आरएसएस और भाजपा : Master mentality और pervert justice से अभिशप्त

(यह अंश britanica encyclopedia के कुछ लेखों पर आधारति है)
हर विषय के दो पहलू होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर सिक्के के दो मुख होते हैं।
  इंसानी क़ाबलियत यह मानी गयी है की वह सही पहलू और गलत पहलू में भेद कर लेता है। इंसान सामाजिक जीव है। गलत और सही के बीच भेद करने के लिए उसमे अंतरात्मा होती है जो की अक्सर सामाजिक सर्वहित को मानदंड रख कर यह फैसला करती है। दूसरे को वह न करो जो तुम खुद पर होते देखना नहीं पसंद करोगे ।
  इंसान एक सर्वोपरि शक्ति में आस्था रखता है और मन में यह यकीं करता है कि कही कोई है जो उसकी अंतरात्मा के फैसलों को देख रहा है , उसकी सही और गलत की परख करने वाली उसकी अंतरात्मा से हिसाब मांगेगा।
  इतिहास में करीब करीब हमेशा ही समूची मानव जाती ने किसी न किसी रूप में, चाहे किसी भी नाम से, मगर इस सर्वोपरि शक्ति में आस्था जरूर रखी है।
  और करीब करीब सभी धर्मों में मृत्यु के उपरांत उस सर्वोपरि शक्ति के समक्ष हिसाब देने की बात है, चाहे जहन्नम और जन्नत के नाम पर, या फिर स्वर्ग और नर्क के नाम पर।

(नीचे का अंश स्वतंत्र मत है)
भाजपा और आरएसएस के भक्त वह है जो की हर विषय के दूसरे पहलू को तो तुरंत प्रस्तुत करते है मगर अंतरात्मा से न्याय नहीं करते है की सामाजिक न्याय में किसी मत को स्वीकार किया जाना चाहिए। न्याय वह है जो समान रूप में प्रवाहित होता है, समय और स्थान से बदलता नहीं है। यह लोग दूसरे पहलू को प्रकट करके अपेक्षा करते है कि न्याय बदल जाना चाहिए। इसी व्यव्हार को में pervert यानि विकृत आचरण कहता हूँ जो की मेरे विचार में किसी प्रकार की मनोविकृति है अधिक समय तक पारिवारिक माहौल में स्वामी भाव में जीवन यापन करने से।
  मनोवैज्ञानिक और समाज शास्त्रियों  ने एक slave mentality का जिक्र अक्सर किया है। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी में slave mentality के चिन्हक आचरण की सूची उपलब्ध है जिसमे अधिकांशतः सदाचरण , समानता, न्याय जैसे विषयों पर अधिक बल देकर जीवन यापन करने वाले गुण आते है। समाजशास्त्री अक्सर slave mentality के आचरण को यहूदी लोगो के तर्कों और व्यवहार में देखते है क्योंकि यह लोग बहोत लंबे समय तक मिस्र के तानाशाह फ़रो के आधीन थे जब तक की उनके मसीहा मोसेस (मूसा) ने उनका उत्थान नहीं किया। एक पुरानी सिनेमा the ten commandments इस प्रोगतिहासिक घटना का अच्छा विवरण देखाती है।
  भाजपा और आरएसएस के भक्तो में slave mentality के ठीक विपरीत में master mentality को देखता हूँ, जिसको मैं pervert (course of) justice पुकारता हूं और जो की मुझे करीब करीब narcissism (आत्ममोह) का ही प्रतिरूप लगता है।
भारत जात पात के भेद भाव से ग्रस्त देश रहा है। भाजपा के 31% अटल मतदाताओं में अधिकांशतः वह वर्ग है जो की अतीत में जात पात का लाभार्थी रहा है। यह लोग आज भी आरक्षण नीति के विरोधी है और किसी अजीब वस्तु हिंदुत्व की बात करते है, जिसको सटीक शब्दों में समझना मुश्किल है। यह वर्तमान संविधान का आदर करने की बात करते हैं मगर साथ ही सामान आचार संहिता की बात भी करते है जिसमे शायद यह भिन्न भिन्न सामूदायिक कानून को नष्ट करना चाहते हैं।  ऐसे ही, यह न जाने क्यों भारत की विरासत में बसी पूरी मिली जुली सभ्यता को 'हिन्दुस्तानी' शब्द के स्थान पर 'हिंदुत्व' से संबोधित करवाना चाहते है, जिसका कोई विशिष्ट सदभाव कारण समझना मुश्किल है।
    यह आरएसएस यहूदियों से बहोत प्रभावित रहता है। जबकि यहूदी समूदाय slave mentality का गंभीर शिकार रहा है और इसलिए सामाजिक न्याय के लिए अधिक प्रतिबद्ध रहता है। उन्होंने अपने हज़ारो सालो के इतिहास में अधिक उत्पीड़न देखा है, पहले मिस्र शासकों से, फिर अरबी मुस्लमान और अभी द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मन Nazi आर्य समूदाय के हाथों। आज भी जबकि वह फिलीस्तीनियों से आतंकवाद का शिकार है तब भी उनकी ज़मीन जीतने के बावजूद उन्हें उनके इलाकों में अपने autonomous प्रशासन चलाने के लिए स्वतंत्र कर रखा है। यह शायद slave mentality के लक्षण है। वह घातक सेना और जासूसी संघटन इसलिए रखते है क्योंकि शायद उन्हें अपनी slave mentality की कमज़ोरी का एहसास है। वह आक्रामक कतई नहीं है, बल्कि घातक सैन्य शक्ति के बावज़ूद रक्षात्मक व्यवहार के लोग है।
    भाजपाई हर विषय में pervert आचरण दिखा रहे है। वह सिक्के का दूसरा रुख मोदी के लिए रखते है और केजरीवाल के लिए ठीक उसी परिस्थिति में दूसरा रूख। यह न्याय नहीं करते की अंतरात्मा से किस रूख से समाज का सञ्चालन होना चाहिए। शायद हिंदुत्व का अर्थ किसी पुरानी परिपाटी को वापस लाना है जिसमे वही पुराने वैदिक वर्ण लाभार्थी वर्ग समाज का सञ्चालन और नेतृत्व करेगा जो कि आज आरक्षण नीति से दुखी घूम रहा है।

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