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Showing posts from November, 2017

कैसे ब्रिटेन की प्रशासनिक व्यवस्था स्वायत्तता प्राप्त करती है राजनैतिज्ञ वर्ग से

ब्रिटेन में bbc को कैसे समाज को सही मार्ग या सत्मार्ग दिखाने वाली खबर और जानकारी देने की स्वायत्तता मिल जाती है, बिना इस बात के डर से की कुछ शीर्ष पदों के तबादले, निलम्बन या सेवामुक्ति देखने पड़ सकते हैं ? यहां दूरदर्शन के दो मुलाजिम प्रधानमंत्री के भाषण की रिकॉर्डिंग के दौरान मात्र हंस क्या दिए, उनको नौकरी से हाथ धोना पड़ गया। किसी एक मुलाज़िम ने जनता के बीच जा कर सच क्या बोल दिया कि कोई एक भाषण वाकई में किस तारीख में रिकॉर्ड हुआ था, उसे भी परिणाम भुगतने के लिए नौकरी से निकाल दिया गया।  Whatsapp के सदवाणी संदेश कहते है कि संसार का बुरा किसी बुराई के कर्म करने वालो से इतना अधिक नही होता है, जितना कि भले लोगो के चुप रहने से, और बर्दाश्त कर जाने से होता है। अबोध भारत की बहोत बड़ी आबादी अपने भ्रमकारी कुतर्क से यह समझती/समझाती है कि समाज को भ्रष्टाचार मुक्ति दिलाने के लिए प्रशासनिक तंत्र आवश्यक नही है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को भ्रष्टाचार विमुक्त आचरण से ही मुक्ति मिलेगी। खास तौर पर वर्तमान काल के राजनैतिक वर्ग यही कुतर्क जनता में बेचना चाहता है, और लोकपाल क़ानूम जैसे विधान आने क

रेफरी विहीन shouting मैच है भारत की राजनैतिक प्रशासनिक व्यवस्था

प्रश्न :- Via Mani M अपना मानना है कि यदि नरेंद्र मोदी लड़कपन में संघ दफ्तर नहीं पहुंचते और उसकी जगह शेयर बाजार पहुंचते तो वे अरबपति बने हुए होते । वे राजनीति में आए तो धुन ने ही उनको संघ परिवार के शीर्ष पर पहुंचाया। इस धुन का कोर तत्व मार्केंटिग है। मोदी के जीवन के हर चरण में मार्केटिग ही सफलता की सीढ़ी रही है | मार्केटिंग का पहला और अंतिम मूल मंत्र यह है कि ग्राहक को रिझाने के लिए ऐसा कुछ लगातार होता रहे जिससे वह लगातार विश्वास दिए रहे। इस बात को और बारीकी से समझना है तो सोचें क्या राहुल गांधी झाडू ले कर स्वच्छ भारत का आईडिया या इवेंट बना सकते थे? क्या ममता बनर्जी संकट की घड़ी में अपनी मां को बैंक में भेज कर नोट निकलवाने का आईडिया सोच सकती थीं? क्या नीतीश कुमार अरबपतियों का जमावड़ा कर मेक इन इंडिया जैसा इवेंट कर सकते हैं? क्या अरविंद केजरीवाल अचानक लाहौर पहुंच कर नवाज शरीफ के साथ पकौड़े खा सकते थे? क्या मनमोहनसिंह हैदराबाद हाउस में बराक ओबामा के आगे लखटकिया सूट पहन चाय पिलाने, उन्हें तू और मैं के संबोधन वाले दोस्त का फोटो सेशन का आईडिया बना सकते थे? क्या आटे की बात करने वाले लालू

