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Showing posts from May, 2017

राजा भोज तथा भोजपुरी भाषा का संबंध

भोजपुरी भाषा पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में बोली जाने वाली बोली का नाम है। यह नाम इस क्षेत्र में प्रसिद्ध राजा भोज के नाम से आया है। कौन थे राजा भोज , और क्यों प्रसिद्ध थे यह ? राजा भोज का शासन करीब 12 शताब्दी में उज्जैन के राजसिंहासन से हुआ करता था। वह परमार राजवंश से आये शासक थे। उनकी प्रसिद्धि उनकी न्यायप्रियता और बुद्धिमता के चलते थी। टीवी पर 1980 के दशक में दिखाए जाने वाले दो धारावाहिक राजा भोज के इर्द गिर्द निर्मित थे। एक था सिंहासन बतीसी और एक था विक्रम और बेताल । इनके ही शासन के दौरान उज्जैन ने कला, विज्ञान, ज्यातिषी के माध्यम से नक्षत्रविज्ञान (astronomy) में श्रेष्टतम प्रदर्शन किया था।      राजा भोज का शासन मध्य भारत मे एक विस्तृत क्षेत्र में स्थापित था। एक अन्य प्रसिद्ध कहावत कहाँ राजा भोज, और कहां गंगू तेली भी इन्ही से संबंधित है। कहते है कि कोल्हापुर (जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य में स्थित है) ,तक उज्जैन के राजा भोज का शासन था। वहां एक बार एक किले के निर्माण के दौरान निर्माण का कुछ अंश बार बार गिर जाया करता था। कारीगरों और तत्कालीन विश्वकर्मा अभियंताओं

secularism विरोध, और वैज्ञानिक चिंतन शैली का नाश

1986 या 1987 की बात है। जो आज की मध्य पीढ़ी है , उस समय अपने बचपने में, करीब 10वर्ष या उससे भी कम आयु की थी। टीवी पर दूरदर्शन ही एकमात्र सेवा प्रदानकर्ता हुआ करता था। तब भारत मे विज्ञान और समाज मे वैज्ञानिक विचारधार को प्रसारित करने के लिए बहोत सारे सार्थक प्रयासों की दिशा मे कई सारे science fiction , यह वैज्ञानिक परिकल्पना के कार्यक्रम आया करते थे।छोटे बच्चों में खास तौर पर वैज्ञानिक दृष्टि विकसित करने के लिये। उस धारावाहिकों में कुछ प्रमुख नाम है सिग्मा और और इंद्रधनुष। इन परिकल्पनाओं में दिखाया जाता था कि भविष्य में जब कंप्यूटर आ जाएंगे तब कैसे सिर्फ बटन दबाने मात्र से कितनों ही बड़े और अजीबोंगरीब  मशीनी कारनामे यूँ ही पलक झपकने में ही घट जाएंगे। भारत मे कंप्यूटर बस आना शुरू ही हुआ था और बहोत कम, शायद कुछ खुशकिस्मत लोगों की ही कंप्यूटर तक पहुंच संभव हो पाई थी। और तत्कालीन छोटी पीढ़ी , जो कि आज की मध्य आयु युवा पीढ़ी है, ने इस परिकल्पनिक मंच कला से बहोत प्रेरित हो अपने अपने कंप्यूटरों से कुछ ऐसे ही कारनामा करने के प्रयास किये थे। वह यह कभी न कर पाए, मगर इस बहोत सी कोशिशों के बाद कंप्य

Sacramentalist versus Secularist

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Who are the Sacramentalist, and how they pose threats to existence of Democracies ?

Who is a Sacramentalist ? A Sacramentalist is a person who thinks that there should be atleast one object, or a practise, or an institution who must be accepted by every one without any scrutiny and cross examination. As the age of sciences dawned upon the humanity, Man had began to ask questions into everything, and eventually started a culture of disbelief of the older practises. To doubt, to be skeptical is only being scientific, for them. However, this excessive scientific-ness lead to a fall of the order that was prevailing within the society. The ones who were previously the keepers of the order within the society saw this fall of the order as nothing but a disorder, a chaos in the country unto itself.  The former keepers of the orders observed that the new-age questioners had excessive, and perhaps endless cycle of questions and scrutiny, and therefore not easy to be tamed. And untamed person, for them, was a stray element , a loose canon , a free radical who is likely t

अंतर्राष्ट्रीय कानून, प्राकृतिक नियम, और नास्तिकवाद

अन्तरराष्ट्रीय कानून क्या है ? ब्रिटिश कॉमन लॉ क्या है ? अंतर्राष्ट्रीय कानून एक विस्तृत खाका है इंसानी आदान प्रदान का जो की खुद प्राकृतिक नियमों पर रचा बुना है। यहाँ इंसानी आदान प्रदान का अभिप्राय है व्यापार से, विवादों को सुलझाने की पद्धतियों से, अपराध नियंत्रण की पद्धति से, और न्यायायिक पद्धति से। अब चूँकि अंतर्राष्ट्रीय कानून की ही तरह ब्रिटिश कॉमन ला या यूरोपीय कॉमन लॉ भी प्राकृतिक नियमों पर रचा बुना हुआ है, इसलिए अक्सर करके अंतर्राष्ट्रीय कानून को यूरोपीय कॉमन लॉ की देन भी बुला दिया जाता है। और यूरोपीय मान्यताओं में प्राकृतिक नियमों का रखवाला खुद प्रकृति है, कोई व्यक्ति नहीं , इसलिए अंतर्राष्ट्रीय कानून का रखवाला भी खुद प्रकृति ही है, कोई देश या व्यक्ति नहीं है। अब यहाँ एक असमंजस है। वह यह कि, क्या ज़रूरी है की प्राकृतिक नियमों के प्रति यूरोपीय लोगों की जो मान्यताएं हैं, वही सही है, और आपकी नहीं ? असल में प्राकृतिक नियम के प्रति किसी व्यक्ति की जानकारी उसकी आस्था का अंश बन जाती है। तो शब्द तो एक ही रहता है - प्राकृतिक नियम - मगर इसके अभिप्राय अलग हो जाते हैं इस सवाल

What are Professional Bodies and what is their significance

A professional, SANS his professional body, is nothing but an ordinary low-skilled worker . What is the difference between a professional and an ordinary low-skilled worker ? The professional is a worker too, in a sense like any other worker, albeit a high skilled worker. What marks the difference between a high skilled and a low skilled is that - a high skilled worker acquires his craft not-naturally, but by immense training and learning process. A low-skilled worker is someone whose skills are abundantly available free in nature, and are such as to come to him intuitively ,without any great efforts. So, how does a high skilled worker transform his skills into a economic success ? There is the question which leads us to understand the significance of a professional body ( an association, a guild, an Institute, or a livery company) . A professional body exist in various forms, depending on the scale and the associated negotiation clout it may hold. The primary function