भक्त बुद्धि की प्रबंधन और प्रशासन में भेद न करने की गलती

अच्छे योद्धा को अपनी सत्ता कायम रखने के लिए अच्छा शासक होना बहोत ज़रूरी है।
अच्छे योद्धा की वरीयता नापना भले ही बहादुरी (brave), शौर्य (chivalry, bravery in combination with gentleman behavior), निडरता (daunting), आक्रामकता (aggression),
   जैसे आचरण से हो ...

मगर अच्छे शासक की वरीयता नापना तो उसकी न्यायप्रियता (justice), समता(equality), निष्पक्षता (impartial), विमोह (dispassionate), निषभेदता (unbiased) से ही मानी जाती है।

#भक्त_बुद्धि_को_सद्ज्ञान

मगर भक्तों की समस्या का मूल तो कुछ और ही है। समस्या यह नहीं है की भक्त की मंडली अच्छे योद्धाओं से नहीं बनी है जो की अच्छे शासक साबित होने लायक नहीं है। समस्या यह है की भक्त की मंडली व्यापारी वर्ग और आदर्शों वाले लोगों से बनी हुई है जिन्हें प्रबंधन (Management) और प्रशासन (Administration) के बीच का अंतर वाला आरंभिक अध्याय याद नहीं है।
भक्तों की समस्या है की वह rule of law को न तो समझ पा रहे हैं, न उसका पालन कर रहे हैं।

सवाल है कि ऐसा क्यों हो रहा है ? क्या कारण है की भक्तों की मंडली में उच्च पढ़े लिखे लोग दिखाई देते हैं, मगर फिर भी असमतल व्यवहार करते हैं ?

जवाब शायद यह है की यह सब प्रबंधन और प्रशासन के भौतिक अन्तरों को समझ नहीं पा रहे है। प्रबंधन (Management), जो की अक्सर व्यापारिक संस्थाओं में चलता है,जहाँ उद्देश्य और प्रेरणा का स्रोत लाभ अथवा हानि होती है, वहां customization, multi pronged approach, horses for courses जैसे सबक कामयाबी से लागू होते हैं क्योंकि कामयाबी का पैमाना लाभ अथवा हानि होता है।

मगर प्रशासन (Governance) में rule of law लागू होता है, जिसमे श्रेष्ट शासक उसे माना जाता है जो rule of law को बचाये रखने के लिए अपनों की भी बलि देने को तत्पर रहता है।
अच्छे शासक को जनता का दिल जीतना ज़रूरी होता है। लंबे, दीर्घकालीन शासन दिलों को जीत करके ही चलते हैं, तलवार के दम पर नहीं। जनता का दिल जीतने के वास्ते अच्छे शासक को कुछ किस्म के आचरणों को कतई नहीं करता देखा जाना चाहिए। जैसे भेदभाव, पक्षपात, अपने परिवार और करीबियों को बढ़ावा (nepotism and favouritism), विषम नियमावली (unequal laws); पूर्व असूचित अथवा असार्वजनिक नीतियां (un notified , unannounced public policies); और अत्यधिक मनमर्ज़ी की नियम कानून व्यवस्था ( arbitrary, discretionary rule making)। इसके लिए अच्छे शासक को कुछ खास न्यायिक आचरणों का पालन करना ही पड़ता है जिसे की rule of law केहते हैं।

rule of law अपनी प्रकृति में ठीक विपरित विचार है ग्राहक सेवा और मुनाफा वाले विचार customisation, या फिर multi pronged strategy का। यहाँ आप ग्राहको को लुभाने के लिए स्थान और समय के अनुसार नीतियों को बदल सकते है। क्योंकि उद्देश्य व्यावसायिक लाभ है, और कोई सजा या दंड देना इनके अधिकारों में नहीं है, नागरिकों को नीतियां मानाने के बाध्यता नहीं होती है, इसलिए प्रबंधन (management) में यह आचरण स्वीकृत माना जाता है।
मगर प्रशासन ग्राहकों से नहीं, नागरिकों से वास्ता रखता है। इसमें दंड देने का अधिकार होता है, इसमें बाध्यता की क्षमता होती है, इसलिए यहाँ न्यायप्रिय होना बड़ी सौगात मानी जाती है।

भक्त मंडली यही परास्त होती दिख रही है। वह प्रशासन को प्रबंधन के अध्यायों से चलाने का प्रयास कर रही है और पक्षपात, भेदभाव, तानाशाही, कारीबियों को लाभ, शत्रु और विपक्ष को हानि असमतल नियमावली(unlevel playing field to the opponents and rivals) करते दिखाई पड़ रही है।

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