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Showing posts from March, 2016

आरएसएस के भारतिय संस्कृतिक मूल्यों के सुधार के उपाय और स्वर्ग की सीधी सीढ़ियां

एक बार रावण ने स्वर्ग तक जाने वाली सीढ़ियों के निर्माण का प्रोजेक्ट शुरू किया था। मगर वह सफल नहीं हो सका। सबक यह है कि जिन तकनीकी कारणों से रावण स्वर्ग तक की  सीधी सीढ़ियों का प्रोजेक्ट सफल नहीं बना पाया, उसी के जैसे तकनीकी कारणों से भाजपा और आरएसएस को जनता के नैतिक, सामाजिक  मूल्यों में सुधार करने के लिए प्रासंगिक स्वर्ग की सीढ़ी के जैसे सीधे दिखने वाले तरीकों का प्रयोग बंद करना चाहिए। जैसे कि - प्रतिबन्ध और प्रताड़ना, सजा , moral policing, दंगे करवाना, भय व्याप्त करना , ईत्यादि।     मानवता और समाज का सुधार इन तरीकों से कभी भी नहीं हो पाया है। एंथ्रोपोलॉजी विज्ञान में इंसान को उसके आज के सभ्य और सामाजिक जीवन से लेकर उसके आरंभिक काल के जंगली वनमानव पशु जीवन के बीते चरण की तलाश शायद यह भी एक सबक देती है। व्यापक सामाजिक सुधार सही नेतृत्व के चुनाव से आरम्भ होते है। भगवान ने इंसान को साफ़ और सुधरा हुआ बनाया ही नहीं क्योंकि शायद यह उसके लिए भी संभव न था। भगवान खुद भी सामाजिक सुधार के लिए सिर्फ एक-आध अवतार से काम नहीं चला पाया और उसे भी कई बार अवतार लेना पड़ता है । और वह भी इंसान के रूप में, कि

Ishrat Jehan Killing Disclosures...a test for Indian Judiciary

Dear Mr Justice,     With due respect, I wish to raise a few questions to the entire judiciary of India about the Ishrat Jahan killing case.    As i hear the revelation and disclosure made by the retire bureaucrat, I am reminded of an old play i had read during school years, Saint Joan, written by playwright George Bernard Shaw. Ishrat's fate in the public eye is seeing same kind of swing as did that of Joan of Arc from France, both the women suffering it post their killing. Joan was at first burnt alive at stake at the behest of the Inquisition who had declared her a Witch. But soon after they realized the political necessity of it, a second Inquisition secures her redemption directly into Sainthood. Such was the judicial process which the school board wanted us to know of and to think over. Judicial process'es greatest fault, my school board made me realise through GB Shaw's play, was that it was closed door, closely guarded, and therefore fully susceptible to the influ

मानवाधिकार और कुछ सामाजिक समस्याएं -- श्री चमन लाल जी की अभिभाषण

श्री चमन लाल जी, IPS, सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक (नागालैंड राज्य) एवं भूतपूर्व सदस्य राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग,ने government law college, मुम्बई  में श्री julio rebiero जो, सेवानिवृत पुलिस आयुक्त मुम्बई, की अगुवाई में विमोचन कार्यक्रम (conference) की सभा को संबोधित किया। श्री रेबीएरो जी के शब्दों में श्री चमन लाल जी को मानवाधिकार विषय में श्रेष्ट ज्ञानी (an authority) माना जा सकता है, और श्री चमन लाल जी राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग से सम्बद्ध जांच विभाग में director general की भूमिका में सेवा दे चुके हैं।   सभा में घोषणा करी गयी की संघोषटी के उपरांत उसका सार लिखने की एक प्रतियोगिता रखी गई है जिसको सर्वश्रेस्ठ लिखने वाले को ₹5000/- का आयोजक संघटन, People's Concern for Good Governance की तरफ से पुरस्कार दिया जायेगा। शर्त थी कि यह सार किसी निश्चित शब्द सीमा में लिखना था।    श्री लाल जी ने जन रूचि के किन्ही तीन विषयों पर मानवधिकार की दृष्टि से अपने विचारों को प्रस्तुत करने का प्रस्ताव रखा। सभा में शांति बनी रही इसलिए उन्होंने यह तीन विषय खुद ही चुनाव करते हुए भ्रष्टाचार, आरक्षण तथा आतंकव

