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Showing posts from January, 2016

Anti-Reservationism --- the modern form of social discrimination

There is a culture of Anti Reservationism within certain institutions in India. These institutions openly and brazenly ridicule the policy of reservation set by various legislature as if reservation is the cause of all the social disbalances and the ills that this country suffers from. It is shocking and dismaying that what these institutions hold is in conflict with the desires of the legislature, and yet there has never been cry about such a conduct ever.    Supreme Court of India is one such Institution at the top of the list who has often spoken and given commentary on the ills that the policy of reservation brings along with it. But much to the surprise of the downtrodden people, this supreme Institution of justice has perhaps never made any commentary which may stand in line with the will of the legislature and thus reveal to the general public the need and purpose of the reservation policy.    The reservationist on the other hand have truly always been timid and guilt consciou

कलयुग, अंधेर नगरी, इडियोक्रेसी और मोदी सरकार

कलयुग, अंधेर नगरी, इडियोक्रेसी और मोदी सरकार दूसरे धर्मपंथ जो की भविष्य में क़यामत और "जजमेंट डे" जैसे धरती के अन्त की भविष्यवाणी करते हैं, उनकी ही तरह हिन्दू पंथ में भी प्रलय की बात होती है जब यह सारी सृष्टि नष्ट हो जायेगी। मगर हिन्दू पंथ की मानयताओं में प्रलय के पहले एक काल,  कलयुग नाम के समाजिक दौर की भी चर्चा होती है जिसमे इंसान की बुद्धि विक्सित और समृद्ध होने के बजाये विघटित होने लगेगी।      इतिहासकारों की नज़र में जैसे15वी शताब्दी के आस पास के युग को उसकी सामाजिक मान्यताओं के लिए 'अंधकार युग' पुकारा गया है, 17वी शताब्दी को उद्योग और कारखाना युग माना गया है, ठीक इसी प्रकार प्रसिद्द इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार मोदी सरकार आजादी के उपरान्त आज तक की सबसे "बौद्धिकता-विरोधी और विद्यालय गत औपचारिक शिक्षा से अप्रशिक्षित"( "the most anti-intellectual and philistine") सरकार पुकारी गयी है।   शायद मोदी जी की सरकार भारत को कलयुग के मुर्ख देश, अंधेर नगरी,का दर्ज़ा दिलवा कर ही मानेगी।    कलयुग से सम्बंधित बहोत सारी सामाजिक मान्यताये है कि कलयुग में ज

Idealism, and the net account of the Compromises and Sacrifices

     An Idealist can never come to power in a vastly opinionated country as our. I guess he should neither even be coming over.     However, the bitter truth of life i wish to remind the readers of this post  is that no able and successful leader can afford to make expansive departure from the IDEALS either. Indeed, the minor unavoidable departures that one has to make is what is truly described in philosophical terms as PRAGMATISM. Many foolish people in our country think that meaning of Pragmatism is about being Conscience less. Indeed, Conscience-less condition is truly a Psychopath, which can only yield cruel, deceitful , autocratic person whom many other foolish people may mistake for an able, successful leader.     Party Politics is surely about making compromises. But then Politics is the art and science of Good Governance. All the People can be fooled, but not always and neither for ever. Hence, a successful leader is one whose compromises don't go into his soul of changi

काल्पनिक कथा: free basics में भविष्य का युग

कल्पना करिये यदि फेसबुक का free basics गरीबों के नाम पर वर्तमान में आ जाता है तब फिर आज से 50 साल भविष्य की क्या-क्या समस्याएं होंगी, और उन समस्याओं का क्या-क्या आर्थिक और राजनैतिक "समाधान"हो रहा होगा।     low बैंडविड्थ पर गरीबों को कुछ मुफ़्त वेबसाइट उपलब्ध करवाई जा रही हैं मगर गरीबों की लगातार शिकायतें आ रही है कि स्पीड बहोत कम है, और सभी आवश्यक जानकारियां और वेबसाइट खोलने को नहीं मिलती है। दूसरी तरफ उस काल की जनता और आलोचक भूतकाल में घटी free basics की debate को भुला चुके हैं, और वह आलोचना कर रहे है की एक तो 2G सुविधा फ्री दी जा रही है, उसपे भी इन गरीबों के इतने नखरे हैं। दान की बछिया के दांत गिन रहे हैं।     hi बैंडविड्थ वाले मिडिल क्लास उपभोक्ता परेशान है की उनको दाम ₹7000/- प्रति माह से बढ़ा कर ₹9000/- देने पड़ रहे हैं। आज दाम डेटा की मात्र के अनुसार नहीं पड़ते हैं, 700/- में 3gb data, 30 दिनों के लिए । यह तो पुराने ज़माने की बात हो गयी है। आज 2G बैंडविड्थ पर गरीबों को फ्री डेटा मिलता, कुछ लिमिटेड, लौ बैंडविड्थ वेबसाइट से, slow स्पीड पर। और बाकी भोगी लोग जिनको इंटरनेट की ल

