Posts

Showing posts from August, 2017

Epic चैनल के विषय में

I am concerned about the promotion of this EPIC channel . Epic Channel on its face appears to be an India-centric version of knowledge channel as Discovery ®, or National  Geographic ®.    मगर एक तुलनात्मक दृष्टिकोण से epic चैनल और इन अन्य knowledge चैनल( ज्ञानवर्धन चैनल) में भेद समझ मे आएगा और इसकी वर्तमान काल मे सामाजिक -राजनैतिक भूमिका के पहलू खुलेंगे।   जानकारी के लिए यह मालूम हो कि epic चैनल reliance मीडिया ग्रुप से आया चैनल है और अधिकांशतः भारत की पौराणिक, सांस्कृतिक , शास्त्रीय और इतिहासिक धरोहरों पर ही केंद्रित है।  महज़ जानकारी प्राप्त करने की दृष्टिकोण से तो कोई दिक्कत नही है, मगर सामाजिक उपयोगिता के दृष्टिकोण से यह चेनल किसी विशेष राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करता हुआ दिखाई पड़ता है।   जानकारी के लिए यह भी बता दें कि दूसरे अन्य ज्ञानवर्धक चेनल जैसे कि discovery , national geographic और history इत्यादि के भारत मे प्रसारण के अधिकार भी reliance ग्रुप ने ही संरक्षित कर लिए हैं।     तुलनात्मक दृष्टिकोण से epic चेनल अन्वेषण (exploration) के स्थान पर रहस्यमयिता (mystici

अंतरिक्ष अनुसंधान और कंप्यूटर कृत तस्वीरें

 अंतरिक्ष अनुसंधान की अधिकांश तस्वीरें काल्पनिक शक्ति के प्रयोग करके कंप्यूटर कृत ही दिखाई जाती हैं।  बल्कि एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि किसी भी मनाव निर्मित उपग्रह तथा यान ने आज तक खरबों खरबो धरती की तस्वीरें निकाली है, * मगर एक भी तस्वीर में धरती को पूर्ण गोल रूप में देखा नही गया है। *  इसका मतलब है की इस बात का एकदम अभेद प्रमाण किसी तस्वीर के रूप में तो आज भी नही है कि धरती गोल ही है ! जो भी तस्वीर हम इंसानों ने आज तक देखी हैं जिसमे धरती गोलाकार दिखती है, * वह कल्पना कृत है। *  दूसरा, कि धरती की एक भी तस्वीर बादल रहित कभी भी नही मिली है। मतलब , देशो और समुन्द्रों की सीमाओं को स्पष्ट दिखाने वाली google maps और google earth की जो कोई भी तस्वीर हम देखते है वह सब कंप्यूटर द्वारा कई तस्वीरों में संपादन करके बदलो इत्यादि को हटा करके, रंगों को निखार करके निर्मित करि जाती है।  इसका अर्थ यह है कि दूसरे शब्दों में वह सब " छेड़छाड़ " से प्राप्त तस्वीरें ही है।  इसका यह अर्थ भी नही की हम वापस संदेह करने लगे कि क्या हमे झूठ पढ़ाया जाता है कि धरती गोलाकार है।  मगर

EVM मामला और सरकार का रवैया

सरकार ने बहोत ही बचकाना सा कारण बताया है न्यायलय में कई evm के साथ vvpat को क्यों नही अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। सरकारी वकील ने तर्क दिया है कि चूंकि evm कभी भी छेड़छाड़ कारी साबित नही करि जा सकी है, इसलिए वह छेड़छाड़ मुक्त ही मानी जानी चाहिए। और 2013 के जिस फैसले में vvpat की बात हुई थी, उसमे भी यही बात रखी गयी थी कि evm छेड़छाड़ विमुक्त है, और vvpat मात्र एक अतिरिक्त उपाय ही है। तो इस तर्क पर vvpat की अनिवार्यता को निरस्त करना चाहिए, ताकि इसके उपयोग से आने वाला खर्च कम किया जा सके। Evm छेड़छाड़ विमुक्त है, यह अपने आप मे एक असिद्ध वाक्य है। evm की छेड़छाड़ विमुक्ति सिद्ध करने वाला परीक्षण तो इस देश मे कभी हुआ ही नही है। evm hacking नाम से जो कुछ भी कार्यक्रम किये गए है वह तो डेमोंस्ट्रेशन करके करे गए हैं। जब जब evm हैकिंग के लिए नागरिक संघटनों और कुछ एक चुनावी पार्टी (जैसे कि आम आदमी पार्टी) ने चैलेंज दिया है, निर्वाचन आयोग ने चैलेंज की शर्तों के चक्रव्यूह के बीच मे evm को रख कर उनके परीक्षण को रोक दिया है। जिन शर्तो के चक्रव्यूह में निर्वाचन आयोग अपनी evm को बचा रहा है, उन शर्तों के तहत किसी भ

