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Showing posts from May, 2016

विश्वास समाज के निर्माण का आपसी योजक होता है

Trust is most important requisite for flourishing any business. Trust builds societies, trust builds nations. Unfortunately , our country India is a low-trust society, which is visible in the form of innumerable factions our society suffers from, the myriad "vote banks" that keep affecting adversely our political majority. Despite Trust getting identified as our key shortcoming, people think about Trust either as a 'State of Mind' (E.g. Blind faith), or else a commodity left in other's possession upon a term and condition that it must not be broken. Trust is neither of it. Trust is a psychological discharge coming from our set of action-reaction with each other. Trust is discharged from our action when our choices become predictable to each other. Trust comes when our decisions flow from a commonly agreed principle. Trust is when we have a Uniform system of reward and punishment. Trust is, when we have a commonly known system of law and justice. Trust is law a

content based pricing के मुद्दे पर एक विचार

चीज़ों के दाम उनके निर्माण की लागत के हिसाब से तय किये जाते थे। कम से कम नागरिक मूलभूत सुविधाओं के दाम ऐसे ही तय किये जाते थे, यही आधार मान की सार्वजानिक आवश्यकताओं को धन लाभ के उद्देश्य से संचालित नहीं किया जायेगा। यानि सार्वजनिक आवश्यकताओं के दाम ऐसे नियंत्रित रहेंगे की सभी जन उसको प्राप्त कर सकें। उधाहरण के लिए सड़क जो की यातायात की बुनियादी आवश्यकता है। और परिवहन प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता है। ऐसे ही, शिक्षा को सामाजिक बदलाव और विकास का आधार माना गया। शिक्षा को मूलभूत अधिकार बनाया गया। जल, भोजन, भवन इत्यादि मौलिक आवश्यकता हैं।     मगर व्यापारिक उद्यम का उद्देश्य तो हमेशा से धन लाभ को ही माना गया। ऐसे में वह वस्तुओं का दाम उसके निर्माण लागत के स्थान पर उनकी बाजार में मांग और पूर्ती के अनुसार रखना पसंद करते है। व्यापारिक तर्कों के अनुसार 'टके सेर भाजी और टके सेर खाजा" एक "अंधेर नगरी" का चिन्ह है। तो वह वस्तुओं का दाम content based करने की मांग रखते है।     प्रजातंत्र व्यवस्था की त्रासदी यह रही है की इस व्यवस्था को हमेशा व्यापारियों ने गबन कर लिया है, पॉलिटिशियन्स

पढाई लिखाई आवश्यक नहीं है, ...आवश्यक है ज्ञान का संरक्षण

(उनके लिए जो की जीवन में पढाई लिखाई को सबसे महत्वपूर्ण मुक्ति का वाहन समझते हैं। उनके लिए भी , जो यह समझते हैं की कॉलेज डिग्री को जीवन में आवश्यक मनना एक गलत विचार है।) पढाई लिखाई महत्वपूर्ण नहीं होती। न है व्यक्तिगत जीवन मुक्ति के लिए,और न ही सामाजिक जागृति और उत्थान के लिए । महत्वपूर्ण है ज्ञान का कोष निर्माण, संरक्षण और प्रसार । अब क्योंकि ज्ञान को निर्मित करने और प्राप्त करने का सबसे प्रत्यक्ष तरीका पढाई-लिखाई ही है, इसलिए कई सारे लोग पढाई लिखाई को ही सबसे महत्वपूर्ण संसाधन मानने लग जाते हैं।       सामाजिक उत्थान में आवश्यक बिंदु है की समाज में भिन्न भिन्न गुणों और कौशल के लोग हो जो मिल जुल कर सामाजिक उत्थान का मार्ग निर्माण करें। ऐसे में विभिन्न और विशाल भेदों वाले कौशल का विकास आवश्यक हो जाता। यहाँ समस्या आती है की पढाई लिखाई का मार्ग बहोत सारे कौशलों के विकास में एक बाधक होता है। उधाहरण के लिए, कला, क्रीड़ा, exploration यानि खोज यात्राएं , इत्यादि। इस सभी क्षेत्रों के उत्कृष्ट कौशल को विक्सित होने के लिए मनुष्य को अपने बाल्य अवस्था से ही ध्यान केंद्रित करना पद सकता है,जिसके

Why no creamy layer among the SC ST group

The cure for social discrimination has been the Affirmative action. In the case of gender based discrimination too, Reservation has been the chosen path. 50% reservation for Women is the highlighting evidence.     The point is simple and logical. Reservation is the way to achieve Proportionate Representation, that is, to cure the malaise of social discrimination.    However, the Anti-reservationist have aversion only to the caste based Affirmative action. They make chaotic arguments raising arbitrary questions, most of these questions being of a denialist nature that the Caste based discrimination is an imaginary victimization,  which has never actually occured.    One of these questions is why should a generation of the same family enjoy the benefits of reservation. The question is more of a sham exercise , perhaps with an agenda of dissolving out the reservation policy altogether. However, if there be any substance it then this is perhaps what it wants to point to, -- why should