कश्मीर अलगाववाद का राष्ट्रद्रोह-- भाषा जनित कूटनीति का पहलू

शब्दों की हेरा फेरी का मसाला है यह तो...कुछ कहते हैं की कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानना असंवैधानिक है, जबकि कुछ कहते है की संविधान में ही कश्मीर को इस प्रकार की विशिष्टता प्रदान करी गयी है की मानो वह भारत का हिस्सा है ही नहीं।    और सवाल यह बनाया जा रहा है कि संविधान का सम्मान कौन सा गुट नहीं करता है। बरहाल, कुछ तथ्यों का ज्ञान नागरिकों को होना आवश्यक है 1) संविधान में कश्मीर को विशेष दर्ज़ बहोत उच्चे हद तक प्राप्त है। याद रहे की संविधान के आधीन ही कश्मीर को स्वतंत्र क्षेत्रीय संविधान रखने की स्वतंत्रता है। उनका अपना ध्वज भी है। उनकी विधान सभा 6 साल की कार्यकारणी वाली होती है। 2) समस्त भारत में लागू होने वाले बहोत सारे कानून के लिए जम्मू कश्मीर विशेष भूमि है जहाँ वह लागू नहीं होते है। उत्तराधिकारी कानून, भूमि अधिनियम,....सूची बहोत ही लंबी है।     तथ्यों की विकृति(distortion) से ही कभी कभी शब्दों और विचारों में भी विकृति आ जाती है। प्रसिद्ध नाटककार शकेस्पीयर के नाटक twelfth night के एक चरित्र क्लाउन (हँसोड़ जोकर) का कथन तथ्यों और शब्दों की आपसी विकृति में से एक हास्य को संबोधित क

The Central humanist group and the Ishrat Jehan killing case

The G.K Pillai interview at TimesNow speaks one big point prominently. That is, CBI and the IB are "politically" pliable agencies. Therefore we know now what interest the present government is keen to defend so not to absolve it's own leader's name from the fake encounter issue.    No Political entity wants the issue of independence of the CBI to come over as a judicial necessity.    The question raised by the central-humanist group on this disclosure by Mr Pillai would be ,'how do we know that the disclosure is not politically motivated today ?' . "How do we know which all affidavits were politically motivated and which all were not ".    These are the questions which all aam-aadmi-oppressive political groups want to circumvent because these will cause judicial enquiry into the functioning of the investigation and intelligence agencies. कानून के अध्ययनकर्ता की दृष्टि से क्या इशरत जहान को उसकी मृत्यु उपरांत गुन्हेगार घोषित करना उचित होगा?    सवा

इशरत जहाँ और अर्क की जोआन

इशरत जहान तो मर चुकी है। अब तो बस यह राजनैतिक सुविधा का सवाल रह गया है की उसे साबित क्या करवाया जाये -- बेगुन्हा, या फिर गुन्हेगार ? वह तो पहले ही मर चुकी है अपना बचाव कर सकने में असमर्थ।     अंग्रेजी नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के साहित्य सेंट जोएन की स्मृति दिलाता रहेगा आज़ाद भारत में घटा यह इशरत वाला हादसा। बर्नार्ड शॉ का साहित्य इंसान का नजरिया इसी समझ पर खोलता है की एक उचित और निष्पक्ष न्यायायिक प्रक्रिय में क्या क्या चारित्रिक विशेषतायें होनी चाहिए। बर्नार्ड शॉ फ्रांस अर्क शहर की रहने वाली की युवती जोआन की जीवन त्रासदी के माध्यम से यही बताना चाहते थे की किस किस्म की मूर्खतापूर्ण न्यायिक प्रक्रिय होती थी उस युग में जिसमे पहले इंसान को जिन्दा जला दिया जाता था और फिर राजनैतिक सुविधाओं के हिसाब से यह तय होता रहता था की वह एक चुड़ैल थी या की एक संत थी । न्याय का एक प्रथम सूत्र दुनिया भर में माना गया है की एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए भले ही हज़ारो गुन्हेगार आज़ाद और बिना सजा के बच निकले। मगर कैसी मूर्खो वाली न्यायायिक प्रक्रिय का पालन हुआ था वहां, कि पहले इंसान को सजा दी गयी, वह भी म

आरएसएस और भाजपा : Master mentality और pervert justice से अभिशप्त

(यह अंश britanica encyclopedia के कुछ लेखों पर आधारति है) हर विषय के दो पहलू होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर सिक्के के दो मुख होते हैं।   इंसानी क़ाबलियत यह मानी गयी है की वह सही पहलू और गलत पहलू में भेद कर लेता है। इंसान सामाजिक जीव है। गलत और सही के बीच भेद करने के लिए उसमे अंतरात्मा होती है जो की अक्सर सामाजिक सर्वहित को मानदंड रख कर यह फैसला करती है। दूसरे को वह न करो जो तुम खुद पर होते देखना नहीं पसंद करोगे ।   इंसान एक सर्वोपरि शक्ति में आस्था रखता है और मन में यह यकीं करता है कि कही कोई है जो उसकी अंतरात्मा के फैसलों को देख रहा है , उसकी सही और गलत की परख करने वाली उसकी अंतरात्मा से हिसाब मांगेगा।   इतिहास में करीब करीब हमेशा ही समूची मानव जाती ने किसी न किसी रूप में, चाहे किसी भी नाम से, मगर इस सर्वोपरि शक्ति में आस्था जरूर रखी है।   और करीब करीब सभी धर्मों में मृत्यु के उपरांत उस सर्वोपरि शक्ति के समक्ष हिसाब देने की बात है, चाहे जहन्नम और जन्नत के नाम पर, या फिर स्वर्ग और नर्क के नाम पर। (नीचे का अंश स्वतंत्र मत है) भाजपा और आरएसएस के भक्त वह है जो की हर विषय के दूसरे पहल