मांग है , तो फिर इस काम को करने वाले कौशल कामगारों को अपना बाजार भाव का मोल तय करने की स्वत्नत्रता होनी ही चाहिए सारी दुनिया का इतिहास गवाह है , देश वही तरक्की कर सका है जहाँ , जिस चीज़ की अधिक  आवश्यकता है , उसको प्रदान करने वाले कुशल कारीगर को उसका उचित भाव मिल सका है आईएएस से दिक्कत यह नहीं है की उनको अधिक तनख्वा क्यों है, दिक्कत यह है की आईएएस तंत्र जो की UPSC  से आता है , वह जिस प्रकार की monopoly  के भरोसे यह पगाड़ कमाता है , जो की उसे भारत के संविधान,-- constitution  से मिलता है, वह किसी और प्रोफ़ेशनल के पास नहीं है , और नतीज़तन कौशल कामगार लोग अपने skill  का तो मानदंड तय कर सकते हैं, और ही उचित मूल्य बल्कि उलटे UPSC  की मोनोपोली के चलते यह IAS  लोग देश के तम्माम कौशल कामगारों की किस्मत पर बैठा दिए जाते हैं, जहाँ यह professional  skillsmen  को अपना नौकर या कर्मचारी समझ कर बर्ताव करते हैं , और उनकी तनख्वाह तय कर देते हैं, इनका न्यूनतम सरकारी rate तय करके

आप मर्चेंट नेवी के कामगारों या हवाई जहाज़ों के कामगारो की अधिक श्रेष्ठ तन्खाह के बार में तो जानते ही होंगे ऐसा सिर्फ इस लिए मुमकिन हो सका है कि यहाँ भारत में नहीं, बल्कि विदेशों में ऐसे कामगारो की मांग है , और वहां इनका बाजार भाव अधिक है  वरना भारत में तो हज़ारों यात्रियों की जान की जिम्मेदारी लिए चल रही रेलगाड़ी के इंजन ड्राइवर का प्रशासनिक मूल्य तो सिर्फ एक grade-3  के मुलाज़िम की ही है तो यह है भारत का प्रशासनिक तंत्र की असली मानसिक क्षमता है -- इनका अपना बस चले तो यह हवाई जहाज़ के पायलट को भी ड्राइवर की ही तरह बराबर का बना दें वह तो भला हो market  रेट का , जिसके चलते थोड़ी बहोत इज़्ज़त बची है कुछ एक professional  skillsmen  की , वरना संविधान की शर्तों से तो नौकरशाही बनी है असल में बाकि सब कौशल कामगारों को अपना नौकर बनाने के लिए

मगर ब्रिटैन में UPSC  जैसा तंत्र नहीं है royal  charter  यानि शाही फरमान जैसे व्यवस्था ने कौशल कामगारों को अपनी किस्मत खुद तय करने का, अपना बाजार भाव खुद रचने का मौका दिया है , जिसकी वजह से ब्रिटेन में talent विक्सित हुआ और दुनिया में वह multinational  कंपनी बना कर राज कर सकें है चलिए आपने साबुन बनाने वाली कंपनी Unilever कंपनी  का इतिहास के अनजान पहलुओं से परिचित करवाते हैं-- शायद यह इतिहास का एक अध्याय आपको Professional  Association , से Royal  Charter  से लेकर Multinational  Corporation  की घटना क्रम को समझा सके