अंधेर नगरी में भ्रष्टाचार की व्यथा (व्यंग रचना)

कल्पनाओं के देश, अंधेर नगरी में पूंजीपति ऐश काट रहे थे। वहां चोन्ग्रेस नाम के राजनैतिक दल सत्ता में था और जनता को अंधेर में रख कर राजकोष और राष्ट्रिय सम्पदा को पूँजीवादियों के हाथों बेचे जा रहा था। कुछ गैर-सरकारी एक्टिविस्ट , खेजरीवाल ,अंधकार से लड़ने के लिए सूचना का कानून जैसी नीतियों के लिए संघर्ष कर रहे थे।    तो चोन्ग्रेस सरकार पूंजीपतियों के साथ मिली भगत में खा पी भी रही थी, और जनता में पकड़ बनाये रखने के लिए खेजरीवाल जैसे एक्टिविस्टों को बढ़ावा भी देती थी। भाई वोट जनता का था, और पैसा पूंजीपतियों का। अंधेर नगरी के बुद्धू जनता आखिर रहेंगे बुद्धू के बुद्धू ही। जनता को बुद्धू बनाने वाले चोन्ग्रेसि असल में खुद भी बुद्धू की जात ही थे और अनजाने में सूचना कानून को पारित कर बैठे। और ऊपर से उस कानून को लाने की वाहवाही भी लूटने में लगे थे। टीवी,रेडियो सब जगह प्रचार करवाते घूम रहे थे।    सुसु स्वामी जैसे कुछ वकीलि राजनेता ने सूचना कानून का सहारा लेकर पूंजीपतियों और चोन्ग्रेस की मिलीभगत के घोटाले पकड़ लिए। मामला सर्वोच्च न्यायलय तक गया और यह पूंजीपति सब मामले हार गए। पूंजीपति वर्ग में सारा दोष

चाय वाला छोटू (व्यंग रचना)

एक चाय वाले 'छोटू' से यूँ ही पूछ लिया की अगर तू बड़ा हो कर देश का प्रधानमंत्री बन गया तब क्या करेगा । चाय वाला बोला की वह बारी बारी से दुनिया के सभी देश जायेगा।    मैंने पुछा की इससे क्या होगा ? छोटू ने कहा की इससे हमारे देश की सभी देशों से दोस्ती हो जायेगी, हमारा रुतबा बढेगा और वह सब हमारी मदद करेंगे पाकिस्तान को हराने में।     मैंने पुछा की क्या किसी और सरकारी अफसर या मंत्री को भेज कर यह नहीं किया जा सकता है ? छोटू बोला की साहब, किसी छोटे मोटे नौकर के जाने से दोस्ती न हॉवे है, इसके लिए तो प्रधानमंत्री की खुद जावे को होना है।    मैंने पुछा की तब देश के अंदर का काम कौन करेगा ?   छोटू ने तुरंत जवाब दिया की वह सरकारी अफसर और बाकी मंत्री देख लेवेंगे।    मैंने पुछा की अगर यूँ ही किसी के देश में बिना किसी काम-धंधे के जाओगे तब हंसी नहीं होगी की यहाँ का प्रधानमंत्री फोकटिया है, बस विदेश घूमता रहता है।    छोटू ने कटाक्ष किया की ऐसा कोई नहीं सोचेगा। जब हम किसी के यहाँ जाते है तभी तो उससे हमारी दोस्ती होती है। अगर सिर्फ काम पड़ने पर ही किसी के यहाँ जाओगे तो वह क्या सोचेगा की सिर्फ