Reservation Policy : Life's 80:20 theory at work...A matter of Proportionate Representation

Another mistake of comprehension that the anti-reservationists are doing is that they are thinking that the purpose of Reservation Policy is to provide Financial strength to the oppressed. For a long time even i had same view, which ofcourse I now believe it has slight errors in it. The reservation policy intends to transfer the resources of the society in favour of the historically alienated people. Somehow, the statistical information that the proponents of the Reservation policy hold is that-- about 80% of the resources of the society are in possession of the lesser than 20% of the population. A glancing look of this Advantaged 20%club reveals that they are basically the historically Socially uplifted class , typically described by their "Caste" as a Common factor. Article 14 of the Constitution of India lays that there shall be "equality before law" AND also that there shall be "equal protection from the laws".    Thus,in the second phrase - &qu

भेदभाव आचरण को प्रमाणित कर सकने की न्यायिक मुश्किलें

कानून और तर्क के पेचिंदियों में सही-गलत को साबित करना आसान है, मगर भेदभाव को साबित करना बहोत मुश्किल होता है। गलत वह है जिसके लिए सीधे और स्पष्ट , परिभाषा वाले कानून मिल जायेंगे। मगर भेदभाव को करने के अनगिनत तरीके होते हैं और उसे जायज़ साबित करने के अनेकों तर्कपूर्ण बहाने मिल जाते हैं। इसलिए भेदभाव के आरोपों को न्यायलय में साबित करना बहोत मुश्किल होता है।    भेदभाव , यानि unfariness, के अभियोग अक्सर करके श्रमिक कानून(labour laws) के क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं। हालाँकि याद कदा ऐसे आरोप किसी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा (business competition) के क्षेत्र में भी उत्पन्न हो सकते हैं।    भेदभाव के आरोप को साबित करने में एक बड़ी तार्किक मुश्किल यह होती है की इसमें कोई भी सीधा प्रमाण (direct evidence) नहीं मिलता है। जाहिर है,क्योंकि भेदभाव करने वाला पक्ष कोई लिखित सबूत नहीं छोड़ना चाहेगा की वह किसी खास व्यक्ति को निशाना बना कर कोई कार्यवाही कर रहा है। इसलिए अब मजबूरन भेदभाव को हालात के सबूत , परिस्थिति जन्य सबूतों (circumstantial evidence) के बिनाह पर ही साबित करने का प्रयास करना पड़ता है। ऐसे में क

क्या justice और fairness के मध्य कोई अंतर होता है ?

क्या justice और fairness के मध्य कोई अंतर होता है ? भारत में अधिकांश लोगों को हम 'हक़ की लड़ाई' लड़ते हुए सुनते हैं। हक़ शब्द का हिंदी अनुवाद 'अधिकार' शब्द है, जिसे अंग्रेजी में Rights बोलते हैं। इसलिए कहीं कहीं एक पर्याय के रूप में 'अधिकार की लड़ाई' भी सुनने को मिलती है। इसी विचार को न्याय की गुहार भी बुला दिया जाता है, जिसे अंग्रेजी में justice कहते हैं।   आपने कभी सोचा है की क्या justice और fairness को एक ही विचार और एक दूसरे का पर्याय माना जाना चाहिए ?    justice शब्द का हिंदी अनुवाद न्याय है। कुछ हिंदी शब्दकोष fairness का अनुवाद निष्पक्षता बताते है। समस्या यह है की निष्पक्षता शब्द के लिए अंग्रेजी शब्द neutrality भी है। मगर neutrality और fairness को अंग्रेजी संस्कृति में एक समान विचार नहीं मानते हैं। तो सवाल उठता है की fairness शब्द के लिए उपयुक्त हिंदी क्या होगा ।   यहां पर मुझे हमारी एक हज़ार सालों से गुलाम हुई सभ्यता की क्षत् विक्षत प्रभाव  दिखाई देते हैं। fairness के प्रति हमारे चिंतकों ने कुछ अधिक लेखन कार्य नहीं किये हैं। यहाँ तक की fairness के लिए हमा

The rotating earth and the inequality thereof

btw, methinks that a horological phenomenon, rotation of earth from west to east, is the source event which causes eastern part of Terra firma to be natural resources rich. you can see that as a global pattern. infact the founding of the Continental Drift theory is based on this phenomenon. Centrifugal forces of the rotating earth have caused most of its heavy mineral to settle away of its equator on each of the Terra firma pieces. hence the South is resources rich. the west is generally dry as the rain and cloud bearing winds blow from east to west. hence east is water resource rich too. the social impact of abundance of natural resources, food reserves and wateris that people are less enterprising. hence, less of business acumen. the west dominates because the people are more business skilled and enterprising, because business and trade is their survival way. this is "Californication" phenomenon, "the sun may rise in the east but it settles in the west location",