EVM fraud और इसका सामाजिक विश्वास पर प्रभाव

सुब्रमण्यम स्वामी ने 2013 में जब evm fraud की शिकायत करि थी, तब भी कांग्रेस की सरकार के दौरान कोर्ट इतने पक्षपाती न थे और मामले के समाधान में vvpat उसी शिकायत के समाधान में लाया गया था। सच को स्वीकार करना ही पड़ेगा, तब भी जब की सच कांग्रेस के पक्ष में खड़ा हो--कि, अगर कांग्रेस की सरकार evm fraud में गंभीरता से लिप्त होती तब फिर शायद 2014 के लोकसभा चुनावों में सत्ता परिवर्तन कभी होता ही नही। मगर क्या आज भी ऐसा ही है ? आज देश की बड़ी आबादी evm और vvpat की शिकायत कर रही है। 2013 में सिर्फ भाजपा और सुब्रमण्यम स्वामी ही शिकायत कर्ता थे। आज देश की करीब करीब सभी चुनावी पार्टी इसकी शिकायत कर चुके है। कोर्ट कितना पक्षपाती हो सकता , इस पर समूचे देशवासियों की नज़र है। कोर्ट के किसी भी पक्षपाती फैसले या टालमटोल से तकनीयत में भले ही बड़ीआबादी को चुप रहने पर मजबूर करा जा सकता है, मगर समाज मे आपसी विश्वास यानी public trust को नष्ट होने से नही रोका जा सकता है। पब्लिक ट्रस्ट क्या है, मैंने इस विचार को समझता हुआ एक निबंध कभी पढ़ा था जो कि किसी साहित्य में नोबल पुरस्कार प्राप्त लेखक ने लिखा था। वास्तव में 

Modern times habit of revisionism

Btw, revisionism is in high gear these days. And not just in History, but also in mythology. Whatsapp messages are in circulation speaking Ravan was not a symbol of evil, but rather an ideal brother who was out to revenge his sister's dishonor. Almost all thing that we know of the Hinduism is being put to revisionism. The problem is that while freedom of expression has come to the people, armed with the tool of social media where quick dissemination is possible, most people are not articulate thinkers, practised enough in the Critical Thinking. Moreover , India does not have institution as the high brand colleges of liberal arts and other think tank organization which may help to provide to the masses the right knowledge. Result is that Intolerance has grown along with the growth of power to achieve wider dissemination of one's idea - namely, the social media. Of course the evil bend  political outfits have rushed to capture the intolerance of masses to propel themselves to

मुस्लिम घृणा से राष्ट्र निर्माण का कोई मूल्य नही बनता

मुस्लिम-घृणा कोई ऐसा सामाजिक मूल्य नही है जिसके आधार पर इंसानों की बड़ी आबादी को शांति पथ पर चल कर सामना अचार संहिता यानी संविधान का आपसी संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया जा सके। मुस्लिम घृणा से सिर्फ वोट बैंक कमाया जा सकता है, इंसानों को संतुष्ट नही किया जा सकता है कि सभी के लिए कुछ है। जब जस्टिस कर्णनं एक पदस्थ जज हो कर भी भ्रष्टाचार के मात्र आरोप लगाने पर जेल भेज दिए जाते है, और जस्टिस दीपक मिस्र न्यायलय के आंतरिक कानून का हवाला दे कर अपने ही खिलाफ कार्यवाही के मुकदमे में खुद जज बन कर फैसला करते है, तब बड़ी आबादी को पोल खुल कर पता चल जाता है की अब इस समाज के मूल्य क्या है, और किसके हितों की रक्षा के लिए है, जबकि फौजो में लहू कौन सी आबादी बहाने के लिए आगे जाती है। जब कोर्ट के फैसले किसी पैसे वालो के हक़ में रहस्मयी क़त्ल में जाने लगते है तब बड़ी आबादी को पता चल जाता है जी आखिर किस आबादी के धन और सुख-सुविधा के हित मे कौन सी आबादी अपना लहू बहाती है सैनिक बन कर।