जातिवाद विरोध से श्रमिक शोषण विरोध की दिशा

 *जातिवाद विरोध से श्रमिक शोषण विरोध की दिशा - भाग 1*  जातिवाद के विरोधियों की विचार शक्ति आज भी संकुचित हैं। यह लोग जातिवाद के अन्याय को झेलने के बाद अब जातिवादी अन्याय की पीड़ा के सदमे वाली मनोविकृति से ग्रस्त हो गए हैं।  इसलिए इस समूह ने जातिवाद की समस्या को उसके व्यापक दुर्गुणों के माध्यम से न ही पहचान पाया और न ही अपने आंदोलन को विस्तृत बना पाया है। और देश और समाज आज वापस उन्ही दुर्गुणों से ग्रस्त है जिनसे जातिवाद निकला था। श्रमिक शोषण वह मूल दुर्गुण है जिसको चिन्हित करने में आज भी जातिवाद विरोधी विफल है, और जिसके चलते यह अपना आंदोलन विस्तृत नही कर पाए हैं। शुद्र जाति समूह अपने प्रति हुए अन्याय को आज तक सिर्फ ब्राह्मणवाद के विरुद्ध लड़ाई के रूप में ही देखता और समझता आया है, जिसके चलते न तो वह अपने आंदोलन को व्यापक, अंतर्जातीय बना सके हैं, और न ही भारतीय समाज को श्रमिक शोषण से मुक्त कर पाए हैं।    सामंतवाद समस्या ने किसी काल में समूची दुनिया को त्रस्त किया था। मगर पश्चिम देशो में सामंतवाद के विरोध में न्याययिक सुधार हुआ, श्रमिक कानून और आंदोलन तीव्र हुए, न कि कोई पीड़ित जाति समूह किसी

चाइना के उत्पादों का बहिष्कार और श्रमिक कानूनों का उलंघन

चाइना डोकलं में हुंकार भर रहा है। और इधर भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दे रही है कि evm में vvpat जोड़ना अनावश्यक और पैसा व्यर्थ करने की कार्यवाही होगी , दो-तीन कारणों से। पहला,  क्योंकि evm अपने आप मे कभी भी सिद्ध नही करि गयी है कि इसमें छेड़छाड़ करि जा सकती है। इसलिए evm अपने आप मे ही पर्याप्त मानी जानी चाहिए। दूसरा, की vvpat की भी जीवनअवधि 15 वर्ष तक कि है, evm मशीनों की भांति। यानी हर वर्ष करोड़ो रूपयों का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा निर्वाचन कार्यों में। शायद चीन को भनक है कि evm मुद्दे के चलते आज भारतीय में वापस वह राष्ट्रीय एकता नष्ट होने लगी है जो कि किसी भी बाहरी शक्ति से लड़ने के लिए आवश्यक होती है। भारत की यह सरकार evm भरोसे चाहे जितना बड़ा बहुमत सिद्ध करके सत्ता में आ जाये, मगर अब यह बाहरी शत्रुओं से बहोत कमज़ोरी से लड़ सकेगी। क्योंकि भारतीय नागरिकों से लेकर सैनिकों में असंतोष व्याप्त होने लगेगा कि अब वह जिन मूल्यों की रक्षा करने के लिए खड़े हैं वह सरकार स्वयं उनके हितों का प्रतिनिधित्व और रक्षा करने में माहर्थ नही रह गयी है। सरकार तो खुद चोरो और माफियाओं की रक्षक बन चुकी ह

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से प्राप्त नकली बहुमत वाली प्रजातंत्र व्यवस्था का उत्थान और संयुक्त राष्ट्र का पतन

Hackers  यानी चोरी से किसी मशीन तंत्र में घुसपैठ करने वाले गिरोह ने मात्र 90 सेकंड के भीतर अमेरिका में प्रयोग होने वाली चुनावी मशीनों को भेद कर दिखाया है।   संयुक्त राष्ट्र  को इस खबर पर ध्यान देने का समय आ गया है।  सयुंक्त राष्ट्र  का अपना प्रशासन सदस्य देशों के प्रतिनिधियों से ही निर्मित होता है। और ज्यों ज्यो सदस्य देशों की तथाकथित प्रजातांत्रिक सरकारें ऐसी ही fixed मशीनों से प्राप्त नकली बहुमत के माध्यम से शासनस्त होंगी, वह संयुक्त राष्ट्र में भी अपने नुमाइंदगी के लिए अपने सुविधा वाले अधिकारियों को नियुक्त करने लगेगी। ऐसे में हम अपेक्षा कर सकते है कि कुछ वर्षों में  संयुक्त राष्ट  जैसी संस्था भी दूषित और भ्रष्ट विचारो वाले लोगों के नियंत्रण में चली जायेगी, जिनका वास्तविक उद्देश्य विश्व कल्याण, विश्व शांति नही रह जायेगा। नकली बहुमत वाले प्रजानतंत्रिक देशो  के नागरिकों के पास अपने इन हालात से मुक्ति पाने का कोई भी जरिया नही रह जाता है। नागरिक वर्ग में वास्तविक बहुमत अगर अपनी सरकार से नाखुश भी हो, तो भी वह सरकार के वास्तविक नियंत्रकों को बदल सकने लायक ही नहीं रह जाता है।

Why I don't agree with the social media appeal campaign to boycott Chinese goods

I strictly don't believe in the *Bo ycott Chinese Goods * theory.     I think  that Indian corporates need to learn to compete with the Chinese manufacturer instead of passing on the burdens created from their failures onto the customers , by illegitimately invoking the patriotic feeling of the people in order to make them  boycott the Chinese made goods. Boycotting the goods, in my views, is but a game of hypocrisy designed by the corporates and meant to harvest profits to them.     The game begins from a honest and sincere intention of well-being of the world, that oft-spoken vasudhev kutumbkam phrase, in the light of severe devastation suffered by the humanity in the two world wars. The idea of Globalization  was mooted in order to help the countries fulfill  their needs of development.  This is the line that the government officially holds even to this date. But in the back offices, the corporates send out misleading social media messages to boycott the goods of certain countri