आरम्भ में सिर्फ कुछ केमिस्ट ही हुआ करते थे, जो की कुछ रसायनों और अर्क  का मिश्रण बना कर अजीब-अजीब प्रयोग करते थे और शायद कुछ छोटे मोटे  आग बनाने वाले जादू तमाशा करके पैसा कमाते थे ऐसे ही तमाशायिओं में से कुछ एक ने इंग्लैंड में अनजाने में कुछ अर्क  को मिला कर पहली बार खुशबू नुमा बट्टी तैयार करि थी जो की साबुन कहलाती थी केमिस्टों के इस बिरादरी ने अपनी एक professional  association  यानि पेशेवर बिरादरी बनायी थी, जिसको अपने इस उत्पाद को निर्मित करने का monopoly  अधिकार १६३३ में सम्राट चार्ल्स से मिला था यह रॉयल चार्टर उनकी बिरादरी को मिला था -- the  society  of  the  soapmakers  को royal  charter  के अर्थ आज की भाषा में समझें तो यहाँ अब कोई नौकरशाही या UPSC  या आईएएस नहीं बीच में आने वाला था soapmakers  के उत्पाद का market  भाव तय करने के लिए तो वह बिरादरी खुद से ही साबुन बनती थी, और उसका भाव तय  करती थी १९३० आते आते साबुन बनाने वाले इन कंपनियों में से ब्रिटिन एक Lever Brothers  ने कुछ और बिरादरी के लोगों से संगठन बना कर और अधिक मात्रा में उत्पाद किया कर जो कंपनी बनायीं -- Lever  Brothers , वह दुनिया का पहला मल्टीनेशनल कारपोरेशन बना था आज भी भारत में उसी professional   skill  केबिरादरी के लोगों की बनायीं कंपनी Unilever  limited  देश की बहोत बड़ी कंपनी है जिसके कई जगह फैक्ट्री है

कुछ ऐसी ही कहानी दवा बनाने वाली कंपनी Galxo की भी है। skill से professional association बने, उनको royal charter मिला, और उनमे से कई आगे जा कर multinational corporation में तब्दील हो गए।
अगर आपको इनके सफर की दास्तान समझ मे आ गयी हो, तो शायद आप समझ जाएंगे कि भारत में आज क्या अंधेर गर्दी हो रही है।

इंग्लैंड में १६वी शताब्दी से लेकर अब तक 900 से अधिक शाही फरमान जारी हुए हैं। इनमे से 114 बार professional  बिरादरियों को इस प्रकार के शाही फरमानो से नवाज़ा गया है जहाँ उनको एकाधिकार दिए जाते है अपने कौशल क्षेत्र से सम्बंधित मापदंड (Standards) तय करने के , और फिर उन मापदंडों के आधार पर अपने कौशल का उचित बाजार भाव तय करने का 
सबसे नए प्रोफ़ेशनल बिरदारीयों में Information  Technology  प्रोफ़ेशनल्स हैं, और Human  Resource  प्रोफ़ेशनल हैं जो कि सं 2010 से 2014 के बीच शाही फरमान यानी royal charter से नवाज़े गए है

जब तक कौशल कामगारों को उनको अपना भाव तय करने का अधिकार नहीं मिलेगा , और ठीक उल्टे , UPSC जैसे संवैधानिक संस्थाओं की अपनी  प्रशासनिक आवश्यकता के चलते आईएएस को अपना भाव तय करने का अधीकार होगा, यह अंधेर नगरी कर्मकांड तो होगा ही-- IAS  जिसके पास समाज की तुरंत आवश्यकता पूरी करने का कोई भी कौशल नहीं होता है, वह अधिक पैसे कमाए गा, और सफाई जिसकी बहोत ज़रुरत है-- उसके कामगारों को कम पैसा मिलेगा

आप UPSC  तंत्र से जुड़े  अंधेर नगरी कांड  को कुछ अन्य तथयिक बिंदुओं से मिलन कराएं-- देश के 85 प्रतिशत से अधिक के युवाओं की शिक्षा किसी  भी नौकरी लायक नहीं है
और देश में सबसे अधिक आवेदन अर्ज़ियाँ प्रति वर्ष कहीं लगाती हैं तो वह है UPSC 
क्या दोनों बातों के जोड़ को देख कर कुछ समझ रहे हैं आप ? कि, ऐसा क्यों ?
हमारे देश में , जो की प्रजातंत्र होने का वादा करता है , इसमें असल में अपना भाग्य खुद तय करने का अवसर असल में सिर्फ नौकरशाही के पास ही हैं, वह क्योंकि UPSC  ने सारी  शक्ति उनकी ही झोली में डाल दी है और अब जब देश में skill  की कमी है , तो वह लोग मूर्ख बनाने के लिए SKill  India  जैसे program  ले कर चले आये हैं दुनिया के आगे जब investment  के लिए अच्छे उद्योग ही निर्मित नहीं हो सके , तो यह लोग विदेशी निवेश के लिए कुछ खादी कपड़ा और पीतल उद्योग की प्रदर्शनियां करवाते रहते हैं, FDI की भीख मांगने के लिए-- असल में  जनता को मूर्ख बनाने के लिए

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