EVM Fraud - an attack on the public trust

सुब्रमण्यम स्वामी ने 2013 में जब evm fraud की शिकायत करि थी, तब भी कांग्रेस की सरकार के दौरान कोर्ट इतने पक्षपाती न थे और मामले के समाधान में vvpat उसी शिकायत के समाधान में लाया गया था। आज देश की बड़ी आबादी evm और vvpat की शिकायत कर रही है। 2013 में सिर्फ भाजपा और सुब्रमण्यम स्वामी ही शिकायत कर्ता थे। आज देश की करीब करीब सभी चुनावी पार्टी इसकी शिकायत कर चुके है। कोर्ट कितना पक्षपाती हो सकता , इस पर समूचे देशवासियों की नज़र है। कोर्ट के भी पक्षपाती फैसले या टालमटोल से तकनीयत में भले ही बड़ीआबादी को चुप रहने पर मजबूर करा जा सकता है, मगर समाज मे आपसी विश्वास यानी public trust को नष्ट होने से नही रोका जा सकता है। पब्लिक ट्रस्ट क्या है, मैंने इस विचार को समझता हुआ एक निबंध कभी पढ़ा था जो कि किसी साहित्य में नोबल पुरस्कार प्राप्त लेखक ने लिखा था। वास्तव में  इंसानों को समाज मे जीवन आचरण कर सकने का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व सामाजिक विश्वास यानी पब्लिक  ट्रस्ट है। बुनियादी सामाजिक सहवास में से राष्ट्र का निर्माण public trust के खाते के निर्माण से ही होता है। संस्थाएं बनाई जाती है इसी खाते की देख र

The law is working such that the justice is no more for the agragarians

THe law of this country is nothing but another mechanism to fool the people that there is justice for everyone The truth is that when Tej Bahadur Yadav complains of the bad food and ill-treatment and private-servant ship of the senior military brass, the law acts such that he is persecuted and relieved from his services. But when there are eye witness statement of who was driving the vehicle when the poor , home less people , failed by the governance of this country, sleeping over the footpath , died crushed by the wheels, the Justice itself creates a whodunnit from the documented statement of the witnesses as to who was responsible. The law works such that when a low-represented judge makes a complain of corruption in this country, he suffers imprisonment without having to go impeachment. But the law function such that an other judge accused of corruption cannot be prosecuted because there is no permission from the president or the CJI. And then, the law works such that a sitting

hierarchy of courts in India

Criminal Courts The judiciary is divided along the lines of Nature of case they deal with - Civil, Criminal or Revenue And along the lines of territorial distribution , with respect to the size of population of the place which they are going to give their service to - City or Metropolitan Hence, the lower Criminal Courts are divided as follows as per the Criminal  ​ Constitution of criminal courts are per territorial division The power of the court is also defined in the CrPC Code, which is summaried as below ​ Powers of various criminal courts Civil Judiciary The lower civil judiciary is divided as describe below ​ Lower Civil judiciary  

Lateral Inversion of the socio-political ideas during "adoption" of the Constitution

Physics विषय मे जब भी Light and Reflection के बारे में पढ़ाया जाता है तब प्रतिबिम्ब में lateral inversion का सबक भी सामने आता है। lateral inversion उस प्रत्यय का नाम है जब किसी आईने (mirror) में उत्पन्न प्रतिबिम्ब किसी मूल वस्तु के दाहिने हिस्से को बायां दर्शाता है। कहते हैं कि नकल करने में भी अकल की ज़रूरत होती है। और कभी कभी नकल करना किसी को अपने अंदर प्रतिबिम्बित करने का जैसा ही होता है। और तब ही इस प्रत्यय की अकल रखनी पड़ती है जी नकल करने में हम कही किसी प्रत्यय को उल्टा पुल्टा तो नही लागू कर दे रहे हैं। भारत का संविधान भी अपने किस्म का एक नकल ही है, क्योंकि वह जिन कानूनी मूल्यों को लागू करने का आपसी संकल्प करता है उन मूल्यों का क्रमिक विकास या सामाजिक उत्थान भारत भूमि पर हुआ नही हैं। इसलिए भारत के संविधान की दास्तान भी शायद कुछ ऐसे ही गलतियों से भरी हुई है। मूल सामाजिक घटनाओं के चलते उत्पन्न संविधान के लिए आवश्यक सामाजिक चेतना अलग होती है, और नकल करके लाये गए संविधान को लागू करने के लिए दूसरे समाज या देश मे वह सामाजिक चेतना विलुप्त होती है। यहां से नकल करने में अक्ल की कमी का भेद